स्वस्थ संवाद की सराहनीय पहल 'सुनें-सुनाएं' : मिले, बैठे और शरद जोशी के व्यंग्य और कवि सुमन की रचनाओं पर किया सार्थक विमर्श

रतलाम में रविवार को रचनात्मक संवाद की परंपरा शुरू हुई। इस आयोजन को नाम दिया गया है सुने-सुनाएं। यह कई मायनों में खास है, इसमें न आग्रह है, न दुराग्रह और न ही पूर्वाग्रह। समय पालन का सबक भी इससे सीखा जा सकता है।

स्वस्थ संवाद की सराहनीय पहल 'सुनें-सुनाएं' : मिले, बैठे और शरद जोशी के व्यंग्य और कवि सुमन की रचनाओं पर किया सार्थक विमर्श
सुनें-सुनाएं कार्यक्रम के दौरान ख्यात व्यंग्यकार शरद जोशी का व्यंग्य पढ़ते हुए विष्णु बैरागी।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । हमारे दौर की संवादहीनता और रचनाशीलता के प्रति कम होती प्रवृत्ति को नया आयाम देने के उद्देश्य से शहर में रचनात्मक आयोजन "सुनें-सुनाएं" की शुरुआत हुई। शहर में रचनात्मक वातावरण तैयार करने और लोगों के बीच स्वस्थ संवाद की परंपरा कायम करने के उद्देश्य से हुई इस रचनात्मक पहल के पहले सोपान पर महत्वपूर्ण रचनाकारों की रचनाओं को न सिर्फ पढ़ा गया बल्कि उन पर सार्थक विमर्श भी हुआ।

रंगकर्मी कैलाश व्यास ने डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन' की कविता 'जो समेट रहे हो वह सपना है, जो लुटा रहे हो वह अपना है' का पाठ कर कार्यक्रम की शुरुआत की।

इसके उपरांत विष्णु बैरागी ने व्यंग्यकार शरद जोशी के व्यंग्य 'मेरी हवाई यात्रा' और 'अध्यक्ष महोदय' का पाठ किया। दोनों रचनाओं पर उपस्थितजनों ने संवाद किया एवं शरद जोशी से जुड़े रतलाम के प्रसंगों को प्रस्तुत कर आपसी संवाद की परंपरा कायम की।

संवाद में डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला, त्रिभुवनेश भारद्वाज, सुभाष जैन, गुस्ताद अंकलेसरिया, शोभना तिवारी, विनोद झालानी, डॉ. संजय वाते, आई. एल. पुरोहित, सुशीला कोठारी, सविता तिवारी, रश्मि पंडित, मयूर व्यास, अनिल झालानी, ओमप्रकाश मिश्र, नीरज शुक्ला, नरेंद्र जोशी, सुरेंद्र छाजेड़, जयंतीलाल चौधरी, राधेश्याम शर्मा, महावीर वर्मा, आशीष दशोत्तर आदि ने महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए।

संवाद स्थल की कमी पर हुआ विमर्श

उपस्थित सुधिजनों ने कहा कि रतलाम शहर में अभी कोई ऐसा संवाद स्थल नहीं है जहां बैठकर रचनात्मक विमर्श किया जा सके। साहित्यिक, सांस्कृतिक और कला क्षेत्र से जुड़ी चर्चा की जा सके। इसी कारण शहर में नई पीढ़ी के बीच रचनात्मकता का अभाव परिलक्षित हो रहा है। इसी की चिंता करते हुए शहर के रचनात्मक गतिविधियों से जुड़े बंधुओं द्वारा 'सुनें- सुनाएं' पहल सराहनीय है।

हर माह होगा आयोजन, अपनी रचना नहीं सुना सकेंगे

आयोजन में बताया गया कि यह कार्यक्रम होगा, जो मासिक रूप से आयोजित किया जाएगा। इस आयोजन में कोई भी व्यक्ति अपनी रचनाओं का पाठ नहीं करेगा, सिर्फ़ अपनी पसंद के किसी रचनाकार की रचना का ही पाठ करेगा। बैठक में अगले आयोजन में पढ़ी जाने वाली रचनाओं पर भी चर्चा की गई।

श्रोता के रूप में शामिल होना भी महत्वपूर्ण

आयोजन बहुत अधिक लंबी अवधि का नहीं हो, इसलिए आयोजन में पढ़ी जाने वाली रचना का निर्धारण पूर्व से ही किया जाएगा। आयोजन से किसी का भी अधिक वक़्त ज़ाया नहीं होगा, बल्कि हमें कुछ मिलेगा ही। यह आवश्यक नहीं कि उपस्थित हर व्यक्ति हर आयोजन में किसी रचनाकार की रचना को प्रस्तुत करे ही। सिर्फ श्रोता के रूप में भी इसमें शामिल हो सकते हैं।

आग्रह, दुराग्रह और पूर्वाग्रह से परे रचनात्मक संवाद

यह पूरी तरह अनौपचारिक एवं रचनात्मक आयोजन होगा। इसमें किसी भी तरह का आग्रह, दुराग्रह, पूर्वाग्रह भी नहीं होगा। ऐसे आयोजन में उपस्थिति से हमारे शहर का रचनात्मक वातावरण अधिक सारगर्भित हो सकेगा। रचनात्मक संवाद बढ़ाने की इस पहल का सभी ने स्वागत किया।

आयोजन का प्रभावी पक्ष समय पालन जिसे सभी ने बखूबी साधा

कोई भी आयोजन समय पर शुरू हो जाए और समय पर ही संपन्न भी हो जाए, ऐसा प्रायः कम ही देखने को मिलता है। इस मायने में “सुनें सुनाएं कार्यक्रम ने मिसाल पेश की। आयोजन की पहली शर्त ही समय पालन थी जिसे सूत्रधार और रचनापाठ करने वालों ने ही नहीं, श्रोताओं ने भी बखूबी साधा। यहां सभी श्रोता थे और सभी वक्ता, कोई मुख्य अतिथि नहीं और कोई अध्यक्ष भी नहीं। ऐसे में अन्य किसी औपचारिकता की तो गुंजाइश बचती ही नहीं। जिन रचनाकारों से हम परिचित हैं और जिनके बारे में कई बार सुना, पढ़ा और समझा लेकिन उन्हीं के बारे में जब सुनने और सुनाने का मौका मिला तो यह आभास हुआ कि अब भी बहुत कुछ है जो सभी को पता नहीं। आयोजन के उद्देश्य की सार्थकता भी यही है। अगले माह हम फिर सुनें-सुनाएं