सदी के महानायक अमिताभ बच्चन से भेंट एक अद्भुत संस्मरण- सोनवलकर

साहित्यकार एवं क्षेत्रीय ग्रामीण विकास व पंचायत राज प्रशिक्षण केंद्र इंदौर के संयुक्त आयुक्त प्रतीक सोनलकर से सुनें महानायक अमिताभ बच्चन से मुलाकात का संस्मरण। बच्चन जी की 80वीं वर्षगांठ पर बधाई और शुभकामनाएं।

सदी के महानायक अमिताभ बच्चन से भेंट एक अद्भुत संस्मरण- सोनवलकर
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के साथ प्रतीक एवं सार्थक सोनवलकर।

प्रतीक सोनवलकर

महाकवि हरिवंशराय बच्चन जी और मेरे पिताजी प्रख्यात कवि व साहित्यकार प्रोफेसर स्व. दिनकर सोनवलकर जी घनिष्ठ मित्र थे। सन् 1960 के आसपास जबलपुर में एक कवि सम्मेलन सेठ गोविन्ददास जी के सौजन्य से आयोजित किया गया था। इसमें 53 वर्षीय बच्चन जी और 28 वर्षीय पिता स्व. दिनकर जी एक ही मंच पर थे। बच्चन जी ने उनकी पहली पत्नी स्व. श्यामा जी की याद में एक दुखांत कविता "साथी अंत दिवस का आया" लिखी थी।

दिनकर जी ने उसी मंच पर यही कविता गीत रूप में स्वरबद्ध कर अपने स्वर में हारमोनियम पर आंखें बन्द कर तल्लीनता से प्रस्तुत की। जैसे ही गीत समाप्त कर दिनकर जी ने आंखें खोलीं, देखा बच्चन जी की आँखों से अविरल अश्रुधारा बह रही है और वे दिनकर जी को एकटक देख रहे हैं। अगले ही पल बच्चन जी उठे और दिनकर जी को गले से लगाकर कवि सम्मेलन के बाद अपने साथ होटल में ले गए जहाँ वे ठहरे हुए थे। वहां परिचय हुआ और पतों व एक दूसरे के काव्य संग्रहों का आदान-प्रदान हुआ। अब बच्चन जी और दिनकर जी में पत्रों के नियमित आदान प्रदान का सिलसिला जो आरम्भ हुआ वो 2000 तक दिनकर जी की मृत्यु के कुछ साल पहले तक चलता रहा।

आचार्य रजनीश (ओशो) के सहपाठी थे स्व. दिनकर

बच्चन जी दिनकर जी के पैतृक घर दमोह भी आए और 1966 में रतलाम कॉलेज के गेदरिंग में दिनकर जी के अनुरोध पर मुख्य अतिथि बतौर शामिल हुए व 'मधुशाला' सुनाई। इस कार्यक्रम में हारमोनियम दिनकर जी ने बजाई। बालकवि बैरागी इस कार्यक्रम में उपस्थित थे। दिनकर सोनवलकर जो आचार्य रजनीश ओशो के सहपाठी रहे, वे विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कार्यक्षेत्र के रतलाम व जावरा कॉलेज में 1964 से 1993 तक दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक रहे।

स्व. बच्चन जी ने स्व. दिनकर की पत्नी मीरा का नाम कर दिया था मीनाक्षी

रतलाम में 67 में पुनः बच्चन जी एक रात 12 बजे दिनकर जी के स्टेशन रोड निवास पर ट्रेन लेट होने से आए और उनकी पत्नी का नाम मीरा से मीनाक्षी रखा व दो वर्षीय बिटिया प्रतीक्षा की स्लेट पर चिड़िया बनाकर 51 रुपए आशीर्वाद स्वरूप दिए। उसी समय अमिताभ के निर्माणाधीन घर का नाम भी संयोगवश प्रतीक्षा रखा गया। एक बार दिनकर जी 72 में चकल्लस कार्यक्रम के दौरान बच्चन जी के निवास पर गए तब भोजन उपरांत बच्चन जी के निर्देश पर अमिताभ ने सितार पर कुछ धुन सुनाई।

