डॉक्टर हैं या दलाल ? जिला अस्तपाल का यह डॉक्टर अपने एवजियों के साथ मरीजों पर बना रहा था निजी लैब में जांच कराने का दबाव, शिकायत हुई तो हुआ लापता, नोटिस जारी
जिला अस्पताल में पदस्थ डॉ. जीवन सिंह चौहान विगत कई दिनों से ड्यूटी से लापता हैं। इसे लेकर सवास्थ्य आयुक्त ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया है। डॉ. चौहान पर सरकारी अस्पताल में निजी लोगों के साथ राउंड लेने और मरीजों को निजी अस्पताल में इलाज और लैब में जांच कराने का दबाव देने का आरोप भी है।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । जिले के सरकारी अस्पतालों की बदहाली की वजह यहां पदस्थ डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस है। जिला अस्पताल में पदस्थ डॉ. जीवन चौहान ऐसे डॉक्टरों में शुमार हैं जिन्हें स्वास्थ्य सेवाएं संचालनालय द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। डॉ. चौहान पर आरोप है कि वे अपने एवजियों (दो बाहरी लड़कों) के साथ जिला अस्पताल में राउंड लेकर मरीजों को प्राइवेट लैब में जांच कराने के लिए दबाव बना रहे थे। इसकी शिकायत हुई तो वे लापता ही हो गए, उन्होंने अस्पताल आना ही छोड़ दिया।
मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य आयुक्त द्वारा जिला अस्पताल के चिकित्सा अदिकारी डॉ. जीवन सिंह चौहान को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। जारी नोटिस के अनुसार सिविल सर्जन सह मुख्य अस्पताल अधीक्षक ने कलेक्टर रतलाम के माध्यम से गत 10 अक्तूबर 2024 को स्वास्थ्य आयुक्त को पत्र प्रेषित किया था। इसमें बताया गया है कि डॉ. जीवन सिंह चौहान जिला अस्पताल में शासकीय कार्य (ड्यूटी) पर उपस्थित नहीं होते। इसके लिए सिविल सर्जन सह मुख्य अस्पताल अधीक्षक द्वारा उन्हें कई बार कारण बताओ सूचना पत्र भी जारी किए जा चुके हैं। इतना ही नहीं उनका एक दिन की वेतन भी काटा जा चुका है।
मरीज और परिजन ने की थी लिखित शिकायत
जारी नोटिस में बताया गया है कि गत 14 अगस्त 2024 को सिविल सर्जन सह मुख्य अस्पताल अधीक्षक को मरीज पुष्पा सोनी तथा उनकी परिजन सिमरन सोनी निवासी टाटा नगर जिला रतलाम ने एक लिखित शिकायत की थी। इसमें उन्होंने बताया था कि डॉ. चौहान सुबह राउण्ड के समय दो निजी प्रायवेट लड़कों (एवजियों) के साथ वार्ड का राउंड ले रहे थे और मरीजों का चैकअप कर रहं थे। इस दौरान उक्त दोनों लड़के मरीजों को निजी अस्पताल और नर्सिंगहोम तथा निजी लैब का पता लिखी पर्ची देकर वहां जांच और इलाज कराने के लिए कह रहे थे।
यह तो बेशर्मी की हद है
शिकायत मिलने पर सिविल सर्जन सह मुख्य अस्पताल अधीक्षक ने उसी समय डॉ. जीवन सिंह चौहान तथा ड्यूटी पर उपस्थित स्टाफ नर्स पुष्पा चौकीकर को बुलाकर पूछताछ की। पूछताछ में डॉ. चौहान ने खुद स्वीकार किया कि मरीजों को उनके ही निजी लोगों ने पर्ची दी है। स्वास्थ्य आयुक्त ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए डॉ. चौहान के कृत्य को स्वेच्छाचारिता का परिचायक माना है।
धूमिल हो रही प्रशासन की छवि
डॉ. चौहान को जारी कारण बताओ नोटिस में स्वास्थ्य आयुक्त द्वारा बताया गया है कि सिविल सर्जन सह अस्पताल अधीक्षक द्वारा कई बार व्यक्तिगत रूप से समझाइश दिए जाने के बाद भी डॉ. चौहान के व्यवहार में कोई सुधार नहीं हो रहा है। डॉ. चौहान का यह कृत्य मध्यप्रदेश सिविल सेवा आचरण नियम 1965 के नियम-3 के उपनियम, एक के खण्ड (i) (ii) (iii) के अनुरूप न होकर कदाचरण की श्रेणी में आता है। ऐसे कृत्य और व्यवहार से जहां गरीब मरीजों को परेशानी हो रही है वहीं जिला अस्पताल और प्रशासन की छवि भी धूमिल हो रही है।
15 दिन में मांगा जवाब
स्वास्थ्य सेवाएं संचालनालय द्वारा डॉ. चौहान से नोटिस प्राप्त होने के 15 दिन के भीतर अपना जवाब प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं। जवाब मय प्रमाण के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के माध्यम से देना होगा। समय सीमा में संतोषजनक पक्ष नहीं रकने पर शासन द्वारा डॉ. चौहान के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी गई है।
निजी अस्पताल में देते हैं ड्यूटी !
सूत्र बताते हैं कि डॉ. जीवन सिंह चौहान शहर के ही एक निजी अस्पताल में प्रैक्टिस करते हैं। बताया जाता है कि यह अस्पताल साझेदारी में उन्हीं के द्वारा संचालित किया जा रहा है। यह निजी अस्पताल कोविड काल में भी चर्चा में आया था। यहां रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी होने की चर्चाएं भी सुनी गईं थीं।
शराब के नशे में मारपीट करने का लग चुका है आरोप
डॉ. चौहान और उनके साथियों को मारपीट का आरोप भी लग चुका है। मामला 9 जुलाई 2022 का है। राजबाग कॉलोनी निवासी जयराज मकवाना ने आरोप लगाया था कि उन्होंने अपने मित्र डॉ. सी. पी. राठौर के साथ बोदीना स्थित अपने पॉली हाउस में पार्टी रखी थी। डॉ. राठौर ने अपने सीनियर डॉ. चौहान को भी आमंत्रित किया था। डॉ. चौहान अपने पांच अन्य साथियों को भी लेकर आए थे। वहां आते ही उन्होंने हुड़दंग शुरू कर दिया था। इसके लिए मना करने पर वे भड़क गए और मकवाना के साथ मारपीट की थी जिसमें वह गंभीर घायल हो गया था। उसे पहले रतलाम के एक निजी अस्पताल में और वहां से इंदौर ले जाना पड़ा था।