गीत संग्रह का विमोचन : आशीष के गीतों में लय, लालित्य और अक्षरों का अनुशासन है- प्रो. अज़हर हाशमी
रतलाम के युवा साहित्यकार एवं गीतकार आशीष दशोत्तर के गीत संग्रह का कवि एवं साहित्यकार प्रो. अज़हर हाशमी ने प्रो. रतन चौहान की मौजूदगी में विमोचन किया। उन्होंने गीत संग्रह की विशेषता भी बताई।

आशीष दशोत्तर के गीत संग्रह के विमोचन अवसर पर कहा
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । किसी रचनाकार ने कविता की कशीदाकारी भी की हो और गीतों की गागर भी छलकाई हो, सरगम के सात स्वरों और इंद्रधनुष के सात रंगों की तरह विभिन्न विधाओं में उत्कृष्ट साहित्य सृजन करते हुए विनयशीलता के दामन को थामे रखा हो, तो यह एक रचनाकार की सफलता का द्योतक होता है। आशीष दशोत्तर के गीतों में लय, लालित्य और आशाओं का आदित्य उदित होता है। उनके गीतों में अक्षरों का अनुशासन है तो छंदबद्धता का सिंहासन भी। ये गीत साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान सुनिश्चित करेंगे।
उक्त विचार सुप्रसिद्ध गीतकार एवं वरिष्ठ साहित्यविद प्रो. अज़हर हाशमी ने आशीष दशोत्तर के सद्य: प्रकाशित गीत संग्रह "एक टुकड़ा धूप का" का विमोचन करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि गीत तुकबंदियों का तूफान नहीं, मानवीय मूल्यों का मकान होता है। गीतों में आशीष ने अक्षरों की अभ्यर्थना में रत रहते हुए छंदानुशासन की छतरी के नीचे गीत की गागर छलकाई है। गीत जिस अनुशासन और गंभीरता की मांग करते हैं, वह यहां नज़र आता है। आशीष का सृजन सुखद भविष्य की आशा जगाता है।
संभावनाओं के द्वार खुलते हैं- प्रो. रतन चौहान
अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि और अनुवादक प्रो. रतन चौहान ने कहा कि आशीष गीत विधा में संभावनाओं के नए द्वार खोलते हैं। उनकी निरंतर अध्ययनशीलता और सृजनशीलता यह विश्वास जगाती है कि उनका सृजन साहित्य जगत में रेखांकित होगा। निरंतर सृजन करना तभी संभव होता है जब निरंतर अध्ययन हो। आशीष के यहां भाषा का वैविध्य भी है और सृजन का सामर्थ्य भी। इस अवसर पर मौजूद कवि संजय परसाई 'सरल' एवं पत्रकार हेमंत भट्ट ने भी नए गीत संग्रह पर अपनी शुभकामनाएं प्रेषित की।
90 गीतों में ज़िन्दगी के स्वर, प्रो. हाशमी को समपर्पित है संग्रह
आशीष दशोत्तर के गीत संग्रह "एक टुकड़ा धूप का" में 90 गीत संग्रहित हैं जो ज़िन्दगी के स्वरों को आवाज़ देते हैं। इंक पब्लिकेशन प्रयागराज से प्रकाशित इस पुस्तक में आशीष ने जीवन की विविधताओं और विसंगतियों को गीतों के जरिए आवाज़ दी है। यह संग्रह वरिष्ठ गीतकार प्रो. अज़हर हाशमी को समर्पित है। इस संग्रह के गीतों का अंदाज़ वैविध्य का परिचय देता है। एक गीत में वे कहते हैं-
वक़्त ने जो दर्द हैं दिल पर लिखे,
ज़ख्म वो गहरे भला किसको दिखे।
दूरियां इतनी हुई हैं क्या कहें,
आदमी हैं आदमी से बेरुखे।
एक तरफा हो रहे हैं इन दिनों,
फ़ैसले ऐसे किसे मंज़ूर हों?
उल्लेखनीय है कि युवा साहित्यकार आशीष दशोत्तर की यह 21वीं किताब है और दूसरा गीत संग्रह। विभिन्न विधाओं में आशीष की रची गई पुस्तकों को सुधी पाठकों का स्नेह प्राप्त हो रहा है।