आज की रचनात्मक सोच ही भविष्य को संवारेगी, 'सुने सुनाएं' के आठवें सोपान में बड़े रचनाधर्मियों के साथ 8 वर्षीय बालिकाओं ने भी किया रचना पाठ

रचनाधर्मिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू हुए सुनें सुनाएं का आठवां सोपान रविवार को हुआ। इस मौके पर बड़े रचनाधर्मियों के साथ ही आठ वर्षीय दो बेटियों ने भी रचना पाठ किया।

आज की रचनात्मक सोच ही भविष्य को संवारेगी, 'सुने सुनाएं' के आठवें सोपान में बड़े रचनाधर्मियों के साथ 8 वर्षीय बालिकाओं ने भी किया रचना पाठ
सुनें सुनाएं के 8वें सोपान में रचनापाठ करते रचनाधर्मी।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । आज की रचनात्मक सोच ही आने वाले समय में शहर को संपन्न बनाएगी। रचनाओं की प्रस्तुति के साथ नई पीढ़ी को आगे बढ़ाने और नई सोच को महत्व देने से ही किसी भी शहर की साहित्यिक, सांस्कृतिक समझ बढ़ती है। 'सुनें सुनाएं' के ज़रिए यह समझ निरंतर आगे बढ़ती नज़र आ रही है। 'सुनें सुनाएं' के आठवें सोपान पर प्रस्तुत रचनाओं में नवीनता, नई शैली, नए विचार और नए संदर्भ सामने आए जो आशा जगाते हैं। उक्त विचार 'सुनें सुनाएं' के आठवें आयोजन में उभर कर सामने आए।

जीडी अंकलेसरिया रोटरी हॉल में आयोजित सुने सुनाएं कार्यक्रम में रचनाधर्मियों ने अपने प्रिय रचनाकारों की रचनाओं का पाठ किया और उन पर विमर्श भी किया। आयोजन में आठ वर्षीय इफ़रा अंसारी ने सिद्दीक़ रतलामी की रचना "ये दुनिया ख़ूबसूरत हो गई है" और गुलफिशां अंसारी ने 'कहने का ग़र सलीका चाहिए' का पाठ किया। रीता दीक्षित ने मैथिलीशरण गुप्त की रचना "नर हो न निराश करो मन को" का पाठ, अलक्षेन्द्र व्यास ने अंजुम रहबर की रचना "खा ले, पी ले मौज उड़ा, कल क्या हो किसको पता" का सस्वर पाठ किया। डॉ. गीता दुबे ने पं. सूर्यकांत निराला की कविता "वह तोड़ती पत्थर" सुनाई तो अरविंद मेहता ने डॉ. विष्णु सक्सेना की रचना “हाथ अभी सिंदूरी है“ का पाठ किया।

सेवानिवृत्त रेलवे अधिकारी सुरेश बरमेचा ने मुनीर नियाज़ी की रचना 'हमेशा देर कर देता हूं मैं' का पाठ, ललित चौरड़िया ने कमलेश द्विवेदी की रचना 'अनायास ही इस जीवन में' और प्रियेश शर्मा ने बल्ली सिंह चीमा के जनगीत 'ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के' का पाठ किया।

 गौरवमयी उपलब्धि पर सम्मान किया

शहर के नाम को रोशन कर पर्वतारोहण के क्षेत्र में गौरवमयी उपलब्धि दिलवाने वाले दंपत्ति अनुराग चौरसिया एवं सोनाली परमार का 'सुनें सुनाएं' परिवार की ओर से अभिनंदन किया गया। इसके साथ ही विवाह वर्षगांठ पर डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला एवं प्रतिभा चांदनीवाला का भी सम्मान किया गया। कार्यक्रम में आठ वर्ष की दो बेटियों इफरा एवं गुलफिशां ने अपनी प्रिय रचना की प्रस्तुति पहली बार की, इस पर उनका सम्मान गुस्ताद अंकलेसरिया ने किया। ठा. रविंद्रनाथ टैगोर का स्मृति दिवस होने पर उनसे जुड़े संस्मरण पर भी चर्चा हुई।

ये रहे उपस्थित

इस अवसर पर डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला, डॉ. प्रकाश उपाध्याय, गुस्ताद अंकलेसरिया, सुभाष जैन, डॉ. दीप व्यास, आई. एल. पुरोहित, श्याम सुंदर भाटी, अरविंद कुमार मेहता, सुरेश बरमेचा, कैलाश व्यास, सिद्दीक़ रतलामी, राजकुमार यादव, अलक्षेंद्र व्यास, नरेंद्र सिंह पंवार, हिमांगी व्यास, प्रतिभा चांदनीवाला, डॉ. गीता दुबे, कविता व्यास, रीता दीक्षित, आशा श्रीवास्तव, स्मिता शुक्ला, अशोक तांतेड़, विनोद झालानी, प्रियेश शर्मा, नीरज कुमार शुक्ला, अनुराग चौरसिया, सोनाली परमार, ललित चौरड़िया, संजय परसाई, विष्णु बैरागी, आशीष दशोत्तर सहित 'सुनें सुनाएं' के साथी मौजूद थे।