इच्छा हमारी GB, पुण्य MG और संयम KB हो गया, बच्चों के दिमाग में भगवान नहीं, आई फोन बैठ गया है- श्री ज्ञानबोधि विजयजी म.सा.

रतलाम में जैन समाज के आचार्यों का वर्षावास हो रहा है। आचार्य और मुनिगण प्रवचन में लोगों को धर्म, ज्ञान, दान आदि का महत्व बताते हुए उन्हें सद्मार्ग पर चलने की सीख दे रहे हैं।

इच्छा हमारी GB, पुण्य MG और संयम KB हो गया, बच्चों के दिमाग में भगवान नहीं, आई फोन बैठ गया है- श्री ज्ञानबोधि विजयजी म.सा.
सैलाना वालों की हवेली मोहन टॉकीज में पन्यास प्रवर मुनिराज श्री ज्ञानबोधि विजयजी म.सा. प्रवचन देते हुए।

सैलाना वालों की हवेली मोहन टॉकीज में प्रवचन देते हुए कहा

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । जन्म लिया है तो मृत्यु निश्चित है। यदि आपको डरना ही है तो मृत्यु से नहीं, जन्म से डरो। मृत्यु से बचने के लिए लोग कई तरह के जतन करते हैं लेकिन कोई बच नहीं पाता है और यदि जन्म ही नहीं होगा तो मोक्ष मिलेगा। दुनिया का सबसे बड़ा रोग ही जन्म है।

यह उद्गार सैलाना वालों की हवेली, मोहन टॉकीज में आयोजित प्रवचन के दौरान आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा के आज्ञानुवर्ति पन्यास प्रवर मुनिराज श्री ज्ञानबोधि विजयजी म.सा. ने जन्म और मृत्यु को परिभाषित करते हुए व्यक्त किए। श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ, गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी रतलाम के तत्वावधान में आयोजित प्रवचन में मुनिराज ने बताया कि जन्म लेना ही सबसे बड़ा अपराध है, इसलिए मृत्यु निश्चित है। यदि कोई प्रयत्न करना ही है तो जन्म नहीं लेना पड़े ऐसा प्रयास करें। जहां जन्म नहीं, वहां मृत्यु नहीं। व्यक्ति जो प्रयत्न अमर बनने के लिए करता है, वही उसकी मौत का कारण बनता है।

इच्छा ऐसी मां है जिसकी उम्र बेटी से छोटी होती है

मुनिराज ने कहा कि संसार में एक ही मां ऐसी है, जिसकी उम्र बेटी से छोटी होती है, जो कि इच्छा है, एक पूरी होती है और दूसरी पैदा हो जाती है। पहले घर में टीवी नहीं था तो इच्छा होती थी कि टीवी आ जाए लेकिन जब वह आई तो एलईडी और होम थिएटर की इच्छा होती है। आज बच्चों के दिमाग में भगवान नहीं, आई फोन बैठ गया है। वर्तमान दौर में इच्छा हमारी जीबी (गीगाबाइट) है, पुण्य एमबी (मेगाबाइट) और संयम केबी (किलोबाइट) का रह गया है।

जन्म जैसा कोई रोग नहीं, इच्छा जैसा कोई दुख नहीं

मुनिराज ने कहा कि जीवन में चार तरह के गड्ढे कभी नहीं भरते है, जोकि मुक्तिधाम, सागर, पेट और लोभ-इच्छा का गड्ढा है। ज्ञानी पुरुष कहते हैं कि जन्म जैसा कोई रोग नहीं होता और इच्छा जैसा कोई दुख नहीं। सबसे बड़ा पाप ही सुख है। दूसरे को दुख दिए बिना कभी सुखी नहीं बन पाओगे। सुख की डिमांड हमें दुर्गति की ओर ले जाती है। प्रवचन में बढ़ी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित रहे। 

आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा- संसार कोयले की खदान और संयम हीरे की खदान है

परम पूज्य प्रज्ञा निधि युगपुरुष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने गुरुवार को कहा कि संसार कोयले की, जबकि संयम हीरे की खदान है। हीरा कभी कालापन नहीं देता और कोयला कभी कालेपन से निकलने नहीं देता है। सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में प्रवचन देते हुए आचार्यश्री ने कहा कि प्रभु कृपा के पात्र बनने के बुराई से बचाव, अच्छाई से लगाव और सच्चाई का आभास होना जरूरी है। बुराई से बचोगे, तभी मस्त रह पाओगे। संयम में मस्ती इसलिए होती है, वहां बुराइयों का कोई स्थान नहीं होता। बुराई जब तक रहती है, तब तक अच्छाई का प्रकाश नहीं मिलता। बुराई जीवन में हमेशा जल्दी आती है, जबकि अच्छाई को वक्त लगता है। इसलिए व्यक्ति जितना बुराई से बचता है, उसमें प्रभु कृपा पाने की पात्रता आती जाती है। आचार्यश्री ने कहा कि सुपात्र बनने पर साधना, सिद्धि मिलते है। संसार में बेटा-बहू की, बेटी-दामाद की और ये शरीर-शमशान की अमानत है। मरने के बाद सबकों शमशान के हवाले होना, इसलिए इस बहुमूल्य जीवन का मोल समझो। कई भवों में भ्रमण के बाद मानव जीवन मिलता है। इसमें सबकों प्रभु कृपा की पात्र बनने का प्रयास करना चाहिए।

30 जून को नवकार भवन में होंगे श्री विजयराजजी के प्रवचन

आरंभ में विद्वान श्री धैर्यमुनिजी मसा ने धर्मोपदेश दिया। उन्होंने समाजनों से तप, त्याग और तपस्या से चातुर्मास की आराधना शुरू करने का आह्वान किया। संचालन दिव्यांशु मूणत नहीं किया। श्री हुक्मगच्छीय साधुमार्गी शान्त क्रांति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष मोहनलाल पिरोदिया एवं सचिव दिलीप मूणत ने बताया कि रतलाम में आचार्य प्रवर के साथ उपाघ्याय प्रज्ञारत्न विद्वद्ववरेण्य श्री जितेश मुनिजी मसा आदि ठाणा-13 एवं महासतियांजी आदि ठाणा-15 का वर्षावास हो रहा है। आचार्यश्री के प्रवचन 30 जून को नवकार भवन सिलावटों का वास में रखे गए हैं।