विश्व पृथ्वी दिवस पर विशेष : धरती की पीर हरें अब हम ! - अज़हर हाशमी

विश्व पृथ्वी दिवस पर प्रोफेसर अजहर हाशमी का यह गीत पढ़ें, पढ़ाई और धरती को बचाएं।

विश्व पृथ्वी दिवस पर विशेष : धरती की पीर हरें अब हम ! - अज़हर हाशमी
विश्व पृथ्वी दिवस 2025

धरती की पीर हरें अब हम !

खुदगर्जी की ख़ातिर हमने,

धरती को तोड़ मरोड़ दिया।

मिट्टी रौंदी जंगल काटे,

नदियों का नीर निचोड़ दिया।

सुधरें-सुधरें-सुधरें अब हम !

धरती की पीर हरें अब हम !

'धरती माँ-धरती-माँ' कहकर,

पहले तो रिश्ते को जोड़ा।

फिर घाव दिये नित धरती को,

धरती के मस्तक को फोड़ा।

धरती के घाव भरें अब हम !

धरती की पीर हरें अब हम !

आँखों में आँसू लिए हुए

हमको ही देख रही धरती।

सहमी-सहमी कातर नजरें,

हम पर ही फेंक रही धरती।

समझें ! नहीं देर करें, अब हम !

धरती की पीर हरें अब हम !

(कवि प्रो. अज़हर हाशमी के गीत संग्रह 'कभी काजू घना, कभी मुट्ठी चना' से साभार।)