ग़ज़ल गोष्ठी : 'परवाज़ कर रहा है मगर चीखता हुआ...'
ग़ज़ल गोष्ठी का आयोजन शहर की साहित्यिक संस्थाओं बज्मे अदब और गुलदस्ता साहित्य मंच द्वारा किया गया। इस दौरान शायरों ने कलाम पेश किए।
बज़्मे अदब एवं गुलदस्ता साहित्य मंच के आयोजन में शायरों ने पेश किए बेहतरीन कलाम
एसीएन टाइम्स @ रतलाम। बज़्मे अदब एवं गुलदस्ता साहित्य मंच द्वारा ग़ज़ल गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें मशहूर शायर साहिर अफ़गानी के मिसरे 'परवाज़ कर रहा है मगर चीखता हुआ' पर तरही ग़ज़ल गोष्ठी का आयोजन किया गया। अध्यक्षता जावरा से आए शायर शबाब गुलशनाबादी ने की।
ग़ज़ल गोष्ठी में अब्दुल सलाम खोकर ने अपनी ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा- "महंगाई का ये दौर और आम आदमी, जीने को जी रहा है मगर रेंगता हुआ।" सिद्दीक़ रतलामी ने अपनी ग़ज़ल में कहा- "ख़ामोशियां भी शेर की पढ़ते रहा करो, ख़ामोश हर सदा में है मानी छुपा हुआ।"
आशीष दशोत्तर ने अपनी ग़ज़ल में कहा, " नफ़रत मिटा मिटा के उसे हार जाएगी, दिल में जो अपने प्रेम का पुल है बना हुआ।" खंडवा से आए शायर अब्दुल गनी ने अपनी ग़ज़ल में कहा, "जज़्बात कर रहे हैं उजाले की आरज़ू, आंखों में सो रहा है अंधेरा थका हुआ।" जहूर शाहिद खंडवा ने भी बेहतरीन कलाम पढ़ा। फज़ल हयात, लक्ष्मण पाठक, आरिफ अली, मुकेश सोनी, फैज़ रतलामी, शबाब गुलशनाबादी, शब्बीर राही, मकसूद ख़ान, ग़ुलाम मोइनुद्दीन, अमीरुद्दीन अमीर, नानालाल प्रजापति हसनपालिया ने अपनी ग़ज़लें प्रस्तुत की। गोष्ठी का संचालन सिद्दीक रतलामी ने किया। आभार अब्दुल सलाम खोकर ने व्यक्त किया।