पुस्तक समीक्षा : ‘कभी काजू घना, कभी मुट्ठी चना’ में जीवन का दर्शन है तो श्रीमद् भगवत गीता के कर्म का संदेश भी- श्वेता नागर
प्रो. अज़हर हाशमी का गीत संग्रह ‘कभी काजू घना, कभी मुट्ठी चना’ मानवीय भावनाओं और सकारात्मक प्रेरणा का प्रकाश पुंज है। गीत संग्रह की विशेषताओं को जाने लेखिका श्वेता नागर की कलम से।
श्वेता नागर
"जिंदगी दर्द भी, जिंदगी फ़ाग भी |
जिंदगी नीर भी, जिंदगी आग भी |
जिंदगी रोशनी तो अंधेरा कभी |
सुख घनेरा कभी, दुख घनेरा कभी |
इसलिए कर्म का गीत ही गुनगुना |
कभी काजू घना, कभी मुट्ठी चना |"
गीत की इन पंक्तियों में जीवन का दर्शन छिपा हुआ है और श्रीमद् भगवत गीता के कर्म का संदेश भी निहित है| जिसका सार यह है कि संघर्ष पथ पर विचलित हुए बिना अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थिति में अपना धैर्य खोए बिना निरंतर चलते रहने का नाम ही जिंदगी है| जीवन यात्रा की इस वास्तविकता से रू-ब-रू कराती हैं प्रसिद्ध साहित्यकार, गीतकार, भारतीय संस्कृति के अध्येता और गीता मनीषी प्रो. अज़हर हाशमी के नवीन गीत संग्रह 'कभी काजू घना कभी मुट्ठी चना' का यह शीर्षक गीत|
साहित्यकार या कवि जब अपनी रचना में कल्पना, कलात्मकता के पुट के साथ लेखन के अनुशासन को बनाए रखते हुए स्वयं के अनुभव की कहानी भी कह जाता है तब उसकी उस रचना / कृति में सच्चाई और ईमानदारी का आभा मंडल विकसित हो जाता है और यह पाठक के हृदय और मन-मस्तिष्क की गहराई को स्पर्श कर जाता है। इस जिस कारण कविता / रचना के मर्म को समझने में देर नहीं लगती| कुछ ऐसे ही अनुभव, सच्चाई और ईमानदारी का आभा मंडल लिए है प्रो. हाशमी का यह गीत संग्रह|
प्रो. हाशमी ने अपने जीवन में संघर्ष के शूल भी देखे हैं और उपलब्धियों के फूल भी| जीवन की इस यात्रा के उतार चढ़ाव में गीत की इन पंक्तियों "कभी काजू घना, कभी मुट्ठी चना" को ही हर क्षण अपना आदर्श माना| इससे जुड़ा मेरा संस्मरण है, अभी हाल ही में वे रतलाम के एक निजी अस्पताल में गंभीर बीमारी से जूझते हुए डेढ़ महीने के लगभग भर्ती रहे| 15 से 20 दिन तक आईसीयू में भी रहे लेकिन इन डेढ महीनों में उनके स्वास्थ्य की स्थिति स्थिर नहीं दिखाई दी| तब हम सभी उनके विद्यार्थियों / शिष्यों को जो निरंतर उनका स्वास्थ्य पूछने अस्पताल जा रहे थे, हमें निराशा होने लगी कि वे अब कभी भी पहले की तरह चल फिर नहीं पाएंगे और लेखन कार्य तो दूर की बात है। लेकिन वे हमारे मनोभाव पढ़ते हुए हमसे कहते कि मैं बस फिर से पहले की तरह हो जाऊंगा और फिर से लेखन कार्य करने लगूँगा| उनके ये शब्द सुनकर मैंने भावुक होकर कहा कि, सर अब आपके शब्द ब्रह्म की ताकत से ही ये चमत्कार हो सकता है और ऐसा ही हुआ| उनके सकारात्मक भावों ने ही संभव कर दिखाया|
गंभीर रूप से बीमार होने के बावजूद भी उन्होंने अपना आत्मबल बनाए रखा और बीमारी को मात देते हुए पुनः लेखन में दुगने उत्साह से तल्लीन हो गए| उनकी जिजीविषा उन्हें उनके कर्तव्य पथ पर दृढ़ संकल्पित रखती है। इसलिए चाहे परिस्थितियां कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों वे उससे निपटना जानते हैं| इसका प्रमाण है सकारात्मक ऊर्जा से भरा यह गीत संग्रह जिसमें प्रकृति, पर्यावरण, धर्म, दर्शन, ज्ञान, विज्ञान, आत्मविश्वास, संस्कृति, संस्कार, राष्ट्र प्रेम, नारी सम्मान और विविध विषयों को छूते गीत हैं| युवाओं को अवसाद / तनाव के अंधकार से दूर करते प्रो. हाशमी ने कई गीत / गज़ल की रचना की है और ऐसी ही एक रचना है (पृष्ठ क्र. - 85)...
