Request of Animal Lovers : हम मूक प्राणी की आवाज हैं, हमें इंसानों का खलनायक मत बनाइये, हमारी बात समझने का प्रयास कीजिए, हमें मदद करने का मौक दीजिए
Request of Animal Lovers : शहर की जीवदया प्रेमी संस्थाओं ने पत्रकार वार्ता कर अपने तर्क रखे। उन्होंने कहा हम पशुक्रूरता के विरोधी हैं, समाधान के नहीं।
नगर निगम और प्रशासन के रुख पर जीवदया प्रेमियों ने पत्रकार वार्ता में स्पष्ट किया अपना रुख, कुत्तों की समस्या के निदान में तन-मन-धन से सहयोग देने का दिया प्रस्ताव
रतलाम @ एसीएन टाइम्स . शहर में कुत्तों संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। लोगों को कुत्ते के काटने की संख्या के मामले में रतलाम मध्यप्रदेश में दूसरे स्थान पर है। यह चिंता का विषय है। हम मूक प्राणियों की आवाज हैं, उनके साथ होने वाली क्रूरता के खिलाफ हैं, उनसे होने वाली समस्या के निदान के विरोधी नहीं हैं। किंतु हमें इंसानों के बीच खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, यह उचित नहीं है। Request of Animal Lovers- हमें खलनायक न बनाएं, हम कुत्तों की बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने के प्रयास में तन-मन-धन से सहयोग देने को तैयार हैं। इसलिए हमारी बात और हमारे उद्देश्य को समझिए और हमें व्यवस्था में सहयोग का मौका दीजिए। शहर के जीवदया प्रेमियों की यह अपील और गुहार जिला प्रशासन और नगर निगम प्रशासन से है जो उन्होंने पत्रकार वार्ता के माध्यम से की है।
मंगलवार को शहर के प्रबुद्धजनों और जीवदया प्रेमियों ने पत्रकार वार्ता ली। रतलाम प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में प्रबल सोसायटी की अदिति दवेसर व सरोज गुप्ता, ह्यूमन को-ऑपरेशन की आशा गुप्ता, विशाल सक्सेना, वेद प्रकाश सिंह, हेल्पिंग हैंड संस्था के विशाल उपाध्याय, जीव दया मैत्री परिवार के प्रकाश लोढ़ा, दीपक कटारिया, भरत सोनी, एनीमल लवर्स ग्रुप की शिल्पा जोशी आदि मौजूद रहे। सभी एक-एक कर अपनी बात (Request of Animal Lovers) रखी। जीवदया की वकालत करते हुए पूर्व पार्षद दवेसर ने कहा कि मीडिया के माध्यम से पता चला कि प्रशासन में जीवदया प्रेमियों की छवि समाज के खलनायक जैसी है। यही वजह है कि उन्हें मीडिया के माध्यम से ही अपनी बात रखनी पड़ रही है।
एक डॉक्टर द्वारा एक दिन में 70 से 80 कुत्तों का बधियाकरण संभव नहीं
दवेसर सहित अन्य ने बताया (Request of Animal Lovers) कि कुत्तों की आबादी बढ़ने और उनके द्वारा काटे जाने से हर कोई परेशान है, खुद वे भी। इसलिए जीवदया से जुड़े सभी चाहते हैं को इस समस्या का समाधान हो। इसका सही उपाय कुत्तों का बधियाकरण ही है। इसके लिए सरकार और जीवदया से जुड़े कानूनों में व्यवस्था दी गई है, नियम हैं। इनमें स्पष्ट किया गया है कि बधियाकरण कैसे करना है और उसके बाद कुत्तों की किस तरह केयर करना है। जुलवानिया में इसकी व्यवस्था की गई है लेकिन वहां अभी पर्याप्त साधन-संसाधन नहीं हैं। एक डॉक्टर ने सहयोगी के तौर पर एक ड्राइवर की मदद से एक दिन में 70-80 कुत्तों के बधियाकरण का दावा किया है जो संभव जान नहीं पड़ता। जबकि इसके लिए ट्रेंड स्टाफ और पर्याप्त डॉक्टर होना जरूरी है।
क्रूरता अनुचित, मादा कुत्तों को नहीं उठाने का है नियम
