खबर हट के : भाजपा ने रतलाम शहर से चेतन्य काश्यप को तीसरी बार प्रत्याशी बनाकर जड़े विरोधियों की जुबान पर ताले, जानिए- पार्टी ने क्यों जताया भरोसा

भाजपा ने अभी तक रतलाम जिले की दो सीटों के लिए प्रत्याशी घोषित किए हैं। रतलाम शहर से विधायक चेतन्य काश्यप को तीसरी बार टिकट देकर कई अटकलों पर विराम लगा दिया है।

खबर हट के : भाजपा ने रतलाम शहर से चेतन्य काश्यप को तीसरी बार प्रत्याशी बनाकर जड़े विरोधियों की जुबान पर ताले, जानिए- पार्टी ने क्यों जताया भरोसा
चेतन्य काश्यप, विधायक- रतलाम।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । भाजपा रतलाम जिले की पांच में दो सीटों के लिए प्रत्याशी घोषित कर चुकी है। सैलाना में जहां इस बार चेहरा बदला गया है वहीं रतलाम में लगातार तीसरी बार भी चेतन्य काश्यप पर ही भरोसा जताया गया है। पार्टी ने काश्यप की उम्मीदवारी घोषित कर उनके सभी विरोधियों की जुबान पर ताला जड़ दिया है। राजनीतिक गलियारे में जारी चर्चाओं पर यकीन करें तो भाजपा जिले की अन्य सीटों के साथ ही रतलाम शहर सीट को ज्यादा सुरक्षित और अन्य दावेदारों की तुलना में काश्यप को ज्यादा भरोसेमंद मानती है।

वैसे तो रतलाम शहर को भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है लेकिन यहां के मतदाताओं ने चौंकाने वाले परिणाम भी दिए हैं। यहां के मतदाताओं का मूड समझना इतना आसान भी नहीं है फिर भी भाजपा इस सीट को लेकर प्रायः आश्वस्त ही रही है। पहले 1957 से लेकर 2018 तक हुए 13 विधानसभा चुनावों में से सिर्फ 3 बार कांग्रेस प्रत्याशी (1957-सुमन जैन, 1967 देवीसिंह एवं 1993 शिवकुमार झालानी) और 2 बार निर्दलीय (1962 बाबूलाल नाथूलाल एवं 2008- पारस सकलेचा) विजयी हुए। एक बार जनता पार्टी और 8 बार भाजपा विजयी रही है। सबसे ज्यादा 6 बार हिम्मत कोठारी (1977 में जनता पार्टी और 1980, 1985, 1990, 1998 व 2003 में भाजपा से) जीते, जबकि 2 बार (2013 और 2018) में भाजपा से चेतन्य काश्यप विधायक बने।

काश्यप पर ही क्यों लगाया दांव

भाजपा के लिए हिम्मत कोठारी जिताऊ प्रत्याशी रहे लेकिन 2008 में निर्दलीय लड़े पारस सकलेचा से लगभग 31 हजार वोटों से मिली हार के बाद पार्टी ने उनसे मुहं मोड़ लिया। 2013 में पार्टी ने उद्योगपति और सामाजसेवी चेतन्य काश्यप को टिकट देकर चौंका दिया। भाजपा का यह प्रयोग सही साबित हुआ, काश्यप निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस की अदिति दवेसर को 40,305 वोटों के अंतर से हरा दिया। इस चुनाव में कोठारी को 31 हजार के लगभग वोटों से हराने वाले सकलेचा (निर्दलीय) पूर्व के चुनाव में मिले मतों के लगभग एक चौथाई पर ही सिमट कर रह गए। पार्टी 2018 में काश्यप को फिर प्रत्याशी बनाया और इस बार भी उनकी जीत का अंतर पहले से ज्यादा रहा। उन्होंने कांग्रेस की प्रेमलता दवे को 43,435 वोटों से पराजित कर पार्टी के भरोसे को सही साबित कर दिया। दोनों चुनावों में बड़ी सफलता के चलते ही भाजपा ने 2023 के लिए भी काश्यप पर दांव लगाया है।

