कई भाषाओं और बोलियों में साहित्य रचा अमीर खुसरो ने, मुकरियों और पहेलियों के लिए हुए ख्यात- सिद्दीक़ रतलामी
जनवादी लेखक संघ ने 'अमीर खुसरो: शायरी और शख्सियत' विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया। इस दौरान वक्ताओं ने खुसरो के व्यक्तित्व और साहित्य सेवा पर प्रकाश डाला।
जनवादी लेखक संघ की विचार गोष्ठी में हुई सार्थक साहित्य पर चर्चा
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । अमीर खुसरो प्रथम मुस्लिम कवि थे जिन्होंने हिंदी शब्दों का खुलकर प्रयोग कियाI वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने हिंदी, हिन्दवी और फ़ारसी में एक साथ लिखाI उन्हें खड़ी बोली के आविष्कार का श्रेय दिया जाता हैI वे अपनी पहेलियों और मुकरियों के लिए जाने जाते हैं। सबसे पहले उन्हीं ने अपनी भाषा के लिए हिन्दवी का उल्लेख किया था। उन्होंने नब्बे ग्रंथ की रचना की। साथ ही इनका इतिहास स्रोत रूप में महत्व है। अमीर खुसरो को तोता-ए-हिंद भी कहा गया।
उक्त विचार जनवादी लेखक संघ द्वारा 'अमीर खुसरो: शायरी और शख्सियत' विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में शायर सिद्दीक़ रतलामी ने व्यक्त किए। रतलाम प्रेस क्लब भवन में आयोजित समारोह में उन्होंने कहा कि वे चौदहवीं सदी के लगभग दिल्ली के निकट रहने वाले एक प्रमुख कवि, शायर, गायक और संगीतकार थे। उनका परिवार कई पीढ़ियों से राजदरबार से सम्बंधित थाI अमीर खुसरो ने 8 सुल्तानों का शासन देखा थाI किशोरावस्था में उन्होंने कविता लिखना प्रारम्भ किया और बीस वर्ष के होते होते वे कवि के रूप में प्रसिद्ध हो गए। खुसरो में व्यावहारिक बुद्धि की कोई कमी नहीं थी। सामाजिक जीवन की खुसरो ने कभी अवहेलना नहीं की। खुसरो ने अपना सारा जीवन राज्याश्रय में ही बिताया।
दिलों को दूर करने का प्रयास करती है सिसायत
प्रो. रतन चौहान ने कहा कि खुसरो ने भाषाओं को एक साथ मिलाकर समाज के सामने लाने का महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कहा कि सियासत दिलों को दूर करने का प्रयास करती है जबकि साहित्य दिलों को पास लाकर सरहदों को मिटाने का कार्य करता है। कवि प्रणयेश जैन ने कहा कि किसी भी चरित्र को वैज्ञानिक आधार पर महसूस किया जाना चाहिए। अतिशयोक्ति का वर्णन कई बार संदेहों को जन्म देता है।
राज दरबार में रहते हुए भी कवि, कलाकार, संगीतज्ञ सैनिक बने रहे
गीतकार हरिशंकर भटनागर ने कहा कि राज दरबार में रहते हुए भी खुसरो हमेशा कवि, कलाकार, संगीतज्ञ और सैनिक ही बने रहे। साहित्य के अतिरिक्त संगीत के क्षेत्र में भी खुसरो का महत्वपूर्ण योगदान हैI कवि यूसुफ जावेदी ने कहा कि खुसरो ने भारतीय और ईरानी रागों का सुन्दर मिश्रण किया और एक नवीन राग शैली इमान, जिल्फ़, साजगरी आदि को जन्म दियाI उनका योगदान संगीत को भी समृद्ध करता रहा।
कव्वाली और सितार खुसरो की देन
संचालन करते हुए आशीष दशोत्तर ने कहा कि भारतीय गायन में क़व्वाली और सितार खुसरो की देन माना जाता है। उन्होंने गीत के तर्ज़ पर फ़ारसी में और अरबी ग़जल के शब्दों को मिलाकर कई पहेलियाँ और दोहे भी लिखे। विचार गोष्ठी में दिनेश उपाध्याय, प्रकाश हेमावत, आशारानी उपाध्याय, मांगीलाल नगावत, सत्यनारायण सोढ़ा ने भी सहभागिता की।