दुष्यंत स्मृति संग्रहालय भोपाल में हैं पत्र

बच्चन जी ने अपने समस्त संग्रह दिनकर जी को भेंट किए। वे पत्रों में अपनी भावनाएं व वेदना भी व्यक्त करते थे। यहाँ तक कि तत्समय अमिताभ और रेखा के प्रेम प्रसंग को लेकर उतपन्न परिस्थितियों पर भी बच्चन जी पिता दिनकर जी से पत्रों में शेयर करते थे। उस समय फोन दुर्लभ व मोबाइल तो थे ही नहीं। कुछ पत्र दुष्यंत स्मृति संग्रहालय भोपाल में देखे जा सकते हैं।

संवेदना पत्र का यूं दिया जवाब

बचपन से ही मैं भी महानायक की फिल्मों का मुरीद था अब भी हूँ और गर्व से मित्रों व परिचितों को उनसे और उनके पिता से अपने पिता के सम्बन्धों को बताया करता था। एक स्वाभाविक इच्छा थी कि महानायक से इन सम्बन्धों, स्मृतियों, संस्मरणों, पुराने पत्रों-फोटोज के साथ भेंट की जाए। महाकवि बच्चन के 2003 में अवसान पर मैंने संवेदना पत्र के साथ दिनकर जी व महाकवि के कुछ पत्र व फोटोज अमिताभ जी को प्रसंगवश भेजे। आश्चर्यजनक रूप से 15 दिन बाद अमिताभ जी का प्रिंटेड उत्तर आया जिसमें उन्होंने अपने हाथ और हस्ताक्षर से पुनश्चः करके लिखा कि- ‘आपके पिता जी और आपके सम्बन्ध बाबू जी और मेरे परिवार से थे, ये स्मरण कर मन भर आया। पुरानी स्मृतियां छवियाँ साकार हो गईं। कभी मुम्बई आएं तो मिलें।’

...महानायक का बुलावा आते ही खिल गईं बांछें

पत्र के साथ बच्चन जी का फोटो जिस पर उनकी पंक्तियाँ लिखी थी "मैं खुद को छुपाना चाहता तो जग मुझे साधु समझता। शत्रु मेरा बन गया है छल रहित व्यवहार मेरा।" इस पत्र के बाद महानायक से मिलने की उत्कंठ। आखिर एक दिन 26 आक्टूबर को पराग जी ने अमिताभ जी को उलाहना देते हुए कह दिया कि- ‘आपको प्रतीक सोनवलकर से नहीं मिलना है तो साफ मना कर दीजिए।’ बस महानायक ने बोला- ‘तुम नाराज मत हो। 30 अक्टूबर को शाम साढ़े छह बजे उन्हें बुला ही लो।’ पराग जी का जब फोन आया तब मैं सिंहस्थ मेला भवन में विधानसभा चुनाव की मीटिंग में था। मेरी बाँछें खिल गईं। खिलती भी क्यों नहीं, बरसों पुराना स्वप्न जो साकार हो रहा था।

समय की पाबंदी और अनुशासन भी गजब का

मैं और मेरा बेटा एडवोकेट व कवि सार्थक सोनवलकर 30 अक्टूबर 2018  को विमान से ढाई बजे मुम्बई पहुंचे। पराग जी के साथ सवा 6 बजे जलसा में प्रवेश किया। वहाँ का सारा स्टाफ पराग जी से परिचित है। कक्ष में बैठते ही चाय आई और सहायक ने बताया कि- ‘साहब का कोई विदेशी मेहमान इंटरव्यू ले रहे हैं, साहब थोड़ी देर में आते हैं।‘ यह कहकर वह चला गया। हमें लगा कम से कम 15 मिनट तो लगेंगे ही। महानायक के समय की पाबंदी और अनुशासन देखिए कि हमारी चाय भी खत्म नहीं हुई और वे अकेले ही कक्ष में तीन मिनट यानी 6 बजकर 29 मिनट पर इन्टरव्यू छोड़कर दिए समय के एक मिनट पहले आ गए।