पशुप्रेमियों ने बताया कि जो भी एक्ट बने हैं या अधिसूचनाएं जारी हुई हैं उनमें स्पष्ट है कि कुत्तों को क्रूरता पूर्वक नहीं पकड़ा जा सकता है। कुत्तों को पकड़ने के दूसरे तरीके हैं जिसमें उन्हें नुकसान नहीं पहुंचता। मादा कुत्तों को पकड़ने पर भी कानून में मनाही है जबकि हाल के दिनों में रतलाम शहर में मादा कुत्तों को पकड़ा गया। उनके नवजातों को वहीं छोड़ दिया गया जिनकी मौत हो गई। देवास में भी बधियाकरण का काम होता है। वहां कुत्तों को पकड़ने के लिए एक इंजेक्शन लगाया जाता है। इससे वे कुछ समय के लिए शिथिल अथवा मूर्छित हो जाते हैं। इससे उन्हें आसानी से पकड़ सकते हैं। बधियाकरण में जुटे देवास के डॉक्टर पवन माहेश्वरी से बात हुई है। वे रतलाम में इस कार्य में मदद के लिए तैयार हैं। वे यहां जरूरी स्टाफ को ट्रेनिंग भी देंगे।
एक पिंजरे में ठूंस देते हैं 30 से 40 कुत्तों को
जीवदाया प्रेमियों ने बताया निमानुसार बधियाकरण के लिए कुत्तों को पकड़ने से पहले संबंधित मोहल्ला समितित या जीवदया प्रेमियों को अवगत कराने का प्रावधान है। कुत्तों को जिस इलाके से पकड़ा जाए उसका टैग लगा कर बधियाकरण कर उसी इलाके में छोड़ा जाए। इसके बाद सात दिन तक उनके खाने-पीने की व्यवस्था भी नियम में शामिल है। अभी ऐसा नहीं किया जा रहा है। कुत्तों को पकड़ने के बाद 30 से 40 की संख्या में एक ही पिंजरे में ठूंड दिया जाता है जहां कुत्ते झगड़ते हैं और एक-दूसरे को नुकसान पहुंचते हैं। अलग-अलग रखे जाने से यह समस्या नहीं होगी। पुणें-बैंगलुरु में भी होता है ऐसा।
Request of Animal Lovers : यह होना चाहिए व्यवस्था, जीवदया प्रेमी भी हैं सहयोग के लिए तैयार
- हर मोहल्ले में समिति और जीवदया प्रेमी वालेंटियरों की टीम तैयार की जाए। यह कार्य जीवदयाप्रेमी संगठन करने को तैयार हैं।
- कुत्तों को इंजेक्शन के माध्यम से शिथिल कर पकड़ा जाए। इसके लिए जो इंजेक्शन चाहिए वह जीवदयाप्रेमी उपलब्ध करवाने के लिए आर्थिक सहयोग के लिए तैयार हैं।
- पकड़ने के बाद टैगिंग की जाए जिसमें यह स्पष्ट हो कि उन्हें किस इलाके से पकड़ा गया।
- इस बारे में पूर्व में ही मोहल्ला समितियों को अवगत कराया जाए।
- बधियाकरण करने के बाद पुनः उसी इलाके में छोड़ा जाए जहां से उन्हें पकड़ा गया। क्योंकि कुत्तों की खासियत है कि वे अपने इलाके में रहना पसंद करते हैं और दूसरे इलाके में छोड़े जाने पर उग्र हो जाते हैं।
- मोहल्ला समितियां और जीवदया प्रेमी बधियाकरण के बाद छोड़े गए कुत्तों के सात दिन तक रहने-खाने की व्यवस्था करेंगे। जीवदयाप्रेमी इसके लिए तैयार हैं।
- जीवदया प्रेमी संस्थाएं बधियाकरण के लिए जो भी साधन-संसाधन और वालेंटियरी सहयोग चाहिेए, वह वे देने को तैयार हैं।
कलेक्टर का वह बयान जिसके कारण जीवदया प्रेमियों को देना पड़ी सफाई
बता दें कि, कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम द्वारा डॉग बाइट के मामले बढ़ने पर संवेदनशीलता दिखाते हुए नगर निगम प्रशासन को एक्शन लेने के लिए कहा गया है। उनका कहना है कि रतलाम शहर डॉग बाइट के मामले में प्रदेश में द्वितीय स्थान पर है। शहर में 1700 व्यक्तियों को श्वानों द्वारा काटा जा चुका है, जो चिन्तनीय है। नगर निगम इस मामले में शीघ्र एक्शन ले। आवारा श्वानों की धरपकड़ करें। इस कार्य में यदि कोई बाधा डालता है तो उसके विरुद्ध भी कार्रवाई करें।