विश्व पृथ्वी दिवस पर विशेष : धरती की पीर हरें अब हम ! - अज़हर हाशमी
विश्व पृथ्वी दिवस पर प्रोफेसर अजहर हाशमी का यह गीत पढ़ें, पढ़ाई और धरती को बचाएं।

धरती की पीर हरें अब हम !
खुदगर्जी की ख़ातिर हमने,
धरती को तोड़ मरोड़ दिया।
मिट्टी रौंदी जंगल काटे,
नदियों का नीर निचोड़ दिया।
सुधरें-सुधरें-सुधरें अब हम !
धरती की पीर हरें अब हम !
'धरती माँ-धरती-माँ' कहकर,
पहले तो रिश्ते को जोड़ा।
फिर घाव दिये नित धरती को,
धरती के मस्तक को फोड़ा।
धरती के घाव भरें अब हम !
धरती की पीर हरें अब हम !
आँखों में आँसू लिए हुए
हमको ही देख रही धरती।
सहमी-सहमी कातर नजरें,
हम पर ही फेंक रही धरती।
समझें ! नहीं देर करें, अब हम !
धरती की पीर हरें अब हम !
(कवि प्रो. अज़हर हाशमी के गीत संग्रह 'कभी काजू घना, कभी मुट्ठी चना' से साभार।)