कांग्रेस की सेवा में गुजार दिए जिंदगी के 60 साल लेकिन पार्टी नहीं रख सकी उनका मान, इसलिए वरिष्ठ नेता एडवोकेट फारूकी ने दे दिया इस्तीफा
भाजपा की ही तरह कांग्रेस में भी पार्टी लाइडलाइन के विरुद्ध पार्षद पद के टिकट बांटने का आरोप है। अपनी बहू को टिकट नहीं दिला पाने पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एडवोकेट जमीर फारूकी ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है।
बहू आमेरा के लिए मांगा था पार्षद का टिकट, पार्टी ने बाहरी नेत्री को दिया, इसे अपनी जलालत मानते हुए छोड़ी पार्टी
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । पार्टी गाइडलाइन को बला-ए-ताक पर रखकर टिकट वितरण को लेकर सिर्फ भाजपा में ही घमासान नहीं है, कांग्रेस भी इस आरोप से घिरी है। कांग्रेस के वरिष्ठ और प्रतिष्ठित नेता एडवोकेट जमीर फारूकी ने भी पार्टी पर यही आरोप लगाया है। 60 साल से ज्यादा कांग्रेस की सेवा करने वाले फारूकी ने पार्टी से त्याग-पत्र दे दिया है। उनका आरोप है कि उनके वार्ड से अन्य को टिकट दिया गया जबकि उस वार्ड से उनकी बहू एकमात्र दावेदार थी। शहर कांग्रेस अध्यक्ष ने मामले को मिल-बैठ कर फारूकी की नाराजगी को दूर करने की बात कही है।
लगातार गिरते परफॉर्मेंस से कांग्रेस में कार्यकर्ताओं का मनोबल पहले ही काफी टूटा हुआ है जिससे पार्षद का चुनाव लड़ने तक की जेहमत कोई उठाने को तैयार नहीं है। रही-सही कसर कांग्रेस से मौजूदा पदाधिकारियों ने पूरी कर दी है। जिस तरह टिकट वितरण में भाई-भतीजावाद, परिवारवाद और पट्ठावाद के आरोप भाजपा में लग रहे हैं वैसे ही आरोपों से कांग्रेस भी घिर रही है। दो दिन पूर्व टिकट नहीं मिलने से एक कार्यकर्ता ने शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेंद्र कटारिया के घर के बाहर प्रदर्शन कर उनके मुर्दाबाद के नारे लगाए थे और आज एक बड़े नेता ने पार्टी ही छोड़ दी।
पार्टी छोड़ने वाले नेता शहर के प्रतिष्ठित अभिभाषक होकर कांग्रेस में करीब 50 साल से सक्रिय हैं। कई पदों पर रहने और पार्टी की शान माने जाने वाले ये वरिष्ठ नेता हैं एडवोकेट जमीर फारूकी जिन्होंने अपनी बहू आमेरा को शहर के वार्ड क्रमांक 27 से टिकट नहीं मिलने पर पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। पार्टी से मिली इस उपेक्षा को उन्होंने अपनी जलालत बताते हुए यह कदम उठाया है। 88 वर्षीय फारूका का कहना है कि इतना जलील कभी नहीं हुआ जितना पार्टी ने अभी कर दिया।
बाहरी व्यक्ति को मिला वार्ड से टिकट
कांग्रेस नेता फारुकी के अनुसार वे और उनका परिवार शहर के वार्ड क्रमांक 27 में रहता है। नगर निगम चुनाव में वार्ड 27 से उनकी बहू आमेरा फारूकी ने कांग्रेस से दावेदारी की थी। इस वार्ड से पार्टी से दावेदारी करने वाली वे एकमात्र स्थानीय कार्यकर्ता थीं। बावजूद कांग्रेस ने उन्हें टिकट न देते हुए पूर्व पार्षद यास्मीन शेरानी को टिकट दे दिया। फारुकी के अनुसार उनकी बहू का नाम तक शहर कांग्रेस दूरा प्रदेश हाईकमान को भेजी पैनल में शामिल नहीं किया गया था। उसमें एकमात्र नाम शेरानी का भेजा गया। फारूकी के अनुसार परिजन और उन्हें जानने वालों की नजर में पार्टी ने उनका मजाक उड़ाया है। इसी से क्षुब्ध होकर उन्होंने इस्तीफा दिया है। इसकी जानकारी प्रदेश संगठन व पूर्व मंत्री कांतिलाल भूरिया सहित सभी को दे दी है।
60 साल पार्टी को देने के बाद भी पार्टी ने नहीं रखा मान
बता दें कि जमीर फारूकी 1962 से कांग्रेस में सक्रिय हैं। 14 साल तक युवा कांग्रेस के जिला अध्यक्ष रहे। डॉ. देवी सिंह (पूर्व मंत्री) के कार्यकाल में कांग्रेस के जिला मंत्री रहे और उनके निधन के बाद सात साल जिला शहर कांग्रेस अध्यक्ष रहे। 1974 में तत्कालीन वार्ड नंबर 12 से पार्षद भी चुने गए थे। कांग्रेस ही नहीं, फारूकी का नाम जिले व बाहर भी पूरे सम्मान के साथ लिया जाता है।
ये वही जमीर फारूकी हैं जिनके लिए कहा जाता है कि दिग्विजय सिंह (राज्यसभा सदस्य एवं पूर्व मुख्यमंत्री) को 1971 में वे ही कांग्रेस में लाए थे लेकिन आज उन्हें खुद ही कांग्रेस छोड़ना पड़ रही है। माना जा रहा है कि फारूकी की इस नारजगी का असर शेरानी के चुनाव परिणाम पर असर डाल सकती है।
मिल-बैठ कर दूर कर लेंगे नाराजगी
फारूकी साहब कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य हैं। इनके मार्गदर्शन में ही हम लोगों ने राजनीति की शुरुआत की। उन्होंने अपनी बहू के लिए भी टिकट मांगा था। आवेदन प्राप्त हुआ था। पैनल बनाकर भेज दी गई थी। मैं स्वयं व्यक्तिगत रूप से फारुकी साहब से मिलकर इस्तीफा वापस लेने की गुजारिश की। हम मिल-बैठ कर उनकी नाराजगी को कर लेंगे।
महेंद्र कटारिया, अध्यक्ष- शहर कांग्रेस, रतलाम