भगवान से प्रार्थना : ‘मुझको राम वाला हिन्दुस्तान चाहिए…’ के रचयिता अज़हर हाशमी जल्दी स्वस्थ हों, वे फिर से अपनी सृजन-यात्रा आरम्भ करें- डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला

ख्यात साहित्यकार, चिंतक, लेखक और कवि प्रो. अज़हर हाशमी इन दिनों अस्वस्थ चल रहे हैं। लोग उनके जल्द स्वस्थ कामना कर रहे हैं। ऐसी ही प्रार्थना साहित्यकार डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला द्वारा की गई है। एसीएन टाइम्स भी यही प्रार्थना करता है कि हाशमी जी जल्द से जल्द स्वस्थ हों।

भगवान से प्रार्थना : ‘मुझको राम वाला हिन्दुस्तान चाहिए…’ के रचयिता अज़हर हाशमी जल्दी स्वस्थ हों, वे फिर से अपनी सृजन-यात्रा आरम्भ करें- डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला
अज़हर हाशमी।

डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला

'मुझको राम वाला हिन्दुस्तान चाहिए' और 'बेटियाँ पावन दुआएँ हैं' जैसे अमर गीतों के रचनाकार अज़हर हाशमी जी इन दिनों अस्वस्थ चल रहे हैं। वे एक निजी अस्पताल 'आरोग्यम्' में स्वास्थ्य-लाभ ले रहे हैं।

रतलाम जैसा छोटा शहर भारत भर में हाशमी जी के कारण ही पहचान में आया। हाशमी जी मूलतः तो राजस्थान के झालावाड़ जिले के ग्राम पिड़ावा के हैं, लेकिन वे स्कूली और उच्च शिक्षा के बाद पूरी तरह से रतलाम में ही रच-बस गये। उनकी परवरिश एक सूफी संत के परिवार में हुई, जिसका परिणाम यह है कि हाशमी जी सूफी कवि हैं, सूफी लेखक हैं। उनके विचारों के शिल्प में गीता और कुरान के जोड़ साफ-साफ दिखाई देते हैं। हाशमी जी जितने अधिकार से गीता पर व्याख्यान देते रहे, उतने ही अधिकार से कुरान शरीफ पर।

अज़हर हाशमी ने बहुत लम्बी-लम्बी कविताएँ या गद्य नहीं लिखा। उन्होंने आजीवन छुटपुट ही लिखा, लेकिन खूब जमकर लिखा। उनकी कविताएं पाठ्यपुस्तकों में हैं, पढ़ाई जाती हैं। उनके लेख, टिप्पणियाँ, वैचारिक स्तंभ जब भी पत्र-पत्रिकाओं में आते हैं, धूम मच जाती है। वे बहुत निर्भीक होकर लिखने वाले साहित्यकारों में गिने जाते हैं। वे सफल गीतकार हैं, सफल व्यंग्यकार हैं, सफल वक्ता हैं, लेकिन एक अलग विशेषता, जो उनके नाम पर दर्ज है, वह है उनका एक योग्य शिक्षक होना। उनके जितने भी शिष्य हैं, वे हाशमी जी को गुरुवर के रूप में ही पूजते हैं। उनके विद्यार्थी जहाँ भी हैं, अपने गुरु के प्रति सहज श्रद्धा भाव से भरे हैं। मैंने देखा है, उनसे बहुत अधिक उम्र के नेता और अधिकारी, शिक्षक और छात्र, कवि और लेखक हाशमी जी के आगे शीश झुकाते हैं। मैं भी उनमें से एक हूँ।

अज़हर हाशमी जी सर्वथा एक मौलिक व्यक्तित्व के धनी हैं। वे सबसे अलग, सबसे निराले हैं। अपने व्याख्यान में वे साधिकार मौलिक स्थापनाएँ करते हैं। व्याख्यान देते वक्त वे एक-एक श्रोता को अपने साथ जोड़ने की कला में माहिर हैं। वे सबको ऊँचा उठा देने वाले ऐसे आचार्य हैं, जिस पर गर्व करने वालों की संख्या का अनुमान लगाना कठिन है। हाशमी जी के साहित्यिक रिश्ते देशभर में कहाँ-कहाँ, किस-किस से जुड़े हैं, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।

रतलाम में वे जहाँ रहते हैं, वह एक बहुत ही छोटा सा घर है, मुश्किल से दो कमरों का। उनका घर किताबों का घर हैं। सच कहा जाये, तो वे अपने घर में नहीं, किताबों के घर में रहते हैं। किताबों से घिरा रहने वाला यह शख्स आगन्तुकों की दिल से अगवानी करता है। हाशमी जी ने विवाह नहीं किया, अकेले हैं, लेकिन कितने-कितने परिवारों को रस से सींचा है उन्होंने, यह कौन नहीं जानता। उनके घर आकर कोई भी आज तक खाली हाथ नहीं गया। वे अपने शिष्यों पर दोनों हाथों से लुटाने वाले अनोखे गुरु हैं। मैं जब भी गया, कम से कम एक पेन तो उपहार में लेकर ही लौटा, साथ में और भी बहुत कुछ। उनके घर आने वाले की बिदाई भी खास अंदाज में होती है। हाशमी जी द्वार से बाहर सड़क तक चले आते हैं अपने आशीषों से लबरेज करते हुए।

हाशमी जी के पास कार नहीं है। बरसों तक वे अपनी छोटी सी लूना पर चलते रहे, लेकिन अपने परिचितों को आकाश में उड़ते हुए देखना चाहते रहे। घर-संसार नहीं फैलाया, लेकिन जन-जीवन से भरे हुए संसार को इज्जत दी, उसे प्रेम से सींचा। वे ज्योतिष के अच्छे जानकार हैं, कुछ मंत्रसिद्धियाँ भी हैं उनके पास, जिनका उपयोग वे सबकी भलाई के लिये करते देखे गये हैं। हाशमी जी अपने पास कुछ भी नहीं रखते। उनके पास जो कुछ भी है, सब न्यौछावर करने के लिये हैं।

हाशमी जी महाविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर रहे। कई युवाओं के जीवन की दिशा बदली है उन्होंने। जिन युवाओं की पीठ पर हाशमी जी का हाथ है, वे स्वयं को अपराजेय मानते हैं। हाँ, हाशमी जी बहिर्मुखी हैं, अत्यंत लोकप्रिय हैं, सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं, मिलने के लिये हाथ आगे बढ़ाते हैं। ये सब वे गुण हैं, जो हाशमी जी ने अर्जित किये हैं।

हाशमी जी जल्दी ही स्वस्थ हों, वे फिर से अपनी सृजन-यात्रा आरम्भ करें। भगवान् से हमारी यही प्रार्थना।

(साहित्यकार और चारों वेदों के अनुवादक डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला की फेसबुक वॉल से साभार)