बड़ा खुलासा ! कांग्रेस का 50 प्रतिशत कमीशन का आरोप गलत, नगर निगम में तो सिर्फ इतना बंटता है कमीशन, जानिए- किसका है कितना हिस्सा ?

रतलाम नगर निगम में कमीशनखोरी व्याप्त होने के आरोप लगते हैं। यहां कहां-कहां कितना कमीशन लगता है, यह जानने का प्रयास एसीएन टाइम्स ने किया है। जानने के लिए पढ़ें यह खबर।

बड़ा खुलासा ! कांग्रेस का 50 प्रतिशत कमीशन का आरोप गलत, नगर निगम में तो सिर्फ इतना बंटता है कमीशन, जानिए- किसका है कितना हिस्सा ?
नगर निगम रतलाम।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । पिछले दिनों नगर निगम में व्याप्त कमीशनखोरी को लेकर काफी हो-हल्ला मचा। कांग्रेस ने तो 50 फीसदी तक कमीशन लिए जाने का आरोप सरकार पर मढ़ दिया। हालांकि, नगर निगम के मामले में एसीएन टाइम्स की पड़ताल में यह आरोप सही साबित नहीं हुआ। यहां केवल 22 से 24 फीसदी तक ही कमीशन बंटता है। इसी में से ‘नीचे से लेकर ऊपर तक’ की हिस्सेदारी है। अफसर हों, कर्मचारी हों या फिर जनप्रतिनिधि, सभी के लिए कुछ न कुछ नियत है जिसे देने में किसी को कोई ‘ऐतराज’ नहीं। यहां हल्ला तभी मचता है जब मांग बढ़ जाती है अथवा समय से पहले हिस्सेदारी की अदायगी का तगादा होता है।

नगर निगम में कोई भी काम बिना लेन-देन के नहीं होने के आरोप दशकों से लग रहे हैं। यह पहली बार है जब इसकी मुखालफत सड़कों तक भी दिखी और सुनाई दी। पिछले दिनों ऐसे तीन-चार मामले सामने आए जिसके बाद लोगों ने नगर निगम को ‘नगद निगम’ कहना शुरू कर दिया। कांग्रेस के एक नेता ने तो कमीशनबाजी को लेकर धरना-प्रदर्शन तक कर डाला। वहीं भाजपा के एक पदाधिकारी ने पार्टी से इस्तीफा देने की पेशकश कर दी। पिछले दिनों नगर निगम के सारे ठेकेदार लामबंद होकर सड़क पर उतर गए। उन्होंने कलेक्टर, मुख्यमंत्री सहित विभिन्न स्तरों पर भेजी शिकायत में निगम के अफसरों द्वारा ‘तय कमीशन’ से ज्यादा की मांग करने का खुलासा किया। शिकायत में कमीशन एडवांस में मांगने तक के भी आरोप हैं। ठेकेदारों के इस एक्शन का रिएक्शन निगम के एक इंजीनियर के निलंबन के रूप में सामने आया।

कांग्रेस को मिल गया घेरने का मौका, लेकिन...

निगम में व्याप्त कमीशनखोरी सुर्खियों में आते ही कांग्रेस को नगर सरकार और प्रदेश सरकार को घेरने का मौका मिल गया। पूर्व महापौर और कांग्रेस नेता पारस सकलेचा ने तो 50 फीसदी कमीशन तक के आरोप लगा डाले। कमीशनबाजी के आरोपों की सच्चाई जांचने के लिए एसीएन टाइम्स ने नगर निगम के गलियारों में झांकने की कोशिश की। इस दौरान कांग्रेस द्वारा लगाए गए 50 प्रतिशत कमीशन वाली सरकार के दावे की पुष्टि तो नहीं हुई लेकिन नगर निगम में इसका आधा (22 से 24 फीसदी तक) कमीशन निर्धारित होने की बात जरूर सुनने को मिली। बताया जा रहा है कि जब तक इस ‘कथित निर्धारित कमीशन’ तक मामला सीमित रहा तब तक कोई आवाज नहीं उठी, लेकिन जैसे ही इसकी मांग सुरसा के मुंह की तरह बढ़ी, हल्ला हो गया। हल्ले की दूसरी वजह कतिपय अफसरों द्वारा कमीशन एडवांस में मांगा जाना भी बताया जा रहा है।

