अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस : ‘जन्म कन्या का, विधाता का शुभम् वरदान समझो...’, ये ‘बेटियां पावन दुआएं हैं’ और ‘...रक्षा कवच सी’ – अज़हर हाशमी
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर बेटियों का महत्व बताती कवि अज़हर हाशमी की ये खास अभिव्यक्ति, जिससे बेटियों को तो अपने आप पर गर्व होगा ही, उनके माता-पिता को भी गर्व की अनुभूति होगी।
'अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस' और कवि 'अज़हर हाशमी' की अभिव्यक्ति
कम नहीं कन्या, गुणों के मामले में
जन्म कन्या का, सहज सम्मान समझो,
वह विधाता का शुभम् वरदान समझो !
कम नहीं कन्या गुणों के मामले में,
उसकी गुण-गरिमा को गौरव-गान समझो !
जन्मी बिटिया यानी बरकत का ख़जाना-
साथ लाई, बात ऐ ! इंसान समझो !
बालिका की परवरिश सौभाग्य मानो,
उसकी यश-गाथा को अपना मान समझो !
मुश्किलों में हो तो बिटिया की दुआ लो,
मुश्किलें होंगी सभी आसान समझो ।
(समाचार-पत्र 'पत्रिका' से साभार)
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बंद कर दो भ्रूण हत्या बेटियों की...
न तो उनको बोझ, न ही फांस समझो,
है गुजारिश बेटियों को खास समझो।
बेटियों को हौसला दो, प्रेरणा दो,
प्राण को गतिशील रखती सांस समझो।
कामयाबी की कहानी, कह रही हैं,
रच रही हैं बेटियां इतिहास समझो।
बादशाहों तक ने खुद अंतिम समय में,
बेटियों पर ही किया विश्वास समझो।
बंद कर दो भ्रूण – हत्या बेटियों की,
वरना कुदरत के कहर को पास समझो।
(गीत संग्रह ‘अपना ही गणतंत्र है बंधु’ से साभार)
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बेटियां रक्षा-कवच सी
बेटियां तो शुभ शकुन की टिकलियां हैं
बेटियां आंखों की दृष्टि - पुतलियां हैं।
घर अगर तन है तो इस तन के हृदय की-
बेटियां रक्षाकवच - सी पसलियां हैं।
द्वार पे हल्दी से, मां के साथ मिलकर-
बेटियां शुभ - लाभ लिखती उंगलियां हैं।
तीज या त्योहार की हैं गीतिकाएं
बेटियां वर्षा - ऋतु की कजलियां हैं।
परिवार की पूनी का कतता सूत जिन पर
बेटियां तो दरअसल वे तकलियां हैं।
स्नेह के रिश्तों से घर को बांधती हैं
बेटियां सद्भाव - गुंथित सुतलियां हैं।
(हिंदी ग़ज़ल संग्रह ‘मामला पानी का’से साभार)
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बेटियां शुभकामनाएं हैं...
बेटियां शुभ कामनाएं हैं,
बेटियां पावन दुआएं हैं।
बेटियां जीनत हदीसों की,
बेटियां जातक कथाएं हैं।
बेटियां गुरु ग्रंथ की वाणी,
बेटियां वैदिक ऋचाएं हैं।
जिनमें खुद भगवान बसता है,
बेटियां वे नंदनाएं हैं।
त्याग-त-गुण-धर्म-साहस की,
बेटियां गौरव कथाएं हैं।
मुस्कुरा कर पीर पीती हैं,
बेटियां हर्षित व्यथाएं हैं।
लू लटप को दूर करती हैं,
बेटियां जल की घटाएं हैं।
दुर्दिनों के दौर में देखा,
बेटियां संवेदनाएं हैं।
गर्म झोंके बन रहे बेटे,
बेटियां ठंडी हवाए हैं।
(गीत संग्रह ‘अपना ही गणतंत्र है बंधु’ से साभार)
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इसलिए, ‘बालिका को... सम्मान दें हम...’
बालिका को पूर्ण आदर, मान दें हम
स्नेह का आशीष का अनुदान दें हम।
बालिका के जन्म को वरदान मानें
बालिका को इस तरह सम्मान दें हम।
( मुक्तक संग्रह ‘मुक्तक शतक’ से साभार)
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(रचनाकार 'अज़हर हाशमी' ख्यात कवि, लेखक, विचारक, व्यंग्यकार, ग़ज़लकार, समालोचक एवं पूर्व प्राध्यापक हैं। आप पर देश भर के अलग-जअगल विश्वविद्यालयों से व्यंग्य, ग़ज़ल और गीत विधाओं पर पीएचडी हो चुकी हैं।)