मैं चली... मैं चली... : आज आखिरी दिन है अपका स्नेह पाने का, आपकी जिंदगी का हिस्सा बन जाने का
रतालम में 50 से अधिक कलाकारों संगम है। यह संगम अब सिर्फ कुछ घंटे यहां और रहेगा। इसके बाद यह अगले पड़ाव के लिए प्रस्थित हो जाएगा। यानी रतलामवासियों के पास सिर्फ रविवार (4 दिसंबर) का ही दिन है कला को सम्मान देने और अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाने के लिए।
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । मैं चली..., मैं चली..., अगले पड़ाव को चली...। जी, हां ! अब मेरा आपसे विदाई लेने का वक्त आ चुका है। अब मैं आपके आंगन में कुछ घंटे ही और रहूंगी। अब तक आपने मुझे और मेरे कलाकारों को बहुत प्रोत्साहन दिया है हमेशा की तरह। इसलिए यहां से जाते-जाते आपका ऐसा ही स्नेह पाने की चाहत और जागी है। मुझे यकीन है इस विदाई की घड़ी में भी आपका भरपूर प्रोत्साहन मिलेगा। यह प्रोत्साहन ही तो मेरे कलाकार साथियों का हौसला बढ़ाता है और आपके के लिए कुछ नया करने और लाने का जोश और जज्बा भी पैदा करता है। मैं वादा करती हूं कि मैं फिर आऊंगी, आपके लिए बहुत कुछ नया और उपयोगी लेकर लेकिन उससे पहले अपना थोड़ा सा स्नेह और लुटा दीजिए, अभी मेरे पास जो कुछ भी है उसे अपने जीवन का हिस्सा बना लीजिए।
जी, मैं हूं आपकी अपनी हस्तशिल्प और हथकरघा प्रदर्शनी। मुझे अपने कलाकारों की कला का प्रदर्शन करने का मौका दिया संत रविदास मप्र हस्तशिल्प एवं हाथकरघा विकास निगम ने स्वर्ण के पारखी रतलाम में। शिल्प और कला पारखियों की रत्नपुरी में आकर मैं और मेरे 50 से अधिक कला साधक धन्य हैं। मैं इस नगरी में रविवार को और रहूंगी सुबह 11 से रात 9 बजे तक, रोटरी क्लब हॉल अजंता टॉकीज रोड पर।
एक जगह कला का इतना बड़ा खजाना कहीं और नहीं
प्रदेश के कलाकारों के इस संगम में एक ही स्थान पर कला का काफी बड़ा खजाना है जो कहीं और नहीं मिलेगी। शरीर, स्वास्थ्य, सौंदर्य, परिधान, सजावट, शृंगार आदि के लिए उपयोगी कलात्मक सामग्री सहित सबकुछ तो है यहां। एक स्थान पर कला का इतना बड़ा खजाना देखने और इसे अपनाने लेने का आज आखिरी दिन है।
उचित गुणवत्ता, विश्वास का प्रतीक
मेला आयोजक दिलीप सोनी कहते हैं कि प्रदेश के शिल्पी सरकार से पुरस्कार और सम्मान पाते हैं। इसका कारण केवल इतना है कि उनके उनके उत्पाद घर की सुख, शांति और समृद्धि बढ़ाते हैं। रोटरी क्लब हॉल अजंता टॉकीज रोड में लगा कला प्रदर्शनी के माध्यम से ऐसे बेमिसाल उत्पादन आम ही नहीं खास लोगों तक पहुंची है। यवुतियों-महिलाओं के शृंगार के लिए सिर से लेकर नख तक की बाजार में मिलने कोई भी सामग्री हस्तशिल्प के सामने नहीं टिकती।
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हस्तशिल्प मेले में उपलब्ध साड़ियां और उनकी कारीगरी अनमोल है। ऐसी साड़ियां आपको बाजार में नहीं मिलेंगी। जूते तो बाजार में भी मिलते हैं, लेकिन उसमें लेदर लगा या रेग्जीन, इसकी पहचान करना ग्राहक की ही जिम्मेदारी है लेकिन हस्तशिल्प के संगम में ऐसी पहचान करने का संकट ही नहीं। यही कारण है कि हस्तशिल्प मेले के उत्पाद किसी भी स्तर तक जाकर अपनी गुणवत्ता बनाए रखते हैं और विश्वास का प्रतीक भी हैं।
यह सब सिर्फ हस्त शिल्प मेले में ही मिलेगा
बेडशीट, मालाबरी सिल्क, सलिल कॉटन, महेश्वरी साड़ी, बाग की साड़ियां, सूट, रेडीमेड कुर्ते, खंडवा का सिल्क कॉटन, प्रिंटेड सूट, मंदसौर की मीनाकारी, इंदौर का सिरेमिक आर्ट, ग्वालियर की सिक्का ज्वैलरी, दुधि के लकड़ी के खिलौने, ग्वालियर का ग्लास वर्क व चूड़ियां, उज्जैन की लाख की ज्वैलरी, मांडना, खजूर शिल्प, देवास के लेदर बैग सिर्फ और सिर्फ हस्तशिल्प मिले में ही मिलेगा, और कहीं नहीं।
विद्यार्थियों ने जानी कला की बारीकियां
हस्तशिल्प मेला उद्यमिता और कला के प्रति रुचि रखने वाले लोगों के लिए भी सीखने-सिखाने और देखने का स्थान रहा है। यही वजह है कि कॉलेज के विद्यार्थियों ने कला की बारीकियां जानीं और यहां के उत्पादों को अपने घर में स्थान भी दिया।
कलेक्टर सूर्यवंशी दंपति को मेला ऐसा भाया कि कह दी इतनी बड़ी बात
रतलाम कलेक्टर नरेंद्र सूर्यवंशी और उनकी धर्मपत्नी नीलम को भी कला की काफी कद्र है। यही वजह है कि वे जब यहां आए तो 2 घंटे तक कला और कलाकारों को परखने में खो गए। कलेक्टर की धर्मपत्नी को बाग प्रिंट की साड़ियों ने काफी आकर्षित किया। इस दौरान किसी ने कलाकारों से कहा कि आज वीआईपी आए हैं, इन्हें वस्तुओं में छूट भी उसी अनुसार मिलनी चाहिए। इस पर कलापारखी कलक्टेर ने कह दिया कि ऐसा नहीं होना चाहिए। कलाकार काफी मेहनत कर सजीव उत्पाद बनाते हैं। इसलिए उन्हें उनकी कला को पर्याप्त सम्मान मिलना चाहिए और आम हो या खास, किसी को भी कीमत में छूट नहीं देने चाहिए। उनकी यह बात कलाकारों के दिल को छू गई और वे कलेक्टर दंपती के वहां से जाने के बाद भी काफी समय तक उन्हीं की चर्चा करते रहे।