बड़ी जीत : इस मीडियाकर्मी ने दैनिक भास्कर समूह को ला दिया घुटनों पर, जानिए- मजीठिया वेतनमान के लिए संघर्षरत कर्मचारी की सफलता की कहानी

भारत सरकार द्वारा अधिसूचित मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतनमान पाने के लिए सघर्षरत मीडियाकर्मियों के लिए अच्छी खबर है। एक मीडियाकर्मी ने दैनिक भास्कर (डी. बी. कॉर्प लि.) को घुटनों पर आने के लिए मजबूर कर दिया।

बड़ी जीत : इस मीडियाकर्मी ने दैनिक भास्कर समूह को ला दिया घुटनों पर, जानिए- मजीठिया वेतनमान के लिए संघर्षरत कर्मचारी की सफलता की कहानी
मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन पाने के लिए लड़ रहे अस्बर्ट गोंजाल्विस को मिली बड़ी जीत।

मजीठिया वेज बोर्ड अवॉर्ड की लड़ाई लड़ रहे पत्रकारों / गैर-पत्रकारों के लिए मुंबई से एक अच्छी और बड़ी खबर है। ‘दैनिक भास्कर’ के लिए अपने यहाँ कार्यरत अस्बर्ट गोंजाल्विस नामक मीडिया कर्मचारी को मजीठिया वेज बोर्ड माँगने पर नौकरी से निकालना न केवल भारी पड़ गया, बल्कि अस्बर्ट गोंजाल्विस को नौकरी पर फिर से बहाल करने के साथ-साथ उन्हें फुल बैक वेजेस के रूप में करीब 17 लाख रुपए उनके बैंक अकाउंट में भी डालना पड़ा है!

खबर के मुताबिक, अप्रैल, 2023 में मुंबई के श्रम न्यायालय ने ‘दैनिक भास्कर’ (डी. बी. कॉर्प लि.) को आदेश दिया था कि उसने अपने जिस कर्मचारी अस्बर्ट गोंजाल्विस को 7 साल पहले नौकरी से निकाल दिया था, वह उसे नौकरी पर पुनः बहाल तो करे ही, साथ ही साथ अस्बर्ट गोंजाल्विस को इस समयावधि का पूरा बकाया वेतन भी अदा करे।

ज्ञातव्य है कि ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ वही संस्थान है, जो स्वयं को भारत का सबसे बड़ा अखबार समूह बताता है… यह कंपनी हिंदी में ‘दैनिक भास्कर’, गुजराती में ‘दिव्य भास्कर’ और मराठी में ‘दैनिक दिव्य मराठी’ नामक अखबारों का प्रकाशन करती है।

यह बात और है कि श्रम न्यायालय का आदेश आने के बाद भी अस्बर्ट गोंजाल्विस को अपना पूरा हक पाने के लिए लगभग डेढ़ साल के समय का इंतजार करना पड़ा। जी हां, इस आदेश की प्रति जब मुंबई के श्रम कार्यालय में आई, तब पहले तो कंपनी और कर्मचारी के बीच लगभग आठ महीने तक सुनवाई हुई… कंपनी ने अस्बर्ट गोंजाल्विस को मेल के माध्यम से सूचित किया कि हम आपकी सैलरी तो आगामी मई (2023) महीने से देना शुरू कर देंगे, किंतु एरियर्स देने के मामले में उसका जवाब था कि कैलकुलेशन किया जा रहा है और उसे भी आपको कुछ दिनों में दे देंगे।

बेशक, अस्बर्ट गोंजाल्विस को सैलरी मिलने भी लगी, लेकिन एरियर्स देने के नाम पर कंपनी लगातार आनाकानी करती रही… कभी समझौते की पहल के बहाने तो कभी बॉम्बे हाई कोर्ट जाने की बात कह कर ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ ने टाइमपास करना जारी रखा।

