सरकार जल्द जारी करेगी Green Bond, इससे प्राप्त धन से 9 श्रेणियों की हरित परियोजनाओं का होगा वित्तपोषण
सरकार जल्द ही ग्रीन बॉन्ड जारी किए जाएंगे। इससे 9 श्रेणियों की पात्र परियोजनाओं को धन उपलब्ध कराने में सहूलियत होगी। इसके लिए वित्त मंत्रालय मसौदा जारी कर चुका है।
एसीएन टाइम्स @ डेस्क । देश की नौ व्यापक श्रेणियों में परियोजनाओं और पहल के वित्तपोषण का रास्ता साफ हो गया है। यह संभव होगा सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड की बदौलत। वित्त मंत्रालय इसका मसौदा तैयार कर चुका है और अब इसकी मंजूरी का इंतजार है। केंद्र सरकार के 16 हजार करोड़ रुपए के ग्रीन बॉन्ड से मिलने वाली धन राशि को देश की संचित निधि के रूप में जमा किया जाएगा। इसका उपयोग पात्र हरित परियोजनाओं को मूर्त रूप देने में किया जा सकेगा।
ग्रीन बॉन्ड के मसौदे को वित्त मंत्रालय द्वारा पिछले दिनों अंतिम रूप दिया जा चुका है। मसौदे के अनुसार नियमित बॉन्ड की ही तरह इसके धन को भी देश की संचित निधि में जमा कराया जाएगा। यही धन हरित परियोजनाओं के विकास के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। धन का आवंटन और लेखांकन पारदर्शी होगा। इसके लिए अलग से खाता होगा। इस खाते का संचालन वित्त मंत्रालय द्वारा किया जाएगा। इसके लिए मुख्य आर्थिक सलाहकार की अध्यक्षता में ग्रीन फाइनैंस वर्किंग कमेटी (GFWC) बनेगी। GFWC में परियोजना लागू करने वाले विभाग, पर्यावरण मंत्रालय, नीति आयोग और वित्त मंत्रालय के बजट अनुभाग और इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस सचिवालय के सदस्यों को शामिल किया जाएगा। जारी मसौदे में बताया गया है कि GFWC की बैठक साल में कम से कम दो बार आयोजित की जाएगी। यह परियोजनाओं का मूल्यांकन कर उनका चयन करेगी।
बजट जारी करते समय वित्त मंत्री ने किया था जिक्र
वित्त मंत्रालय के अनुसार सॉवनरे ग्रीन बॉन्ड एक फ्रेमवर्क है। यह 2021 में ग्लासगो में COP26 में पीएम मोदी के विजन “पंचामृत” के तहत भारत की प्रतिबद्धताओं के अनुरूप तैयार किया गया है। गौरतलब है कि 2022-23 का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री डॉ. निर्मला सीतारमण ने सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड जारी कर ग्रीन प्रोजेक्ट्स के लिए संसाधन जुटाने का जिक्र किया था। सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड एक प्रकार का फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट है जो पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ और जलवायु-उपयुक्त परियोजनाओं में निवेश के लिए धन जुटाने में मददगार होता है। जानकारों के अनुसार सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड नियमित बॉन्ड की तुलना में पूंजी की अपेक्षाकृत लागत को कम कर देती है। नॉर्वे की सिसरो को भारत के ग्रीन बॉन्ड के ढांचे का मूल्यांकन करने के लिए नियत किया गया है। सिसरो ने इसे अच्छा स्कोर दिया। साथ ही इसके फ्रेमवर्क को ‘मीडियम ग्रीन' का दर्जा भी दिया है।
ऐसे समझें ग्रीन बॉन्ड के बारे में
- ग्रीन बॉन्ड सरकारी प्रतिभूतियां हैं जो सरकार की तरफ से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी की जाती हैं। यानी ये किसी भी संप्रभु संस्था, अंतर-सरकारी समूहों या गठबंधनों और कॉरपोरेट्स द्वारा जारी बॉन्ड हैं।
