प्रवृत्ति बदलोगे तो प्रकृति बदल जाएगी लेकिन लोग प्रवृत्ति के बजाय प्रकृति को बदलना चाहते हैं- आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी

नवकार भवन में रविवारीय विशेष प्रवचन देते हुए आचार्य श्री विजयराजजी म. सा. ने लोगों से प्रकृति को बदलने के बजाय अपनी प्रवृत्ति में बदलाव लाने का आह्वान किया।

प्रवृत्ति बदलोगे तो प्रकृति बदल जाएगी लेकिन लोग प्रवृत्ति के बजाय प्रकृति को बदलना चाहते हैं- आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी
नवकार भवन में बोले- आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । संसार में प्रवृत्ति पर प्रकृति निर्भर होती है। प्रवृत्ति बदलोगे, तो प्रकृति बदल जाएगी, लेकिन विडंबना है कि लोग प्रवृत्ति नहीं बदलते और प्रकृति को बदलना चाहते हैं। प्रकृति का निर्माण प्रवृत्ति से होता है। इसलिए जैसी प्रवृत्ति होगी, वैसी ही प्रकृति रहेगी। प्रकृति अच्छी बनाना अथवा बुरा बनाना हम पर ही निर्भर है।

यह बात परम पूज्य प्रज्ञा निधि युगपुरुष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। रविवार को सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में प्रवृत्ति में परिवर्तन आना चाहिए विषय पर विशेष प्रवचन देते हुए उन्होंने कहा कि प्रवृत्ति मन से, वचन से और काया से तीनों प्रकार से होती है। मन, वचन और काया से बुरा करेंगे, तो बुरा होगा और अच्छा करेंगे, तो अच्छा ही होगा। प्रकृति हमेशा एक होती है, जबकि प्रवृत्तियां अनेक होती हैं। प्रकृति कभी बदलती नहीं है, उसे प्रवृत्तियां बदलकर ही बदला जा सकता है।

आचार्य श्री ने कहा कि आज संसार में अधिकतर लोग अपनी प्रकृति से परेशान हैं, क्योंकि उनकी प्रकृति अड़ियल है। उसे यदि समन्वयशील बनाना है, तो प्रवृत्तियों को शुभ बनाना पड़ेगा। अच्छी प्रवृत्तियों से प्रकृति ठीक रहेगी, तो वातावरण भी ठीक रहेगा। प्रवृत्ति ठीक करने के लिए स्वभाव में परिवर्तन लाना पडता है। प्रवृत्ति नहीं बदलने वालों का स्वभाव खड़ूस, गुस्सैल और अहंकारी हो जाता है। प्रवृत्ति बदले बिना प्रकृति नहीं बदली जा सकती, इसलिए पहले दृष्टि बदलो, दृष्टि बदलेगी तो वृत्ति बदलेगी और वृत्ति बदली तो प्रवृत्ति अपने आप बदल जाएगी। यह कार्य केवल आत्म संकल्प से होगा और संकल्प का कोई विकल्प नहीं होता।

दुनिया में सबसे अच्छी वसीयत संस्कार

आचार्य श्री ने चिंता नहीं, चिंतन करने पर जोर देते हुए कहा कि जो चिंतन करते हैं, वे प्रवृत्ति को बदल लेते हैं। समय विकट आने वला है, इसलिए सबकों प्रवृत्तियां बदलकर प्रकृति में बदलाव लाना चाहिए। आचार्य श्री ने कहा कि दुनिया में सबसे अच्छी वसीयत संस्कार होते है, नई पीढ़ी को जैसे संस्कार मिलेंगे, वैसी ही उनकी प्रवृत्ति बनेगी और फिर प्रकृति भी रहेगी। 

क्रोध के दुष्प्रभावों पर डाला प्रकाश

आरंभ में उपाध्याय, प्रज्ञारत्न श्री जितेशमुनिजी मसा ने क्रोध के दुष्प्रभावों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गुरुवाणी का बहुत महत्व है। गुरुवाणी इतनी ताकतवर है कि किसी का भी जीवन बदल सकती है। विद्वान सेवारत्न श्री रत्नेश मुनिजी मसा ने भी संबोधित किया। संचालन हर्षित कांठेड़ ने किया।