रतलाम बंगाली समाज इस वर्ष श्री सार्वजनिक दुर्गा पूजा महोत्सव की स्वर्ण जयंती मनाएगा, 20 अक्टूबर को देवी बोधन व कल्पारंभ से होगी अनुष्ठान की शुरुआत

इस वर्ष रतलाम का बंगाली समाज 50वां श्री सार्वजनिक दुर्गा पूजा महोत्सव मनाएगा। इसके तहत षष्ठी से विजय दशमी तक रोज आयोजन होंगे।

रतलाम बंगाली समाज इस वर्ष श्री सार्वजनिक दुर्गा पूजा महोत्सव की स्वर्ण जयंती मनाएगा, 20 अक्टूबर को देवी बोधन व कल्पारंभ से होगी अनुष्ठान की शुरुआत
बंगाली समाज का श्री सार्वजनिक दुर्गा पूजा महोत्सव 20 अक्टूबर से।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । रतलाम का बंगाली समाज इस वर्ष श्री सार्वजनिक दुर्गा पूजा महोत्सव की 50वीं जयंती मनाएगा। इस मौके पर होने वाले अनुष्ठानों की शुरुआत 20 अक्टूबर को देवी बोधन एवं कल्पारंभ के साथ होगी। षष्ठी से विजयादशमी तक विभिन्न आयोजन होंगे।

रतलाम में बंगाली समाज के स्थायी निवासी परिवार मात्र 15-20 ही हैं लेकिन अस्थायी बंगालियों एवं माँ दुर्गा के आराधकों की संख्या अच्छी खासी है। समाजजन पूरे उत्साह और उमंग के साथ अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी से विजया दशमी तक श्री सार्वजनिक दुर्गा पूजा महोत्सव मनाते हैं। रतलाम में इसकी शुरुआत 1974 में हुई थी। इस वर्ष महोत्सव का 50वां वर्ष (स्वर्ण जयंती) है। इसकी सारी तैयारी हो चुकी है। 

5 दशक से जारी है परंपरा

रतलाम में बंगाली समाज द्वारा दुर्गा पूजा की परंपरा 5 दशक से जारी है। प्रारंभ में कालिका माता मंदिर प्रांगण में महोत्सव की शुरुआत हुई थी। इसके बाद मोंटेसरी स्कूल प्रांगण और अब श्री रामकृष्ण विवेकानंद आश्रम जवाहर नगर में अनुष्ठान होते हैं। इस दौरान प्रतिकूल परिस्थितियों में भी समाज के सदस्यों ने पूजा निर्बाध जारी रखी। बंगाल से आए मूर्तिकार महिषासुर मर्दिनी माँ दुर्गा एवं उनके परिवार की आकर्षक प्रतिमा का निर्माण किय जाता। इसमें शक्तिस्वरूपा माँ दुर्गा, समृद्धि की देवी माँ लक्ष्मी, ज्ञान की देवी माँ सरस्वती, सदबुद्धि के देवता श्री गणेश तथा सार्थक शौर्य के प्रतीक श्री कार्तिकेय की प्रतिमा का निर्माण कर पूजा-अर्चना की जाती है। पूजा कर्मकांड के लिए पुरोहित बाहर से ही आते हैं।

नवरात्रि और पांच दिवसीय दुर्गा पूजा में अंतर

नवरात्रि में प्रतिपदा से नौ दिन तक पूजा अर्चना और अनुष्ठान होते हैं। वहीं बंगाली समाज का दुर्गा पूजा महोत्सव षष्ठी के दिन माता को आमंत्रण, अधिवास एवं घट स्थापना के साथ शुरू होता है। ऐसा माना जाता है कि कैलाशवासिनी देवी माँ दुर्गा ससुराल से अपने मायके पांच दिवसीय प्रवास के लिए पधारी हैं। इसलिए उनके आगमन एवं प्रस्थान के समय समाज की महिलाएं विशेष रूप से आराधना करती हैं। इसमें शंख ध्वनि, ढाक और ढोल की गूंज के साथ "बोलो-बोलो दुर्गा माई की जय" का उद्घोष होता है। पांचों दिन सुबह-शाम आरती, पूजा और पुष्पांजलि का क्रम चलता है। अष्टमी की संधि पूजा, विजयादशमी पर दर्पण विसर्जन और सिंदूर खेला विशेष आकर्षण होता है। 

बंगाल में श्रद्धा, समर्पण और गौरव का है मामला

बंगाल में दुर्गा पूजा उत्सव बंगालियों की श्रद्धा व समर्पण के साथ गौरव का विषय है। हर बंगाली व्यक्ति का प्रयास रहता है कि वह जहाँ भी रहे वहाँ उसकी ईष्ट देवी माँ दुर्गा की आराधना और उपासना का अवसर अवश्य मिले। दैवीय शक्ति माँ दुर्गा की आसुरी शक्ति महिषासुर पर विजय के रूप में यह पूजा सनातन संस्कृति में अच्छाई की बुराई पर जीत का संदेश देती है। भगवान श्रीराम द्वारा रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए की गई अकाल देवी बोधन भी इस पूजा का विशेष महत्व दर्शाती है।