- विश्व बैंक भी हरित बॉन्ड जारी करता है। 2008 से अब तक 14.4 बिलियन डॉलर मूल्य के 164 ग्रीन बॉन्ड विश्व बैंक जारी कर चुकी है।
- ये सोने का एक विकल्प हैं। ग्रीन बॉन्ड सोने के ग्राम के रूप में प्रदर्शित किए जाते हैं।
- ग्रीन बॉन्ड विशिष्ट जलवायु-संबंधी या पर्यावरण परियोजनाओं का समर्थन करने वाला एक निश्चित आय साधन है।
- माना जा रहा है कि सरकार इसमें निवेश करने पर टैक्स में छूट का प्रावधान भी ला सकती है। इसका उद्देश्य निवेशकों को ग्रीन बॉन्ड में निवेश के लिए प्रोत्साहित करना होगा।
- क्लाइमेट बॉन्ड इनिशिएटिव की रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में कुल 270 बिलियन डालर के ग्रीन बॉन्ड जारी हुए।
- 2015 के बाद से अब तक ग्रीन बांड का संचयी निर्गम 1 ट्रिलियन डॉलर से भी अधिक का हो चुका है।
इन 9 श्रेणी की परियोजनाओं के लिए मिल सकेगा धन
- अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा कुशलता, 3. स्वच्छ परिवहन, 4. जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन, 5. टिकाऊ जल एवं कचरा प्रबंधन, 6. प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण, 7. ग्रीन बिल्डिंग्स, 8. प्राकृतिक संसाधनों व जमीन के इस्तेमाल का टिकाऊ प्रबंधन, 9. स्थलीय एवं जलीय जैव विविधता संरक्षण।
ये परियोजनाएं नहीं होंगी शामिल
- जीवाश्म ईंधन के नए या पुराने उत्खनन, उत्पादन एवं वितरण से संबंधित परियोजनाएं, 3. परमाणु ऊर्जा उत्पादन, 4. खुले में कचरा नष्ट करने, 5. शराब, 6. हथियार, 7. तंबाकू, 8.गेमिंग, 9.पाम ऑयल उद्योग, 10. संरक्षित क्षेत्रों से फीडस्टॉक का इस्तेमाल कर बायोमास से उर्जा उत्पादन करने वाली परियोजनाएं, 11. जमीन भरने की परियोजनाएं, 12. 25 मेगावॉट से ज्यादा क्षमता की पनबिजली परियोजनाएं।
नोट- पात्र परियोजनाओं में अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा सक्षम भवनों, सार्वजनिक परिवहन के विद्युतीकरण, जलवायु के अनुकूल बुनियादी ढांचे, ऑर्गेनिक फार्मिंग, भूमि और समुद्री जैव विविधता परियोजनाओं के लिए बाढ़ एवं जलवायु चेतावनी व्यवस्था शामिल होंगी।
कॉर्बन तीव्रता भी हो सकेगी कम
जानकार बताते हैं कि ग्रीन बॉन्ड के मसौदे को मंजूरी मिलने के साथ ही भारत पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने की अपनी प्रतिबद्धता को और मजबूत कर पाएगा। इससे ग्रीन प्रोजेक्ट्स में वैश्विक और घरेलू निवेश आकर्षित करना सुलभ होगा। सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड से प्राप्त धन सार्वजनिक में उपयोग होने से अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता (Carbon Intensity) भी कम हो सकेगी।
वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय हैं ऐसे बॉन्ड
कर एवं वित्तीय मामलों के जानकार गोपाल काकानी के अनुसार वैश्विक स्तर पर निवेशकों में इस तरह के बॉन्ड काफी लोकप्रिय हैं। एसेट लिंक होने की वजह से इन पर सरकारों को फंड जुटाना आसान होता है। अगर यूं कहें कि ग्रीन बॉन्ड सरकार द्वारा चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में ली जाने वाली उधारी का एक हिस्सा हैं तो गलत नहीं होगा। इससे प्राप्त धन का उपयोग सरकार द्वारा कार्बन उत्सर्जन कम करने वाली परियोजनाओं में होने से यह पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी उपयोगी सिद्ध होगा।