बिल बनने से लेकर पास होने तक हर काम का दाम

सूत्र बताते हैं कि नगर निगम में काम स्वीकृत होने से लेकर बिल पास होने तक हर काम का ‘दाम’ तय है। ‘चढ़ावे’ की शुरुआत काम का एग्रीमेंट होते ही हो जाती है। सूत्रों की मानें तो किसी भी काम का बिल बनवाना हो तो बिल की कुल राशि का 0.5 (आधा) प्रतिशत चढ़ावा देने की रस्म है। यह बिल हस्ताक्षर के लिए अलग-अलग स्तर पर पहुंचता है। इसमें उपयंत्री के यहां 2 प्रतिशत, सहायक यंत्री के यहां 3 प्रतिशत और उससे ऊपर के अधिकारी का 3 प्रतिशत नितय है। इसके बाद बिल कम्प्यूटर पर चढ़ता हैं जिसके लिए 500 से 1000 रुपए तक का तिलक करना पड़ता है।

इसके बाद गेंद (बिल) लेखा शाखा के पाले में पहुंचती है जहां 10.50 प्रतिशत से लेकर 11 प्रतिशत तक सेवा शुल्क देने का ‘शिष्टाचार’ है। इसमें से लेखा शाखा वालों के हिस्से केवल 1.50 प्रतिशत आता है, बाकी आला अफसर से लेकर उच्च पदस्थ जनप्रतिनिधियों तक बंटता है। याद रहे कि इसमें संबंधित वार्ड के पार्षद शामिल नहीं हैं। उनके लिए 2 प्रतिशत का अलग से प्रावधान है। यह पार्षद की वरिष्ठता और क्षमता के स्तर पर बढ़ कर 5 प्रतिशत तक भी जा सकता है। बिल बगैर ऑडिट आपत्ति के पास हो जाए और कोई रुकावट नहीं आए, उसके लिए 1 प्रतिशत अलग। भूमि पूजन करवाना, उसमें आमंत्रित खास और आम के स्वल्पाहार का बंदोबस्त एवं अन्य खर्च के 1 प्रतिशत से 1.50 प्रतिशत तक और जोड़ लीजिए।

एप्रोच हो तो रेवड़ी यहां भी बंटती है

सरकार ने निर्माण संबंधी कार्यों के लिए पैमाना और एसओआर तय कर रखा है। फिर भी यदि किसी को नगर निगम सीमा में कोई काम करना है तो उसे टेंडर एसओआर से 15 से 20 फीसदी कम का ही टेंडर डालना होगा। इससे कम का टेंडर डालने पर स्वीकृत होने की कोई गारंटी नहीं। अगर टेंडर डालने वाला ‘रसूखदार’ है तो ‘रेवड़ी’ यहां भी बंटती है। एसओआर से महज 6 से 10 प्रतिशत कम में भी टेंडर स्वीकृत हो सकता है। वहीं अगर रसूख नहीं है और चढ़ावे से परहेज है तो फिर टेंडर भी शायद स्वीकृत हो और यदि हो गया तो बिल पास होने में 6 से 8 माह तक लग सकते हैं।

इनकी प्रतिक्रिया का इंतजार है

नगर निगम में कमीशनखोरी रोकने को लेकर क्या कदम उठाए गए हैं या उठाए जा रहे हैं, यह जानने के लिए महापौर प्रहलाद पटेल को कॉल किया गया लेकिन बात नहीं हो सकी। वहीं ठेकेदारों द्वारा पूर्व में की गई शिकायत के संबंध में आगे क्या कार्रवाई की गई इस बारे में आयुक्त एपीएस गहरवार कोई स्थिति स्पष्ट नहीं कर सके।

डिस्क्लेमर

नगर निगम में कमीशनखोरी हावी होने के आरोपों और काम के उक्त दाम को लेकर एसीएन टाइम्स कोई भी दावा नहीं करता। इसमें अंतर भी हो सकता है। ऐसे आरोंपों और चर्चाओं की सच्चाई अपने स्तर भी जांच सकते हैं।