अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी : राष्ट्रवाणी के साथ राष्ट्रीयता का विकास कर रही हैं हिंदी सेवी संस्थाएं और पत्र-पत्रिकाएं- प्रो. शैलेंद्र शर्मा
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना संस्था द्वारा अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का वर्चुअल आयोजन किया गया। इसमें हिंदी सेवी संस्थाओं और पत्र-पत्रिकाओं के राष्ट्रवाणी के साथ राष्ट्रीयता के विकास में योगदान पर मंथन किया गया।
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना संस्था द्वारा आयोजित संगोष्ठी में हुआ स्वैच्छिक हिंदी सेवी संस्थाओं और पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका पर मंथन
एसीएन टाइम्स @ उज्जैन । अगर हिंदी को विश्वव्यापी बनाना है तो हिंदी को कम्प्यूटर एवं संचार प्रौद्योगिकी से जोड़ कर कार्य करना होगा। इससे रोजगार सृजन के अवसर प्रदान किए जा सकेंगे। स्वैच्छिक हिंदी संस्थाओं और पत्र-पत्रिकाओं ने राष्ट्रीय चेतना के प्रसार और स्वाधीनता आंदोलन में योगदान देने के साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में निवासरत हिंदीतर भाषियों को हिंदी के साथ जोड़ने में अविस्मरणीय भूमिका निभाई। उन्होंने राष्ट्रवाणी के प्रचार प्रसार के साथ देश के सांस्कृतिक एकीकरण में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया। हिंदी भाषा शिक्षण, अनुसंधान, पत्रकारिता, दृश्य श्रव्य माध्यम लेखन, अनुवाद आदि क्षेत्रों में उन्होंने अनेक युवाओं को तैयार किया। इन संस्थाओं और पत्र-पत्रिकाओं को इक्कीसवीं सदी की जरूरतों के अनुरूप व्यापक प्रयास करने होंगे।
यह बात विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कही। वे भारत की स्वैच्छिक हिंदी सेवी संस्थाओं और पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका : उपलब्धि और सम्भावनाएँ विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। आयोजन राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के तत्वावधान में किया गया था।
मुख्य अतिथि शरद चन्द्र शुक्ल (ओस्लो-नार्वे) रहे। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता वही है जो, नई जानकारी लेकर आए। क्षेत्र में कार्य करने वाले लोग स्वयं सूचना एकत्रित करें। परोसी गई सूचनाओं पर विश्वास ना करें। हिन्दी को विश्व भाषा बनाने के लिए हम भी संयुक्त राष्ट्र संघ के रेडियो को सुनें।
हिंदी प्रचार-प्रसार के लिए दो प्रकार की संस्थाएं कर रहीं काम
अध्यक्ष राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना राष्ट्रीय संयोजक डॉ. शहावुद्दीन नियाज़ मोहम्मद शेख (पुणे-महाराष्ट्र) ने की। उन्होंने कहा दो प्रकार की संस्थाएं हिंदी प्रचार प्रसार के लिए कार्य कर रही हैं। कुछ संस्थाओं को सरकारी अनुदान मिलता है। कुछ अपने बलबूते पर कार्य कर रही हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में हिंदी में संशोधन आलेख छपते हैं।
1972 में इंदौर से प्रकाशित हुई थी वीणा पत्रिका
हिंदी परिवार के अध्यक्ष हरेराम वाजपेयी (इंदौर) ने कहा कि हिंदी में आकाशवाणी के माध्यम से सीखा कि समयबद्धता, शुद्ध उच्चारण और आरोह अवरोह के साथ किस प्रकार अपनी बात कही जानी चाहिए। मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति इंदौर के इतिहास के संबंध में चर्चा करते हुए वाजपेयी ने वहां से 1927 से प्रकाशित पत्रिका वीणा के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