"रोशनी वही जो अंधकार छांटती,
अमावस्या को जो हर बार डांटती,
जलते हुए दीप का प्रकाश बांटती,
तम के सामने सदैव शेर रोशनी,
सेर अंधेरा तो सवा सेर रोशनी|"
जीवन में कई बार प्रयास करने के बाद भी सफलता या अपना वांछित लक्ष्य प्राप्त न कर पाने के कारण युवा वर्ग हताश हो जाता है। इस गीत संग्रह में ऐसा ही एक और गीत है जो हताश युवाओं में आत्म विश्वास और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है (पृष्ठ क्र. - 98)-
"आँख तेरी क्यों नम?
खत्म होगा यह तम|
कोई जलता हुआ,
एक दीया तो धर|
क्यों उड़ानों से डर?
पाएगा लक्ष्य तू,
एक कोशिश तो कर!"
प्रो. हाशमी गीता मनीषी के रूप में भी पहचाने जाते हैं। श्रीमद् भगवत गीता के ज्ञान को आत्मसात करने वाले हाशमी ने देश ही नहीं विश्व में गीता के दर्शन को अपने व्याख्यानों / लेखों / रचनाओं के माध्यम से पहुंचाया है| गीता का यह संदेश कि जैसा कर्म हम करते हैं उसके परिणाम लौटकर हमारे पास ही आते हैं|" कर्म कभी पीछा नहीं छोड़ता श्रीमान्!" (पृष्ठ क्र. - 18) इस गीत में यही भाव है-
"मन दुखाओगे, तुम्हारा भी दुखेगा मन,
धन जो छीनोगे, तुम्हारा भी छिनेगा धन|
छल जो तुम करोगे, खुद भी छले जाओगे,
तुमको भी चुभेंगे जो कांटे बिछाओगे|
जिसके अंदर रहते तुम, वो कांच का मकान,
कर्म कभी पीछा नही छोड़ता श्रीमान्|"
प्रो. हाशमी ने सदैव भारतीय संस्कृति, संस्कार और परंपरा के प्रति अपने श्रद्धा भाव को व्यक्त किया है और इसी भाव को प्रदर्शित करता यह गीत "जग का गौरव मेरा देश" (पृष्ठ क्र. 99) जिसमें राष्ट्र गौरव के साथ ही श्री कृष्ण के गीता ज्ञान का चिंतन भी समाहित है-
"वृंदावन की कोई कहानी,
यमुना की लहरें ले आतीं
कर्म बड़ा फल से होता है,
गीता का चिंतन दे जाती
यहाँ आज भी गुंजित होता
गीता का संदेश,
जग का गौरव मेरा देश
मेरी धरती स्वर्ण प्रदेश|"
'बेटियां शुभकामनाएं हैं, बेटियां पावन दुआएं है' इन पंक्तियों ने प्रो. हाशमी को एक नई पहचान दी, वह है बेटियां शुभकामनाएं वाले हाशमी जी| जी हां, बेटियों के लिए लिखी इस कविता ने उन्हें प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचाया| दूरदर्शन / आकाशवाणी केंद्रों के माध्यम से प्रसारित बेटियों के प्रति उनके संवेदनशील भावों को देश और दुनिया के कोने - कोने में पहुंचाया| वैसे ही इस गीत संग्रह में भी प्रो. हाशमी ने नारी गरिमा को समर्पित गीतों की रचना की है, ऐसा ही एक गीत है- नारी तुम सदय - सरल महान हो (पृष्ठ क्र. 38)...
"तुम ममत्व का पवित्र धाम हो,
तुम समत्व स्नेह का सुनाम हो|
तुम सुयश - सुकर्म की उड़ान हो,
नारी तुम सदय - सरल महान हो|"
प्रकृति / पर्यावरण के प्रति भी अपना दायित्व निभाते हुए प्रो. हाशमी ने प्रकृति के उदात्त भावों को व्यक्त करती कई कविताओं और गीतों की रचना की है जिनमें प्रकृति / पर्यावरण को संरक्षित रखने का संदेश दिया गया है| ऐसे ही वृक्ष की महिमा का गुणगान करता गीत "वृक्ष निभाता रिश्ता नाता" (पृष्ठ क्र. - 56) में बच्चों को प्रकृति से जोड़ने के लिए वृक्षों में मानवीय रिश्तों के पवित्र / स्नेहपूर्ण भावों को व्यक्त किया गया है जैसे -
"पीपल पावन पिता सरीखा, तुलसी जैसे माता|
त्रिफला बहन-बहू-बिटिया सा, बेर सरीखा भ्राता।
महुआ मामा जैसा लगता, वन उपवन महकाता|
आम वृक्ष नाना सा वत्सल, मीठे फल बरसाता |"
एक समीक्षक के रूप में नहीं, पाठक के रूप में यह कह सकती हूँ कि निश्चित ही प्रो. हाशमी का यह गीत संग्रह (कभी काजू घना, कभी मुट्ठी चना) मानवीय भावनाओं और सकारात्मक प्रेरणा का प्रकाश पुंज है|