नाम प्रॉपर्टी मेला - एजेंडा आंदोलन का ! रतलाम जिले के प्रॉपर्टी व्यवसायी शासन और प्रशासन के खिलाफ लामबंद, 1 मार्च को सम्मेलन में बनेगी उग्र आंदोलन की रणनीति !
शासन और प्रशासन की नीतियों से नाराज प्रॉपर्टी व्यवसायियों ने लामबंदी शुरू कर दी है। उन्होंने आगामी दिनों में प्रस्तावित उग्र आंदोलन की रणनीति बनाने के लिए 1 मार्च को सम्मेलन भी आहूत किया है। यह सम्मेलन प्रॉपर्टी मेले की आड़ में होने जा रहा है।
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एसीएन टाइम्स @ रतलाम । प्रॉपर्टी व्यवसाय में चल रहे मंदी के दौर के लिए शासन-प्रशासन की नीतियां को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। करोड़ों रुपए का राजस्व देने वाले रतलाम जिले के प्रॉपर्टी व्यवसायी शासन और प्रशासन के विरुद्ध लामबंद हो चुके हैं। उनकी नाराजगी जिले के जनप्रतिनिधियों से भी है। उन्होंने अपनी इस नाराजगी को जाहिर भी कर दिया है और आंदोलन की राह पकड़ ली है। कहने को तो जिले के प्रॉपर्टी व्यवसायियों द्वारा 1 मार्च को जिला मुख्यालय पर प्रॉपर्टी मेले का आयोजन किया गया है, जबकि वास्तव में यह शासन और प्रशासन के विरुद्ध होने वाले आंदोलन का शंखनाद है जिसमें आगामी दिनों में होने वाले उग्र आंदोलन की रणनीति बनेगी।
जिले के प्रॉपर्टी व्यवसायियों की उक्त मंशा सोशल मीडिया पर साझा हो रहे एक संदेश से जाहिर हो रही है। इस संदेश के माध्यम से प्रॉपर्टी व्यवसायियों, कॉलोनाइजर, बिल्डर, ब्रोकर और ठेकेदारों को उक्त सम्मेलन सह प्रॉपर्टी मेले में आमंत्रित किया गया है। शहर के एक मैरिज गार्डन में होने वाले इस जमावड़े में इन सभी को आकर्षित करने के लिए गीत-संगीत के साथ ही स्वास्थ्य परीक्षण शिविर भी आयोजित किया गया है। बताया जा रहा है कि यदि 8 मार्च तक प्रॉपर्टी व्यवसायियों की समस्याओं का समाधान नहीं होता है तो वे उग्र आंदोलन भी कर सकते हैं।
125 करोड़ रुपए का राजस्व देने के बाद भी नहीं देते ध्यान
प्रॉपर्टी व्यवसायी शासन-प्रशासन के विरुद्ध रतलाम जिला प्रॉपर्टी व्यवसाय संघ के बैनर तले लामबंद हुए हैं। उनका तर्क है कि रतलाम जिले से प्रॉपर्टी व्यवसायी प्रतिवर्ष मध्य प्रदेश शासन को पंजीयन विभाग के माध्यम से लगभग 125 करोड़ रुपए का राजस्व देते हैं। इसके बावजूद शासन-प्रशासन और जनप्रतिनिधि उनकी समस्याओं की ओर ध्यान नहीं दे रहे। यह समस्या सिर्फ उनके व्यवसाय तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कृषि भूमि मालिकों की भी। यदि कृषि भूमि के मालिक भी अपनी भूमि बेचेंगे तो उन्हें भी समस्याएं आना तय हैं। प्रॉपर्टी व्यवसायियों के अनुसार मध्य प्रदेश शासन द्वारा दावा किया जाता है कि दस्तावेज का पंजीयन होते ही नामांतरण हो जाएगा और आपको पटवारी या विभाग के पास नहीं जाना पड़ेगा, लेकिन ऐसा नहीं होता। इसी कारण उन्होंने आंदोलन का रुख अख्तियार किया है।
