रवींद्रनाथ टैगोर जयंती (7 मई) पर विशेष : रवींद्रनाथ टैगोर : जन-गण-मन का भोर- अज़हर हाशमी
विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, और भारतीय दार्शनिक तथा एशिया का पहला नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले रवींद्रनाथ टैगोर को सभी गुरुदेव के नाम से जानते हैं। प्रो. अज़हर हाशमी की यह रचना पढ़ें जो बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा टैगोर का जीवन चित्र उकेरने में सार्थक प्रतीत होती है।
रवींद्रनाथ टैगोर : जन-गण-मन का भोर
हमारे राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन’ के
रचयिता थे रवींद्रनाथ टैगोर
अपनी साहित्यिक काव्यकृति 'गीताजंलि' पर
मिला था उन्हें सन् 1913 में
विश्व प्रसिद्ध 'नोबल पुरस्कार'
जिससे दुनिया में हुई थी भारत की जय-जयकार
मान्य हुआ था देश का रचनात्मक-संस्कार
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7 मई 1861 को बंगाल के कलकत्ता में
जन्में थे देवेंद्र-शारदा के यहां रवींद्रनाथ टैगोर
वे थे ऐसी बहुमुखी प्रतिभा
जिसका 'न-ओर था- न छोर'
रवींद्रनाथ का कृतित्व था समुद-सा
जिसमें मिल जाती हैं सृजन की समस्त सरिताएं
यानी कला-संगीत-रंगकर्म-कविताएं
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रवींद्रनाथ टैगोर थे चित्रकार भी
उन्होंने तूलिका और रंग से उकेरे थे चित्र
प्रकृति-पर्वत-बादल-संशय-मोह के
उनकी प्रमुख कृतियां हैं 'चोखेरवाली', 'गोरा', 'घर-बहिरे'
वैज्ञानिक आइंस्टीन से हुई थी उनकी ऐतिहासिक वार्ता
मानवतावाद ही टैगोर की दृष्टि में था दिन-रैन
'शांति निकेतन' है शिक्षा में उनकी अनुपम देन
-अज़हर हाशमी