नन से 13 बार ज्यादती के केस में बिशप फ्रैंको मुलक्कल को बरी करने पर वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन ने उठाए सवाल, बोलीं- ये फैसला न्याय का अपमान है
केरल के बहुचर्चित नन रेप केस में बिशप फ्रैंको मुलक्कल को बरी किए जाने को वरिष्ठ अभिभाषक रेबेका जॉन ने न्याय का अपमान बताया है। उन्होंने फैसले पर सवाल उठाता हुए कहा है कि अदालत रेप पीड़िता की स्थिति समझने में विफल रही है।
कोट्टायम पुलिस ने फ्रैंको को 19 सितंबर 2018 को किया था गिरफ्तार, कोर्ट में 26 माह चले ट्रायल के बाद 14 जनवरी को हुआ बिशप को बरी करने का फैसला
एसीएन टाइम्स @ डेस्क । एक नन से 13 बार ज्यादती (Nun Rape Case) के कथित आरोपी कैथोलिक बिशप फ्रैंको मुलक्कल (Bishop Franco Mulakkal) को बरी किए जाने के केरल ट्रायल कोर्ट के फैसले पर सवाल उठ रहे हैं। सवाल वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन (Rebecca Jon) ने उठाया है। उन्होंने इस फैसले को न्याय का अपमान बताते हुए रेप पीड़िता की गवाही को अन्य मामलों से अलग रख कर देखे जाने की वकालत की है। रेबेका के अनुसार इस फैसले ने न्यायशास्त्र को ही उलट दिया है जो कि देश के कानून की अवहेलना है।
ऑपइंडिया.कॉम में प्रकाशित खबर के अनुसार केरल की एक अदालत द्वारा नन रेप केस में बिशप फ्रैंको मुलक्कल को बरी किए जाने के फैसले को लेकर वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने अदालत के फैसले पर सवाल उठाया है। बकौल रेबेका- “कोटाय्यम के ट्रायल कोर्ट के फैसले से जो मुझे समझ आया, वो ये है कि आरोपित की जगह रेप पीड़िता ट्रायल पर चली गई है। इस फैसले ने उसे (पीड़िता) नकारा है और उस पर अविश्वास जताया है, जो कि कानून में अस्वीकार्य है।”
पुलिस के साथ बिशप फ्रैंको मुलक्कल। (फाइल फोटो)
रेबेका जॉन कहती हैं कि- कोर्ट ने रेप पीड़िता के सबूतों को नकारने और उनपर अविश्वास जताने में काफी समय खर्च कर दिया। यह इसलिए हुआ क्योंकि पीड़िता ने अपनी पहली एफआईआर और अन्य सिस्टर्स के समक्ष अपने साथ हुए यौन अपराध की सीमा का खुलासा नहीं किया था। अदालत रेप पीड़िता की स्थिति समझने में विफल रही है। वकील जॉन के मुताबिक यह फैसला एक उपहास है। क्योंकि रेप पीड़िता की गवाही को हमेशा अन्य अपराधों की गवाही से अलग रखकर देखना चाहिए। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट भी पहले कई बार बोल चुका है।
एफआईआर तथ्यों का विश्वकोश नहीं, उच्च व केरल न्याया के निर्णयों के लिए भी सम्मान नहीं
ऑपइंडिया.कॉम के अनुसार वरिष्ठ वकील ने कहा है, कि- FIR तथ्यों का विश्वकोश नहीं है। इसमें केवल व्यापक मापदंडों का उल्लेख किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि बेशक नन ने पहली एफआईआर में यौन अपराध के विवरण का उल्लेख नहीं किया, लेकिन सहज होने के बाद उसने मजिस्ट्रेट के सामने पूरा घटनाक्रम बताया। इसिलए सिर्फ पहली प्राथमिकी के आधार पर ज्यादती पीड़िता की गवाही खारिज करना और बदनाम करना अनावश्यक था। इतना ही नहीं ट्रायल कोर्ट के निर्णय में उच्च न्यायालय और केरल न्यायालय के निर्णयों के लिए भी कोई सम्मान नहीं है।
शपथ लेने के बाद दिए बयान को नहीं माना, पुराने पर किया विश्वास
वरिष्ठ वकील ने फैसले को पढ़ने के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि फैसले के पीछे पूर्वनिर्धारित मानसिकता थी कि अभियुक्त को बरी किया जाना चाहिए। इसलिए कोर्ट ने शपथ लेने के बाद दिए गए बयान को नहीं माना, पुराने बयानों पर ही विश्वास किया। यह एक साहसिक पीड़िता और उसकी तीन साथियों को बदनाम करने जैसा है।
जानिए कौन हैं कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाने वाली वकील रेबेका जॉन
रेबेका जॉन, एडवोकेट (फाइल फोटो)
रेबेका जॉन देश की वरिष्ठ वकील हैं। वे दिल्ली के आरुषि तलवार हत्याकांड, शेयर घोटाले हर्षत मेहता स्कैम, हाशमीपुरा में हुए नरसंहार, 1984 में हुए सिख नरसंहार और 2जी स्पेक्ट्रम जैसे बड़े मामले संभाल चुकी हैं। ऐसी वरिष्ठ वकील का किसी न्यायालय के फैसले पर सवाल उठाना गंभीर और विचारणीय मामला है खास तक ज्यादती, अप्राकृतिक यौन संबंध और पीड़िता को धमकाने जैसे आरोप से जुड़े मामले को लेकर।
यह है पूरा मामला : कॉन्वेंट की ननों ने किया था बिशप के खिलाफ विरोध प्रदर्शन
रेप पीड़िता के पक्ष में विरोध प्रदर्शन करने वाली अन्य सिस्टर्स और नन को कॉन्वेंट से बाहर निकाला जाने लगा था। (फाइल फोटो)
कोट्टायम पुलिस को 29 जून 2018 को एक नन ने शिकायत दर्ज कराई। नन ने पुलिस को बताया था कि कैथोलिक बिशप फ्रैंको मुलक्कल ने अपने कॉन्वेंट में 2014 से 2016 के दरम्यिन उसके साथ 13 बार ज्यादती की। बिश पर नन को गलत तरीके से कैद करने, ज्यादती, अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने और धमकी देने का भी आरोप था। इसे लेकर कॉन्वेंट की कई नन ने बिशप के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया था। इसके चलते कोट्टायम पुलिस ने फ्रैंको को 19 सितंबर 2018 को गिरफ्तार कर चालान कोर्ट में पेश किया था। पुलिस द्वारा प्रस्तुत चार्जशीट दाखिल की गई थी जिसमें 83 गवाहों के बयान दर्ज थे। 26 महीने चले ट्रायल के बाद गत इस 14 जनवरी को कोर्ट ने बिशप को बरी कर दिया था। फैसला आने के बाद फ्रैंको मुअक्कल के वकील ने रिपब्लिक टीवी से कहा था कि पीड़िता झूठ बोल रही थी। उसके आरोपों में कोई सच्चाई नहीं थी। उन्होंने इस मामले को फ्रैंको मुअक्कल के खिलाफ नहीं, बल्कि ईसाइयत के खिलाफ बताया था।