केंद्र सरकार पर बड़ा आरोप : शिखर जी तीर्थ को लेकर देशी-विदेशी बड़े घरानों के हाथों खेल रही सरकार, पाश्चात्य सांस्कृतिक षड्यंत्र से बचें- सकलेचा
रतलाम के पूर्व विधायक एवं महापौर पारस सकलेचा ने सम्मेद शिखर जी को प्रर्यटन स्थल का दर्जा दिए जाने के अध्यादेश को लेकर केंद्र सरकार के विरुद्ध बड़ा बयान दिया है। उहोंने इसे तत्काल निरस्त किए जाने की मांग की है।
जैन युवा मंच के संरक्षक तथा पूर्व विधायक पारस सकलेचा ने लगाया आरोप
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । सम्मेद शिखरजी तीर्थ को पर्यटक स्थल बनाने से चिर सनातन धार्मिक परंपरा के साथ, स्वतंत्रता पूर्वक, भयमुक्त होकर धर्म अराधना करने में व्यवधान होगा। केन्द्र सरकार संविधान के विपरीत कार्य कर देशी-विदेशी बड़े घरानो के हाथों में खेल रही है। यह आरोप जैन युवा मंच के संरक्षक तथा पूर्व विधायक पारस सकलेचा ने लगाया है।
सकलेचा ने कहा कि तीर्थ को पर्यटन स्थल में परिवर्तित कर देने पर वहां केसिनो खुलेंगे, बीयर बार खुलेंगे, मांसाहारी रेस्टोरेंट खुलेंगे, पब खुलेंगे और वे सारी गतिविधियां होंगी जो भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं के विपरीत हैं। ऐसे में हजारों धर्मावलंबी जो प्रतिदिन तीर्थ दर्शन करने आते हैं, जिसमें 60 से 70 प्रतिशत तक महिलाएं होती हैं, उनकी धार्मिक स्वतंत्रता में रुकावट आएगी। तीर्थ स्थल पर अशांति होगी। व्यवधान होंगे। अधार्मिक एवं अशोभनीय गतिविधियां होंगी। अशालीन वेशभूषा में पर्यटक घुमेंगे और अशालीन तरीके से पहाड़ पर इधर-उधर निर्लज्ज होकर बैठे रहेंगे। गोवा और उसके समुद्र किनारे इसके जीते जागते उदाहरण हैं।
सकलेचा ने कहा कि भौतिक पर्यटन पाश्चात्य से आयातित व्यापार है। इसमें भौतिक सुविधा के साथ पूरे मौज व शौक से बंधन रहित, ऐसा जीवन जीने की व्याख्या है, जो सामाजिक और धार्मिक व्यवस्थाओं के विपरीत है। पर्यटन में राजस्व बढ़ाने के नाम पर पर्यटक को वह सारी सुविधा दी जाती है, जो भारतीय परम्पराओं के विपरीत है।
पाश्चत्य संस्कृति और बाजारवाद का गहरा षड्यंत्र, इसे रोकें
सकलेचा ने चेतावनी दी कि धर्म के साथ व्यापार को जोड़ना, पाश्चात्य संस्कृति और बाजारवाद का एक गहरा षड्यंत्र है। जो देश की धार्मिक परंपराओं को कमजोर करके, इस देश की संस्कृति को खत्म करना चाहती है। उसी का परिणाम है कि हमारा परिवारवाद कमजोर हो गया, हमारे धार्मिक त्योहार फीके हो गए, पाश्चात्य त्योहारों की परंपराएं शुरू हो गईं। वैलेंटाइन डे, मदर्स डे, फादर्स डे इसके हिस्से हो गए। हमारी सामाजिक मान्यताएं तहस-नहस होने लगीं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो फिर कोई जमीन पर बैठकर अपनी पूज्य मां के, गुरु के चरण धोकर, चरण की पूजा कर, परम आनंद की अनुभूति नहीं करेग।
विदेशी व अन्य पर्यटकों के लिए 92 प्रतिशत धार्मिक पर्यटकों की परंपराओं से खिलवाड़ उचित नहीं
पूर्व विधायक सकलेचा के अनुसार हमें यह स्वीकार करना होगा कि धार्मिक पर्यटन और भौतिक पर्यटन, दोनों एक-दूसरे की ठीक विपरीत धाराएं हैं। एक में नीति है, नियम है, सामाजिक परंपरा है, बंधन है। दूसरे में कोई नीति नहीं, कोई नियम नहीं, कोई बंधन नहीं, और कोई सामाजिक परंपरा नहीं है। देश में 92 प्रतिशत धार्मिक पर्यटक हैं और मात्र 8 प्रतिशत अन्य। विदेशी व अन्य पर्यटकों के लिए 92 प्रतिशत धार्मिक पर्यटकों की परंपराओं से खिलवाड़ उचित नहीं है। भौतिक पर्यटक मात्र थ्री स्टार, फाइव स्टार होटलों को, बड़े रेस्टोरेंट को, बड़े शोरूम को, यानी गिने-चुने बड़े घराने को कमाई देता है। वहीं धार्मिक पर्यटक लाखों छोटे व्यापारियों के व्यापार को जिन्दा रखता है।
...अध्यादेश निरस्त करें अन्यथा सड़कों पर उतरेंगे लोग
सकलेचा ने कहा कि सम्मेद शिखर जी का प्रकरण तो विदेशी षड्यंत्र का एक हिस्सा है। इसमें सफल होने पर सभी धर्मों के धार्मिक स्थल को पर्यटक स्थल बनाकर इस देश की संस्कृति को तहस-नहस कर दिया जाएगा। उन्होंने आरोप लगाया कि हम विदेशी सांस्कृतिक ताकतों के हाथों में खेल रहे हैं। सकलेचा ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अध्यादेश को निरस्त करें, सम्मेद शिखर जी की धार्मिक स्वतंत्रता को बकरार रखें। अन्यथा सभी धर्मों के मतावलंबी सड़कों पर उतर जाएंगे और देश पच्चीस साल पीछे चला जायगा।