आचार्यश्री ने सुनाई दो भाइयों की कथा और मुनिश्री किया आह्वान तो श्रद्धालुओं ने लिया संकल्प, कहा- पारिवारिक संपत्ति का विवाद कोर्ट में नहीं ले जाएंगे
रतलाम में आचार्य श्री विजयराज जी के प्रवचन जारी हैं। उन्होंने संपत्ति संबंधी पारिवारिक विवाद न्यायालय जाने से होने वाले नुकसान के बारे में बताया। इस मौके पर श्रावक-श्राविकाओं ने आचार्य श्री के सद्वचन से प्रभावित होकर परिवार के संपत्ति संबंधी को लेकर न्यायालय में नहीं जाने का संकल्प लिया।
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । परम पूज्य प्रज्ञा निधि युगपुरुष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने छोटू भाई की बगीची में दो भाइयों से जुड़ा एक प्रसंग सुनाया। मुनि श्री युगप्रभजी ने घर-परिवार के संपत्ति जेस जुड़े विवाद कोर्ट में नहीं ले जाने का आह्वान किया। इसका असर ऐसा हुआ कि धर्मसभा में उपस्थित लोगों ने पारिवारिक संपत्ति से जुड़े विवाद कोर्ट में नहीं ले जाएंगे।
आचार्यश्री ने बताया कि जो आनंद और जो शांति त्याग में है, वह राग में नहीं है। दो भाइयों के विवाद में एक भाई को संत के प्रवचन में जब ये बात समझ में आई, तो उनका सालों का विवाद एक पल में खत्म हो गया। इसके बाद दोनों में त्याग की होड़ लग गई। उन्होंने कहा कि संत बड़ी कोर्ट होते हैं, जो काम सुप्रीम कोर्ट नहीं कर सकती, वह संतों की वाणी कर सकती है। राग कई विवादों का कारण बनता है और त्याग समाधान है। इसलिए जड़ के प्रति राग और जीव के प्रति द्वेष का भाव कभी नहीं रखना चाहिए।
आचार्यश्री ने कहा कि दुर्मति परदोषों का दर्शन कराती है। परदोष दर्शन से पर निंदा, आत्म प्रशंसा, आग्रह वृत्ति और आक्षेप की भाषा निर्मित होती है। इससे सदैव बचने का प्रयत्न करो। उन्होंने कहा कि गुरु मार्ग दिखाते हैं, लेकिन उस पर चलना तो हमको ही पड़ता है। गुरु द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने से मंजिल जरूर प्राप्त होती है। इस मौके पर आचार्यश्री से कई तपस्वियों ने त्याग एवं तपस्या के प्रत्याख्यान भी लिए।आचार्यश्री से पूर्व उपाध्याय, प्रज्ञारत्न श्री जितेशमुनिजी मसा ने चातुर्मास को आत्म दर्शन करने का पर्व बताया। उन्होंने अधिक से अधिक तप, त्याग और तपस्या करने का आह्वान किया। विद्वान सेवारत्न श्री रत्नेश मुनिजी मसा ने भी संबोधित किया। संचालन हर्षित कांठेड़ ने किया।