पराक्रम के पर्याय नेताजी सुभाषचंद्र बोस... जिन्होंने कहा था- एक सैनिक की शहादत से ही देश हमेशा जिंदा रहता है

पराक्रम के पर्याय नेताजी सुभाषचंद्र बोस... जिन्होंने कहा था- एक सैनिक की शहादत से ही देश हमेशा जिंदा रहता है
नेताजी सुभाष चंद्र बोस (सोर्स- विकिपीडिया)

पराक्रम दिवस (नेताजी सुभाषचंद्र बोस जयंती) पर विशेष

- श्वेता नागर

स्वामी विवेकानंद की आँखों में पलता भारत माता की अस्मिता और स्वाधीनता का स्वप्न... और... इस स्वप्न को साकार करने के लिए स्वामी जी की प्रबल इच्छाशक्ति ने प्रकृति, पर्यावरण और परमात्मा को उनके इस दिव्य कार्य में सहभागी बनाया। इसलिए इसे दिव्य संयोग ही कहा जा सकता है कि बंगाल की भूमि से ही जन्में एक वीर साहसी युवक ने स्वामी जी के विचारों को मूर्त रूप दिया और वे थे वीरता, साहस के पर्याय नेताजी सुभाषचंद्र बोस।

स्वामी विवेकानंद

ऐसा लगता है कि 1893 शिकागो विश्वधर्म महासभा में स्वामी जी की दिव्य वाणी की अनुगूंज ने ब्रह्मांड की सकारात्मक शक्तियों को सक्रिय कर दिया और इसका परिणाम था, 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में सुभाष चंद्र बोस जैसी विभूति का जन्म। स्वयं सुभाषचंद्र बोस भी स्वामी विवेकानंद के विचारों से अत्यंत प्रभावित थे, वे स्वामी विवेकानंद को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे इसलिए उनके विचारों के प्रभाव के कारण ही सुभाष चंद बोस ने आई.सी.एस परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भी ब्रिटिश सरकार का अधिकारी न बनते हुए भारत की स्वतंत्रता संग्राम का योद्धा बनना पसंद किया। 
 सुभाषचंद्र बोस ने स्वयं कहा भी था, "हम सभी के अंदर बस एक इच्छा होनी चाहिए... मरने की इच्छा... ताकि भारत जी सकेl एक सैनिक की शहादत से ही देश हमेशा जिंदा रहता हैI"

 सुभाषचंद्र बोस की शुरुआती स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने रेवेनशा कॉलेजिएट स्कूल  (ravenshaw collegiate School) में दाखिला लिया। उसके बाद उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज कोलकाता में प्रवेश लिया। परंतु उग्र राष्ट्रवादी गतिविधियों के कारण उन्हें वहाँ से निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद वे इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय चले गये। 

 भारत आने के बाद वे महात्मा गांधी और चितरंजनदास से मिले। सुभाषचंद्र बोस चितरंजन दास के विचारों और कार्य योजना से ज्यादा प्रभावित हुए। इसलिए चितरंजन दास को वे अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। 1921 में चितरंजन दास की स्वराज पार्टी द्वारा 'फॉरवर्ड' के संपादन का कार्य भार भी संभाला। 'द इंडियन स्ट्रगल' नामक पुस्तक का पहला भाग भी लिखा। 

 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के1938-1939 के अधिवेशनों में अध्यक्ष पद पर भी वे चुने गये परंतु महात्मा गांधी से उनके विचारों का मेल न होने की वजह से उन्होंने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। कांग्रेस से खुद को अलग कर सुभाषचंद्र बोस ने भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए भारतीय सेना का गठन किया। बोस ने बर्लिन में स्वतंत्र भारत केंद्र की स्थापना की। और युद्ध के लिए भारतीय कैदियों से भारतीय सेना का गठन किया। आजाद हिंद रेडियो का आरंभ नेताजी सुभाष चंद बोस ने 1942 में जर्मनी में किया। इस रेडियो से ही बोस ने महात्मा गांधी को 'राष्ट्र पिता ' के रूप में संबोधित किया। गांधीजी से भले ही वैचारिक मतभेद हो लेकिन उनके प्रति सम्मान का भाव उनका हमेशा बना रहा। वास्तव में ये चरित्र ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस को महान बनाता है।

 जुलाई 1943 में जर्मनी से जापान नियंत्रित सिंगापुर पहुंचे। वहाँ से उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा 'दिल्ली चलो' जारी किया और आजाद हिंद सरकार तथा भारतीय राष्ट्रीय सेना के गठन की घोषणा की। ब्रिटिश भारत में स्वतंत्र भारत की पहली अस्थाई सरकार बनाने का श्रेय भी सुभाषचंद बोस को जाता है। जापान ने अंडमान और निकोबार द्वीप इस अस्थाई सरकार को सौंप दिये थे।

 नि:संदेह सुभाषचंद्र बोस के विचार भारत की स्वाधीनता का स्वप्न बुनते थे और उसे यथार्थ के धरातल पर मूर्त रूप देने का कार्य भी कर रहे थे। वर्तमान समय में भी उनके विचार युवाओं को जीवन जीने की कला सिखाते हैं क्योंकि उनके विचारों में जीवन दर्शन भी है और मनोविज्ञान को समझने की गहराई भी। साहस, ज्ञान, विवेक और अध्यात्म का समन्वय उनके व्यक्तित्व को संपूर्णता प्रदान करता है। ऐसे उनके कई विचार हैं जिनमें उनके व्यक्तित्व की इस संपूर्णता के दर्शन होते है। कई बार जीवन में संघर्षों का सफर हमें थका देता है। इससे हमारा आत्मविश्वास कमजोर होने लगता है लेकिन संघर्षों को लेकर सुभाषचंद्र बोस ने बहुत ही सकारात्मक बात कही-

"संघर्षों ने मुझे मनुष्य बनाया, इसके कारण मुझमें ऐसा आत्मविश्वास उत्पन्न हुआ जो मेरे में पहले कभी नहीं था।"

 18 अगस्त 1945 को फर्मोसा जापान शासित (अब ताईवान) में एक विमान दुर्घटना में सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु हो गयी लेकिन इनकी मृत्यु को लेकर संशय बना रहा। वैसे भी सुभाषचन्द्र बोस अपने क्रांतिकारी विचारों और कार्यों से सदैव अमर रहेंगे क्योंकि सुभाषचंद्र बोस ने कहा भी था-

 "एक व्यक्ति एक विचार के लिए मर सकता है लेकिन वह विचार उसकी मृत्यु के बाद, हज़ारों लोग में अवतार लेगा।"

श्वेता नागर