दौलत आने पर इंसान पापी और जाने पर पागल बन जाता है, धर्म से जुड़े रहोगे तो धन का लोभ नहीं रहेगा- मुनिराज ज्ञानबोधि विजयजी म.सा.
रतलाम में आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी का चातुर्मास चल रहा है। इस दौरान रोज प्रवचन हो रहे हैं। शनिवार को आचार्य श्री के शिष्य़ श्री ज्ञानमुनिजी ने दौलत के मन और व्यक्ति पर होने वाले दुष्प्रभाव की जानकारी दी।
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । संसार में दौलत आने पर इंसान पापी बन जाता है और जाने पर पागल हो जाता है। यदि आपका मुंह धन की ओर है, तो पीठ धर्म की ओर होगी। यदि आपका मुंह धर्म की तरफ है तो पीठ धन की तरफ होगी। यदि धर्म से जुड़े रहोगे, तो धन का लोभ नहीं रहेगा।
यह बात सैलाना वालों की हवेली मोहन टाकीज में आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा के शिष्य मुनिराज ज्ञानबोधि विजयजी म.सा. ने कही। चातुर्मासिक प्रवचन में शनिवार को मुनिराज ने धन और धर्म पर विस्तार से प्रकाश डाला। स्वाध्याय को संयम की नींव बताते हुए उन्होनें कहा कि साधु जीवन का प्रण ही स्वाध्याय है। संयम, मन या विचार परिवर्तन से आता है। सिर पर यदि गुरु का हाथ है, तो जीवन धन्य हो जाता है। मोक्ष ऐसे इंसान का होता है जो मेहमान बनते हैं, दूसरे के बनते हैं और मन को मिटाकर शिष्य बनते हैं।
रविवार को "मां-बाप को भूलना नहीं" विषय पर होंगे
मोहन टाकीज सैलाना वालों की हवेली में रविवार को आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. के मुखारविंद से "मां-बाप को भूलना नहीं" विषय पर विशेष जाहिर प्रवचन होंगे। आचार्य श्री ने शनिवार के प्रवचन में माता के पांच प्रकार बताए। उन्होंने कहा कि माता के रूप जन्म दात्री, मातृ भूमि, मातृ भाषा, मातृ संस्था और मातृ विषय है। श्री देवसुर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी रतलाम ने युवाओं से अधिक से अधिक संख्या में आचार्य श्री के विशेष प्रवचन में उपस्थित रहने की अपील की है।