52वर्षीय परंपरा लगातार ! बंगाली समाज का श्री सार्वजनिक दुर्गा पूजा महोत्सव शुरू, आज होगी संधि पूजा

रतलाम में बंगाली समाज द्वारा श्री सार्वजनिक दुर्गा पूजा महोत्सव मनाने की परंपरा 52 साल से निरंतर जारी है। इसके तहत 30 सितंबर को सिंधी पूजा की जाएगी।

52वर्षीय परंपरा लगातार ! बंगाली समाज का श्री सार्वजनिक दुर्गा पूजा महोत्सव शुरू, आज होगी संधि पूजा
बंगाली समाज के श्री सार्वजनिक दुर्गा पूजा महोत्सव के लिए तैयार की गई दुर्गा प्रतिमा।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । बंगाली समाज का श्री सार्वजनिक दुर्गा पूजा महोत्सव 28 सितंबर को देवी बोधन एवं कल्पारंभ के साथ शुरू हो चुका है। उत्सव की शुरुआत आमंत्रण, अधिवास एवं घट स्थापना के साथ हुई। 30 सितंबर को दोपहर 01.21 से 02.09 बजे तक संधि पूजा की जाएगी। इसमें 108 दीपक और 108 कमल से आराधना होगी।

रतलाम में बंगाली समाज की श्री सार्वजनिक दुर्गा पूजा महोत्सव की परंपरा 1974 में स्थानीय कालिका माता मंदिर प्रांगण से हुई थी। तब से यह परंपरा निर्बाध जारी है। भले ही बंगाली समाज के परिवारों की संख्या यहां बहुत कम है लेकिन दुर्गा पूजा महोत्सव की भव्यता कई गुना ज्यादा होती है। बंगाल की प्रसिद्ध एवं दर्शनीय पूजा को रतलाम में भी यथासंभव प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाता है। बंगाली समाज ने 30 सितंबर को होने वाली संधि पूजा में शामिल होने का आह्वान सभी भक्तों से किया है।

बता दें कि, बंगाल में दुर्गा पूजा उत्सव बंगालियों के श्रद्धा समर्पण एवं गौरव का विषय होता है। हर बंगाली व्यक्ति इस बात के लिए अवश्य प्रयत्न करता है कि वह जहां भी रहे वहां उसकी ईष्ट देवी मां दुर्गा की आराधना और उपासना का अवसर अवश्य मिले। दैवीय शक्ति की प्रतीक माँ दुर्गा के आसुरी शक्ति के प्रतीक महिषासुर पर विजय के रूप यह पूजा सनातन संस्कृति का संदेश देती है। भगवान श्रीराम द्वारा रावण पर विजय प्राप्त करने हेतु किया गया अकाल देवी बोधन इस पूजा को विशेष महत्व दर्शाता है।

इसलिए होता है पांच दिवसीय अनुष्ठान

नव दिवसीय नवरात्रि साधना की तुलना में बंगाली समाज की दुर्गा पूजा षष्टी तिथि से प्रारंभ होकर विजयदशमी तक पांच दिनों के लिए होती है। इस पूजा में यह माना जाता है कि कैलाशवासिनी देवी मां दुर्गा ससुराल से अपने मायके पांच दिवसीय प्रवास के लिए पधारी हैं, इसलिए उनके आगमन एवं प्रस्थान के समय समाज की महिलाएं विशेष रूप से पूजा अर्चना करती हैं। इस दौरान शंखध्वनि, ढाक और ढोल और "बोलो बोलो दुर्गा माई की जय" के उद्घोष के साथ इस पूजा उत्सव का रूप ले लेती है। 5 दिवसीय पूजा में सुबह-शाम आरती, पूजा, पुष्पांजलि का विशेष क्रम रहता है। अष्टमी की संधि पूजा और विजयादशमी पर दर्पण विसर्जन और सिंदूर खेला बंगाली समाज की पूजा का विशेष आकर्षण होता है।

1974 में कालिका माता से शुरू हुई थी परंपरा

रतलाम में बंगाली समाज के स्थायी निवासी परिवार मात्र 20 - 25 ही हैं लेकिन अस्थायी बंगालियों एवं माँ दुर्गा के आराधकों के साथ मिलकर पूरे उत्साह और उमंग के साथ पूजा का आयोजन किया जाता है। 1974 में कालिका माता मंदिर प्रांगण में प्रारम्भ हुई बंगाली समाज की दुर्गा पूजा, बाद में मांटेसरी स्कूल प्रांगण तथा वर्तमान में श्री रामकृष्ण विवेकानंद आश्रम जवाहन नगर में हो रही है। इस बीच प्रतिकूल परिस्थितियों में भी बंगाली समाज के सदस्यों ने इस पूजा को निर्बाध जारी रखा है। बंगाल से आए मूर्तिकार द्वारा महिषासुर मर्दिनी माँ दुर्गा एवं उनके परिवार की आकर्षक प्रतिमा का निर्माण करवाया जाता है। जिसमें शक्तिस्वरूपा माँ दुर्गा, समृद्धी की देवी माँ लक्ष्मी, ज्ञान की देवी माँ सरस्वती, सदबुद्धि के देवता श्री गणेश तथा सार्थक शौर्य के प्रतीक श्री कार्तिकेय की प्रतिमा का निर्माण कर पूजा अर्चना की जाती है।

बाहर से आते हैं पुरोहित, केले के पौधे को बनाते हैं श्री गणेश की अर्धांगिनी

दुर्गा पूजा के लिए पुरोहित को विशेष रूप से बाहर से आमंत्रित किया जाता है। आयोजक बंगाली समाज रतलाम ने रतलाम की धर्मप्रेमी जनता को शक्ति के आराधना पर्व पर माँ दुर्गा पूजा उत्सव हेतु आमंत्रित किया है। बंगाली समाज की सप्तमी पूजा में मात्र कालरात्रि रूप शक्तिस्वरूपा माता ही नहीं अपितु केले के पौधे की भी भगवान गणेश की पत्नी के रूप में पूजा की जाती है। इसमें केले के पौधे के साथ बेल की लकड़ी, अपराजिता और अशोक की डाल और धान के गुच्छे को सजाकर उसे बंगाली साड़ी पहनाया जाती है। उसके बाद समाज की महिलाएं गाजे-बाजे के साथ केले रूपी गणेश बहू को स्नान कराते हैं। तत्पश्चात उसे गणेश जी के समीप रखा जाता है। बंगाली समाज की दुर्गा पूजा में इस केले के पौधे को गणेश की पत्नी का स्वरूप मानकर पूजा किया जाता है।

108 कमल और 108 दीपक से होती है पूजा

संधि पूजा यह पूजा अष्टमी और नवमी तिथि के संधि काल के समय की जाती है इसलिए संधि पूजा के नाम से प्रसिद्ध है। इस पूजा में विशेष रूप से 108 दीपक और 108 कमल के फूलों से मां दुर्गा की पूजा की जाती है और यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है क्योंकि शक्तिस्वरूपा माँ ने चण्ड और मुण्ड नामक राक्षस का वध किया था। तथा भगवान राम ने भी रावण को हराने के लिए माँ से शक्ति प्राप्ति के लिए इसी समय पूजा की थी।