संस्मरण सुना यादों में खो गए बच्चन

आते ही पराग जी को मुस्कुराते हुए धौल जमाई कि तू बहुत परेशान करता है। पराग जी ने मेरी ओर इशारा किया, बोले- ‘इन्हीं के लिए आपको परेशान किया।‘ मैंने और पुत्र ने उनके चरण स्पर्श किए और महाकाल का प्रसाद, भस्मारती की भस्म, हरिओम जल, पीला दुशाला, उज्जैन का नमकीन व मिठाई उन्हें भेंट की। उनकी विनम्रता देखिए, प्रत्येक वस्तु ध्यान से अपने हाथों में ली और ससम्मान ग्रहण कर मेज पर रखी। मैंने बच्चन जी की वही कविता जिसे सस्वर सुनकर वे पिता दिनकर जी से प्रभावित हुए थे, अपने स्वर में स्वरबद्ध कर उपरोक्त तमाम संस्मरणों सहित उन्हें भेंट की। वे भी अभिभूत हुए और यादों में खो से गए।

ऑटोग्राफ भी उदारता के साथ दिया

प्रत्येक संस्मरण महानायक ने बिना हड़बड़ी के धैर्यपूर्वक सुना और गुना। महाकाल का दुशाला उन्होंने इसलिए नहीं पहना क्योंकि ‘ठग्स ऑफ हिंदुस्तान’ की शूटिंग के स्टंट में उनके हाथ में चोट लगने से प्लास्टर बंधा था। फ़ोटो की बारी आई तो उन्होंने अपने तरीके से मेरा और सार्थक का हाथ पकड़कर अलग-अलग कोणों से फ़ोटो खिंचवाए। पुत्र सार्थक ने जब मधुशाला की दो प्रतियों पर उनके ऑटोग्राफ चाहे तो वे बोले- ‘दो पर क्यों?’ पुत्र ने कहा- ‘एक मेरी और एक मित्र के लिए।’ उन्होंने सहर्ष ऑटोग्राफ दिए और बेटे से पूछा- ‘तुम कहाँ रहते हो, क्या कर रहे हो, क्या इरादा है आदि।’ इसी बीच मैंने उन्हें महाकाल व मध्यप्रदेश यात्रा का निमंत्रण दिया और स्मरण कराया कि ‘कुली’ फ़िल्म की शूटिंग में आपके घायल होने पर महाकाल में भी प्रार्थना की गई थी। वे श्रद्धा से भावुक हो गए। उन्होंने पूछा- ‘और कुछ आप कहना चाहते हैं?’ हमें भी लगभग 25 मिनट हो गए थे। हमने कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए इजाजत ली और पराग जी को विशेष धन्यवाद देकर गौरवपूर्ण यादों के साथ मुंबई एयरपोर्ट पहुंचे। रात साढ़े ग्यारह बजे उज्जैन लौटे।

24 घंटे में सिर्फ साढ़े चार घंटे करते हैं विश्राम

कुल मिलाकर महानायक से मिलना असम्भव जैसा ही है और यदि पिता दिनकर जी के संदर्भ व पराग जी की पहल न होती तो मिलना असम्भव ही था। पराग जी ने बताया कि 77 वर्ष की अवस्था में भी महानायक सुबह साढ़े चार बजे उठकर योग करके जिम के बाद काम पर निकल जाते हैं और देर रात 12 बजे के बाद आकर प्रशंसकों के कमेंट पर उत्तर देते हैं। नियमित स्वाध्याय के बाद ही केवल चार घण्टे विश्राम करते हैं। उनकी ऊर्जा व जीवटता दुर्लभ है। आगामी तीन वर्षों तक इतना काम है कि कोई डेट उपलब्ध नहीं है। महानायक को उनके 80 बसन्त पूर्ण होने पर बधाई, शुभकामनाएं, अभिनन्दन। वे इसी प्रकार स्वस्थ सक्रिय रहें और अपने अभिनय से देश और विश्व को आल्हादित व आनन्दित करते रहें।

(प्रतीक सोनवलकर क्षेत्रीय ग्रामीण विकास व पंचायत राज प्रशिक्षण केंद्र, इंदौर - म.प्र. के संयुक्त आयुक्त हैं। उनका चलित दूरभाष नंबर 9425490735 है। )