नागरी संगम विश्व की नागरी लिपि में प्रकाशित होने वाली विश्व की एकमात्र पत्रिका
नागरी लिपि परिषद नई दिल्ली के महामंत्री डॉ. हरिसिंह पाल ने कहा कि हिन्दी के लिए रेडियो के माध्यम से कई लोगों ने कार्य किया। आकाशवाणी के मथुरा एवं अन्य केंद्रों के लिए प्रकाशन एवं मुद्रण का कार्य किया। साहित्य भारती, संस्कृति भारती, चित्र भारती, युवा भारती आदि कई पत्रिकाओं के प्रकाशन का दायित्व मुझे मिला। इन पत्रिकाओं में तमिलनाडु, केरल, गुवाहाटी प्रदेशों से लेख मंगवाए जाते थे। आज भी नागरी संगम पत्रिका विश्व की एकमात्र पत्रिका है जो नागरी लिपि के लिए प्रकाशित होती है और अंतरराष्ट्रीय सौरभ पत्रिका में कनाडा, अमेरिका आदि से लेख मंगाकर प्रकाशित किए जाते हैं।
भारतीय राष्ट्रीय महिला दिवस पर डाला प्रकाश
कार्यकारी अध्यक्ष सुवर्णा जाधव (पुणे-महाराष्ट्र) ने कहा कि पत्र-पत्रिकाओं ने समय के साथ-साथ चलते हुए ईमेल और व्हाट्सएप पर भी समाचार भेजना शुरू किया है। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय महिला दिवस की चर्चा करते हुए कहा कि यह सरोजिनी नायडू के जन्म दिवस पर मनाया जाता है।
राष्ट्रीय संयोजक डॉ. अनुसूया अग्रवाल (छत्तीसगढ़) ने कहा कि भारतेंदु जी ने कहा था- निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटे न हिय को सूल। देश की कई पत्रिकाएं विश्व स्तर की पत्रिकाओं को टक्कर दे रही हैं।
डॉ. शेख शहनाज ने काशी नागरी प्रचारिणी सभा का उद्देश्य बताया। उन्होंने कहा कि केंद्रीय संस्थाओं द्वारा साहित्य के सभी अंगों की को उन्नत किया जा रहा है। उन्होंने हिंदी सेवा की दृष्टि से गांधी जी को याद किया और राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा द्वारा राष्ट्रभाषा के प्रचार प्रसार में योगदान को रेखांकित किया।
साहित्य एवं साहित्यकार को मंच देने में महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं पत्र-पत्रिकाएं
छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय पाठक बिलासपुर ने कहा कि अनेक संस्थाएं भाषा के प्रचार-प्रसार में सहयोगी हैं। सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, धार्मिक सभी क्षेत्रों में उन्नति के लिए कई संस्थाएं भारतेंदु जी के समय स्थापित हुईं। उन्होंने स्त्री एवं वंचित वर्ग के उत्थान आदि के लिए भी कार्य किए। साहित्य और साहित्यकार को मंच देने में पत्र-पत्रिकाएं महत्वपूर्ण कार्य करती हैं। माधवराव सप्रे ने पत्रिका के माध्यम से खंडन मंडन समीक्षात्मक पद्धति की शुरुआत की थी।
डॉ. अरुणा शुक्ला ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार भाषा विभाग के अधीन संस्थाएं कई पुरस्कार प्रदान करती हैं। विभिन्न योजनाओं के लिए अनुदान प्रदान किया जाता है।
डॉ. बरबीन बाला का किया सारस्वत सम्मान
साहित्यकार डॉ. परबीन बाला (पटियाला-पंजाब) को उनके जन्मदिवस पर सारस्वत सम्मान से सम्मानित किया गया। इससे पूर्व संगोष्ठी की शुरुआत महिला इकाई की मुख्य महासचिव डॉ. रश्मि चौबे (गाजियाबाद) ने सरस्वती वंदना से की। स्वागत भाषण संस्था महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी के दिया। उन्होंने राष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई दी। प्रस्तावना डॉ. रोहिणी डाबरे ने दी। संचालन डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक रायपुर ने किया। आभार व्यक्त डॉ. परबीन बाला ने व्यक्त किया।