इसके बाद अस्बर्ट गोंजाल्विस की तरफ से लेबर डिपार्टमेंट में उनका पक्ष रख रहे ‘न्यूजपेपर एंप्लॉईज यूनियन ऑफ इंडिया’ (NEU India) के जनरल सेक्रेटरी धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने असिस्टेंट लेबर कमिश्नर निलेश देठे से स्पष्ट शब्दों में कहा कि आपको लेबर कोर्ट का आदेश लागू करवाना है, न कि कंपनी द्वारा टाइमपास करने की योजना में उलझना! इस मामले में यूनियन के उपाध्यक्ष शशिकांत सिंह ने भी अस्बर्ट गोंजाल्विस की तथ्यपूर्ण पैरवी की, तब कहीं जाकर श्री देठे ने 1 फरवरी, 2023 को ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ के विरुद्ध अस्बर्ट गोंजाल्विस का रेवेन्यू रिकवरी सर्टिफिकेट (आरआरसी) जारी करते हुए वसूली के लिए उसे मुंबई उपनगर के जिलाधिकारी के पास भेज दिया।

चूंकि इस दौरान देश में लोक सभा का आम चुनाव आ गया… संबंधित जिलाधिकारी कार्यालय का समूचा स्टाफ उसमें व्यस्त हो गया, इसलिए मौके को भुनाने की गरज से ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ प्रबंधन बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंच गया और वहां उसने लेबर कोर्ट के आदेश को चुनौती दी। लेकिन हाय री किस्मत, ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ को मार्च, 2024 में वहां मुंह की खानी पड़ी… बॉम्बे हाई कोर्ट के माननीय जज अमित बोरकर ने लेबर कोर्ट के आदेश को न सिर्फ पूरी तरह सही माना, बल्कि ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ की रिट पिटीशन (3145/2024) को सिरे से ख़ारिज भी कर दिया! इस दौरान संबंधित कंपनी का पक्ष आर. वी. परांजपे और टी. आर. यादव ने रखा, जबकि अस्बर्ट गोंजाल्विस की वकालत विनोद संजीव शेट्टी ने की।

अपने आदेश में विद्वान न्यायाधीश अमित बोरकर ने कहा कि प्रतिवादी (अस्बर्ट गोंजाल्विस) की बर्खास्तगी से पहले न तो उससे कोई पूछताछ की गई और न ही वादी द्वारा उसकी बर्खास्तगी को उचित ठहराने के लिए लेबर कोर्ट के समक्ष कोई ठोस सबूत ही प्रस्तुत किया गया… अदालत ने पाया कि कंपनी की एचआर मैनेजर सुश्री अक्षता करंगुटकर ने प्रतिवादी पर यह कहते हुए इस्तीफा देने का दबाव बनाया कि उसकी परफार्मेंस कमजोर है, लेकिन सिस्टम इंजीनियर अस्बर्ट गोंजाल्विस ने इस्तीफा नहीं दिया तो 31 अगस्त, 2016 को उसकी सेवा समाप्त कर दी गई… यही नहीं, 1 सितंबर, 2016 को अस्बर्ट के दफ्तर में प्रवेश करने पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया।

इसलिए प्रतिवादी ने लेबर डिपार्टमेंट से होते हुए लेबर कोर्ट का रुख किया और नौकरी पर अपनी पुनः बहाली के लिए वहां प्रार्थना करते हुए अदालत को अवगत कराया कि उसकी सेवा-समाप्ति अवैध है… यह कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना किया गया है, इसलिए सेवा बहाली सहित उसको 1 सितंबर, 2016 से पूर्ण बकाया वेतन भी मिलना चाहिए। अदालत ने याचिकाकर्ता के इस आरोप को मानने से इनकार कर दिया कि नोटिस पीरियड में प्रतिवादी ठीक से काम करने में विफल रहा अथवा उसने अनुमति के बिना छुट्टी का लाभ उठाया या फिर कई चेतावनियों के बावजूद उसके रवैए में कोई सुधार नहीं हुआ!

