शोध ग्रंथ विमर्श : 'साहित्य में पर्यावरण का वैज्ञानिक अध्ययन' हिंदी साहित्य का अछूता प्रयोग, आधुनिक तकनीक पारिस्थितिकी से माफी मांगे- मनोज श्रीवास्तव

‘साझा संसार’ नीदरलैंड द्वारा मीरा गौतम की पुस्तक 'साहित्य में पर्यावरण का वैज्ञानिक अध्ययन' पर नीदरलैंड, भारत, सूरीनाम, आस्ट्रेलिया, कनाडा, यूएई सहित कई देशों के साहित्यकारों ने विचार व्यक्त किए।

शोध ग्रंथ विमर्श : 'साहित्य में पर्यावरण का वैज्ञानिक अध्ययन' हिंदी साहित्य का अछूता प्रयोग, आधुनिक तकनीक पारिस्थितिकी से माफी मांगे- मनोज श्रीवास्तव
ऑनलाइन शोध विमर्श में शामिल हुए साहित्यकार।

एसीएन टाइम्स @ डेस्क । पुस्तक ‘साहित्य में पर्यावरण का वैज्ञानिक अध्ययन' वाकई हिंदी साहित्य का अछूता प्रयोग है। मैंने जब इस पुस्तक को पढ़ा तो सुखद आश्चर्य से भर गया क्योंकि इसमें वैज्ञानिकता का टेरर नहीं है। यह आवश्यक है कि ऐसे शोध और हों। पर्यावरण संरक्षण में संविधान और मीडिया की सतर्कता बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। हमारा साहित्य प्रेम और प्रकृति सौन्दर्य से भरा पड़ा है।

यह बात प्रख्यात वरिष्ठ साहित्यकार एवं मध्यप्रदेश शासन के सेवानिवृत अपर मुख्य सचिव मनोज श्रीवास्तव (आईएएस) ने की। वे ‘साझा संसार’ नीदरलैंड्स की पहल पर 'साहित्य में पर्यावरण का वैज्ञानिक अध्ययन' शोध ग्रंथ पर आयोजित विमर्श के दौरान बोल रहे थे। ऑनलाइन हुए इस आयोजन में विशिष्ट वक्ता कवि, आलोचक और इग्नू (दिल्ली) के अन्तर्राष्ट्रीय विभाग के निदेशक जितेन्द्र श्रीवास्तव, कनाडा से डॉ. शैलजा सक्सेना, यूएई से डॉ. आरती लोकेश और स्पेन से पूजा अनिल रहे। सभी ने पुस्तक विमर्श में विचार व्यक्त किए। संचालन नीदरलैंड्स से शगुन शर्मा व तकनीकी संचालन राजेंद्र शर्मा ने किया। 

पुस्तक में उल्लिखित पुष्टिमार्ग की चर्चा करते हुए सेवानिवृत्त आईएएस श्रीवास्तव ने कहा कि मीरा गौतम की आधुनिकता इसमें है कि वे पुष्टि से पोषण का, धरती से पोषण का अर्थ समझाती हैं। वह सही निष्कर्ष निकालती हैं। भारतीय संस्कृति में श्रीकृष्ण पर्यावरण के सबसे बड़े संरक्षक कहे जा सकते हैं। श्रीवास्तव के मतानुसार आधुनिक तकनीकी को पर्यावरण से माफी माँगनी चाहिए।

पुरातन में नवीनतम का समावेश

इग्नू दिल्ली से आए जितेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि पर्यावरण विमर्श, जीवन विमर्श है। पर्यावरण जीवन का अभिन्न हिस्सा है। किसान चेतना की समझ से पर्यावरण की चिंता जागेगी। यह पुस्तक शोधार्थियों के लिए सैकडों दरवाजे खोलती है। डॉ. शैलजा सक्सेना ने कहा कि साहित्य ने मनुष्य को अधिक संवेदना दी है। मनुष्य प्रकृति के साथ सामंजस्य पूर्वक रहे अन्यथा समस्याएँ बनी रहेंगी। पुस्तक प्रस्थान बिंदु है। मीरा गौतम ने मशाल जलाई है। पूजा अनिल ने कहा कि यह पुस्तक पुरातन से नवीनतम का समावेश है। साहित्य ने मानव जीवन को सदा समृद्ध ही किया है।

अभीष्ट से अनिष्ट की व्याख्या करते श्लोक

डॉ. आरती लोकेश ने कहा कि मीरा गौतम ने भगवद्गीता के श्लोकों में पर्यावरण को टटोला है। वे अभीष्ट से अनिष्ट को व्याख्यायित करती हैं। पुस्तक इस मिथ को तोड़ रही है कि प्रकृति ही पर्यावरण है। संयोजक रामा तक्षक ने कहा कि पर्यावरण की महत्ता एक छोटी सी वैदिक बात से समझ आती है कि खुरपी से हटाई गई मिट्टी को पुनः वापस वहीं डालना, पर्यावरण के संरक्षण, पर्यावरण के प्रति जागरूकता का सबसे अच्छा उदाहरण है। उन्होंने कहा कि अनपढ़ और पढ़े लिखे सब पर्यावरण की अनदेखी करते हैं। धन नया धर्म बन गया है। धन के लिए मानव अपने आत्मीय सम्बंध, अपना जीवन, आर्थिक विकास के पीछे, धन के आगे नतमस्तक रहता है। ऐसे में हम अपना सब, पूरी विरासत बलिदान करने के लिए राजी है।

भारत सरकार की एक विज्ञप्ति से हुई शुरुआत 

मीरा गौतम ने बताया कि इस शोध की शुरुआत भारत सरकार की एक विज्ञप्ति ने की। सामान्यतः ऐसे शोध अंग्रेजी में ही होते रहे हैं। मेरा प्रयास था कि इस शोध को हिंदी भाषा में लिखकर, हिंदी की क्षमताओं को सामने लाऊँ। ज्ञात रहे कि शोध योजना के लिए, 'मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार 'अब (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) और 'अखिल भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद' ने मिलकर मीरा गौतम का चयन किया था।

मिल चुका है कृति कुसुम पुरस्कार-2024

इस शोध ग्रंथ को हाल ही में मध्य प्रदेश शासन तथा शासकीय इंदौर संभाग पुस्तकालय संघ इंदौर द्वारा प्रतिष्ठित 'कृति कुसुम पुरस्कार-2024' मिला है। ग्रंथ को विश्व प्रसिद्ध प्रकाशन संस्थान आईसेक्ट पब्लिकेशन, भोपाल ने प्रकाशित किया है। आयोजन में गुजरात से प्रबोध पारीख, सूरीनाम से सान्द्रा लुटावन, ऑस्ट्रेलिया से निर्मल जसवाल आदि विद्वानों ने भाग लिया।