नेताओं के पाला बदलने और विरोध को किया दरकिनार

काश्यप की जीत और पार्टी में बढ़ते प्रभाव के चलते वे नेता जो पहले हिम्मत कोठारी गुट के माने जाते थे, दूरी बनानी शुरू कर दी। कुछ ने तो न सिर्फ पाला बदला बल्कि पार्टी फोरम पर खुल कर काश्यप की खिलाफत भी शुरू कर दी थी। यह खिलाफत लगातार बढ़ती ही जा रही थी। सोशल मीडिया पर ऐसी तमाम पोस्ट हुई जिनमें यह दावा किया जा रहा था कि इस बार काश्यप को टिकट मिलना मुश्किल हैं। हालांकि, काश्यप समर्थकों को 100 फीसदी भरोसा था कि ये सारे कयास और कवायदें ज्यादा दिन नहीं चलेंगी। सोमवार दोपहर बाद भाजपा द्वारा मप्र विधानसभा चुनाव के लिए जारी की गई चौथी सूची में रतलाम शहर से काश्यप का नाम घोषित कर तमाम कयासों और विरोधों को खारिज कर दिया।

पार्टी के भरोसे के पीछे ये मानी जा रही वजहें

  1. पिछले दो चुनावों में भारी मतों से जीत और जीत का अंतर लगातार बढ़ना।
  2. पार्टी मानती है कि विकास को लेकर काश्यप का विजन अन्य दावेदारों की तुलना में कहीं ज्यादा विस्तृत है।
  3. पार्टी को मजबूत करने को लेकर उनके द्वारा उठाए गए कदम और आयोजन भी सहायक रहे।
  4. सामाजिक कार्यों में की गई हिस्सेदारी और दोनों कार्यकाल में वेतन-भत्ते नहीं लेना भी प्लस पाइंट बताया जा रहा है।
  5. क्रीड़ा भारती के माध्यम ऊपरी स्तर पर मजबूत पकड़ बनाने में सफल रहे।
  6. टिकट के अन्य दावेदारों की तुलना में ज्यादा पुख्ता दावेदारी और समर्थन प्राप्त होना।
  7. नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा को मिली जीत, खासकर महापौर के कश्मकश भरे चुनाव में। 
  8. रतलाम से जुड़े विभिन्न प्रोजेक्ट को लेकर की गई पहल।
  9. आसपास की दूसरी कमजोर सीटों को प्रभावित कर सकने में सक्षम।
  10. समर्थकों, सहयोगियों और कार्यकर्ताओं की बड़ी टीम। 

दूसरी विधानसभा सीटों पर यह स्थित

पूर्व में माना जा रहा था कि भाजपा रतलाम शहर, रतलाम ग्रामीण और जावरा में मौजूदा विधायकों को ही उतारेगी, लेकिन अभी तक सिर्फ काश्यप को ही रिपीट किया गया है। जावरा और रतलाम ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र के लोगों को प्रत्याशी घोषित होने का इंतजार है। जावरा में डॉ. राजेंद्र पांडेय की राह में सिंधिया गुट के के. के. कालूखेड़ा को रोड़ा माना जा रहा है। वहीं रतलाम ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में बीते कुछ माहों में बनी विपरीत परिस्थितियों के कारण असमंजस बरकरार है। पार्टी सूत्रों की मानें तो यहां पाटीदार समाज का जितना समर्थन भाजपा को मिलता रहा है उतना मौजूदा विधायक दिलीप मकवाना जुटाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। पूर्व में दो आयोजनों के दौरान मकवाना के समर्थकों और ग्रामीणों में हुए विवाद के किस्से हाईकमान के पास पहुंचने से भी स्थिति में बदलाव आया है।

...और यहां मजबूरी का टिकट!

दूसरी ओर सैलाना में पूर्व विधायक संगीता चारेल को टिकट देना एक तरह से भाजपा की मजबूरी रही। दरअसल, यहां पूर्व में जिन नारायण मईड़ा को टिकट दिया था, वे खुद तो हारे ही था, पंचायत चुनाव में अपनी पत्नी को भी नहीं जिता पाए थे। ऐसे में यहां अन्य दावेदारों की तुलना में चारेल की दावेदारी थोड़ी ज्यादा मजबूत रही। हालांकि उनके विरोधियों ने उनके पति विजय चारेल के पुराने मामले पार्टी हाईकमान तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं रखी थी। आलोट में भाजपा गुटबाजी में उलझी हुई है। यहां तीन नेताओं में रस्साकसी है।