यहां बताना आवश्यक है कि अस्बर्ट गोंजाल्विस को नौकरी से अचानक तब निकाल दिया गया था, जब उन्होंने ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ से भारत सरकार द्वारा अधिसूचित मजीठिया अवॉर्ड की मांग की थी। खैर, बॉम्बे हाई कोर्ट में मुकदमे की सुनवाई के दौरान कंपनी का प्रयास था कि अस्बर्ट गोंजाल्विस को नौकरी पर पुनः रखने का आदेश ख़ारिज कर दिया जाए, परंतु बॉम्बे हाई कोर्ट ने प्रतिवादी के शपथ-पत्र में किए गए दावे के आधार पर कंपनी के वकील की मांग सिरे से ख़ारिज कर दी, जैसे- प्रतिवादी ने नौकरी ढूंढने की कोशिश की, लेकिन कलंकपूर्ण सेवा-समाप्ति के कारण उसे कहीं नौकरी नहीं मिली। इसलिए लेबर कोर्ट का यह आदेश उचित है कि कंपनी में साढ़े आठ साल तक की नौकरी कर चुके प्रतिवादी को बहाल करने सहित उसे उसका पिछला पूरा बकाया मिलना ही चाहिए। इतना ही नहीं, माननीय जज अमित बोरकर ने पर्याप्त कानून न होने का हवाला देते हुए एरियर्स की राशि में संशोधन (कमी) करने से भी इनकार कर दिया… और अपने आदेश की अंतिम पंक्तियों में माननीय हाई कोर्ट ने कहा- ‘लेबर कोर्ट द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों में कोई विकृति नहीं है, इसलिए याचिका में कोई दम नहीं है… रिट याचिका खारिज की जाती है।’

इसके बाद धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश की प्रति जब मुंबई (उपनगर) जिलाधिकारी कार्यालय को उपलब्ध करवाई, तब कहीं मामले में तेजी आई… यहां से आरआरसी के संदर्भ में तहसीलदार (अंधेरी) को आदेश हुआ, फिर तहसीलदार ने तलाठी (सांताक्रुज) को निर्देशित किया कि बकाएदार कंपनी को नोटिस देकर उसे आगे की कार्यवाही से अवगत कराया जाए। आखिर ‘डी. बी. कॉर्प लि.’ के प्रबंधन को एक बात अच्छी तरह समझ में आ गई कि अब बचने का कोई रास्ता नहीं है… सुप्रीम कोर्ट में जाने के बाद कहीं मजीठिया अवॉर्ड को लेकर उस पर अवमानना का मामला न बन जाए, अत: कंपनी ने पिछले महीने की 25 तारीख को तहसीलदार कार्यालय में 16,90,802/- की डीडी जमा करवा दी!

वैसे डीडी की यह धनराशि अस्बर्ट गोंजाल्विस के अकाउंट में तुरंत आ गई हो, ऐसा भी नहीं था… अस्बर्ट बताते हैं- ‘इसके लिए हमारी यूनियन के जनरल सेक्रेटरी धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने बहुत भागदौड़ की। यह धर्मेन्द्र जी ही थे, जिन्होंने लेबर आफिस में मेरा मजबूती से पक्ष रखा तो जिलाधिकारी, तहसीलदार और तलाठी तक से लगातार टच में रहते हुए मुझे रोजाना अपडेट दे रहे थे। इसीलिए अभी 23 अगस्त को फुल बैक वेजेस का मेरा अमाउंट जब मेरे अकाउंट में क्रेडिट हुआ, तब सबसे पहले मैंने उन्हीं को फोन करके आभार व्यक्त किया!’ बहरहाल, माननीय न्यायालय के माध्यम से अस्बर्ट गोंजाल्विस को मिले इस न्याय को लेकर भारत के समस्त मजीठिया क्रांतिकारियों में उत्साह की लहर है !

(भड़ास फॉर मीडिया डॉट कॉम की फेसबुक वॉल से पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी शशिकांत सिंह की रिपोर्ट ज्यों कि त्यों साभार)