ऑब्जर्वेशन ! प्रो. अज़हर हाशमी की नज़र में ऐसा है आंखे तरेरता सूरज, आप भी पढ़ें और दूसरों को पढ़ाएं

सूरज आंखें तरेर रहा है। तपिश लगातार बढ़ती जा रही है। सूरज के इसी तेवर को लेकर ख्यात कवि प्रो. अज़हर हाशमी की यह कविता पढ़ें और तपिश का अंदाजा लगाएं।

ऑब्जर्वेशन ! प्रो. अज़हर हाशमी की नज़र में ऐसा है आंखे तरेरता सूरज,  आप भी पढ़ें और दूसरों को पढ़ाएं
सूरज की तपिश और कवि अज़हर हाशमी का ऑब्जर्वेशन।

सूरज 'ऑफिसर-इन-चार्ज'

'लू करती है 'लाठी-चार्ज'

सूखे कुएँ, नदी, झरने

जल हेतु जन के धरने

कैसे बुझ पाएगी प्यास ?

सोचें, मिलकर करें प्रयास।

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सूरज आग-बबूला है

गुस्से से मुँह फूला है

दहके खेत और खलिहान

झुलसे झुग्गी और मकान

कैसे मिट पाएगा त्रास ?

सोचें, मिलकर करें प्रयास।

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सूरज खुश हो सकता है

जग के दुःख धो सकता है

काटें कभी नहीं जंगल

नदियों में फिर होगा जल

सहेजें धरती की हर साँस।

सोचें, मिलकर करें प्रयास।

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रचना प्रो. अज़हर हाशमी की पुस्तक ‘अपना ही गणतंत्र है बंधु !’ से साभार।