प्रॉपर्टी व्यवसायियों के तर्क और मांगें
- प्रशासन द्वारा सन् 1956-57 का रिकॉर्ड मांग कर परेशान किया जा रहा है और नामांतरण नहीं किया जा रहा। अतः या तो शासन अपना रिकॉर्ड सुधारे और वर्तमान में खसरा-खाते में जो नाम है उसी पर नामांतरण कर दे। लोगों से 1956-57 का रिकॉर्ड नहीं मांगा जाए। ऐसा कोई नियम भी नहीं है और न ही लिखित आदेश है।
- भारत में दस्तावेज़ पंजीयन कराने में सबसे ज्यदा स्टांप ड्यूटी मध्य प्रदेश में लगती है। अतः यहां भी अन्य प्रदेशों की तरह दस्तावेज पंजीयन के लिए सिर्फ 7 प्रतिशत स्टांप ड्यूटी नियत की जाए। पूर्व कलेक्टर द्वारा कॉलम-12 के अंदर जमीनों के कुछ टुकड़ों की रजिस्ट्री और नामातरण पर रोक लगाई थी, वह भी तत्काल हटाकर रजिस्ट्री और नामांतरण किए जाएं।
- पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने घोषणा की थी कि नामांतरण की अनुमति चालू कर दी जाएगी जो अब तक चालू नहीं की गई है। इसे यथाशीघ्र चालू किया जाए। जब से इस पर रोक लगी थी और उसके पहले के सभी विभाजित हो चुके भूखंडों का नामांतरण करने की अनुमति जारी की जाए।
- धारा 165 के अंतर्गत पटवारी, गिरदावर, तहसीलदार और एसडीएम स्तर पर जांच करने के बाद ही सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद ही कलेक्टर द्वारा रजिस्ट्री की अनुमति दी जाती है। इसके बाद भी आयुक्त द्वारा बिना किसी शिकायत के ही जांच के नाम पर परेशान किया जाता है और उस रजिस्ट्री को शून्य कर दिया जाता है। अगर वाकइ गलत हुआ है तो उन अधिकारियों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए जिनके जांच करने के बाद रजिस्ट्री की अनुमति दी गई। अगर अनुमति ही नहीं मिलती तो व्यवसायी रजिस्ट्री ही नहीं करते।
- जब भी किसी कृषि भूमि की नपती हो और वह राजस्व रिकॉर्ड और ट्रैश आकृति (नक्शे) के हिसाब से कम या ज्यादा हो तो नपती के पंचनामे में उसका अनिवार्य रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए। इससे जब भी भविष्य में नपती हो तो संबंधित को जानकारी रहे कि उसकी जमीन कम है या ज्यादा। कृषि भूमि के नपती के बाद फील्ड बुक देना भी अनिवार्य किया जाना चाहिए।
- कलेक्टर द्वारा निर्धारित गाइड लाइन में कुछ व्यावसायिक क्षेत्रों की दरें अत्यधिक होने से प्रॉपर्टी खरीदी-बिक्री में कमी आई है। इससे शासन को राजस्व की हानि हो रही है। इसमें भी सुधार हो।
- नगर सुधार न्यास रतलाम की प्रॉपर्टी के नामांतरण में आने वाली समस्याओं को भी अतिशीघ्र हल किया जाए। मप्र गृह निर्माण मंडल की प्रॉपर्टी के नामांतरण को लेकर भी काफी परेशान किया जाता है अतः उसका भी सरलीकरण किया जाना चाहिए।
प्रशासन हर गतिविधि पर रख रहा नजर
बताया जा रहा है कि प्रॉपर्टी व्यवसायियों की लामबंदी के बारे में प्रशासन को भी जानकारी मिल चुकी है। अतः प्रशासन प्रॉपर्टी व्यवसायियों की हर गतिविधि पर नजर रख रहा है।