नीर का तीर : जनता जनार्दन आप ही जागते रहिए क्योंकि हमारी नगर सरकार के जिम्मेदार अभी भी सो रहे हैं...

एक और ‘नीर का तीर’ आपके अवलोकनार्थ। अच्छा लगे तो अच्छी, बुरा लगे तो बुरी लेकिन प्रतिक्रिया जरूर दीजिएगा, क्योंकि सेहत की बेहतरी और स्वाद के संतुलन के लिए सिर्फ मीठा ही नहीं, कड़वा, तीखा, कसैला, नमकीन और खट्टा (ये सभी 6 रस) भी जरूरी है।

नीर का तीर : जनता जनार्दन आप ही जागते रहिए क्योंकि हमारी नगर सरकार के जिम्मेदार अभी भी सो रहे हैं...
नीर का तीर

नीरज कुमार शुक्ला

लोकतंत्र में कहने को तो ‘लोक’ (जनता) सर्वोच्च (जनार्दन) है। यह बात दीगर है कि कई मामलों में ऐसा दिखाई नहीं देता। संसद से लेकर ग्राम पंचायत स्तर तक ऐसे तमाम उदाहरण हैं जहां जनप्रतिनिधियों की चिंता जनता की कम, निजी ज्यादा होती है। देशभर की जनता की फिक्र करने के लिए केंद्र सरकार है, राज्य स्तर पर राज्य सरकार और जिला एवं नगर स्तर पर क्रमशः जिला व नगर सरकार है। सभी की जिम्मेदारियां, जवाबदेहियां, गोपनीयता, यहां तक समय भी तय हैं लेकिन यह अनिवार्यता नहीं है कि उसका पालन हो ही। शायद यह अनिवार्यता इसलिए नहीं रखी गई क्योंकि जिम्मेदारियों और समय आदि का निर्धारण करने वालों को यह भ्रम था कि जो भी इस सिस्टम का हिस्सा बनेंगे, वे अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे ही। भ्रम तो भ्रम है और उसका टूटना उसकी नियति, इसलिए जनता के पास भी सिवाय अपनी नियति को कोसने के कोई और चारा नहीं है।

बातें तो देशभर की हो सकती हैं लेकिन अभी हम सिर्फ रतलाम और यहां की नगर सरकार की ही बात करेंगे। कल यानी गुरुवार (13 अप्रैल, 2023) को नगर सरकार का साधारण सम्मेलन था। इसे आहूत करने का निर्णय लेने वालों पर शहर की जनता (आ)भारी रहेगी। वैसे तो जनता हर 2 माह के अंतराल पर नगर सरकार का आभार व्यक्त करने के लिए तैयार रहती है लेकिन उसे इसका मौका ही नहीं मिलता या यों कहें की दिया नहीं जाता। नगर निगम एक्ट में नगर सरकार को हर दो माह के अंतराल पर समस्याओं के निराकरण सहित अन्य निर्णयों के लिए सम्मेलन आहूत कर जनता से यह आभार प्राप्त करने का अधिकार दिया है। परंतु हमारी अब तक की (मौजूदा भी) नगर सरकारें काफी मितव्ययी रही हैं, इसलिए दो माह (60 दिन) में सम्मेलन आहूत करने की व्यवस्था पर यकीन नहीं रखतीं। उनका बस चले तो पूरे पांच साल के कार्यकाल में सिर्फ एक बार (पांचवें साल के अंत में) जनता का आभार ज्ञापित करने के लिए सम्मेलन आयोजित कर सकती हैं।

जनता के धैर्य को साधुवाद

कल से पहले 17 नवंबर 2022 को नगर सरकार का सम्मेलन हुआ था। इस बीच में तकरीबन 146 दिन गुजर गए। अब इसकी वजह आप मितव्यता मान लें या फिर अपके द्वारा चुनकर भेजी गई नगर सरकार की आपके प्रति गैरजिम्मेदारी। हमें पता है कि जब कोरोना के कारण आप दो से ढाई साल तक तमाम सुविधाओं और असुविधाओं से समझौता कर सकते हैं तो फिर सम्मेलन आयोजित होने से आसान हो जाने वाली समस्याओं और सुविधाओं के लिए 5-7 माह का इंतजार करना आपके लिए बड़ी बात नहीं है। इस धैर्य और सहनशीलता के लिए आपको कोटिश साधुवाद।

फुर्र हो गई गोपनीयता की चिड़िया

सभी संवैधानिक और महत्वपूर्ण पदों पर काबिज होने से पहले पदभार की औपचारिकता के साथ ही पद और गोपनीयता की शपथ लेने का भी रिवाज है। यह शपथ कब टूटेगी यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन कुछ की शपथ टूटेगी ही, यह तय है। घर के किचन से लेकर केंद्र सरकार तक के बजट को लेकर गोपनीयता बरती जाती है ताकि विघ्नसंतोषी उसमें पहले से ही मीन-मेख न निकालने लगें और वह समय पर पेश न हो सके। किसी के लिए भी यह गोपनीयता महत्वपूर्ण हो सकती है लेकिन हमारी नगर सरकार ऐसी बाध्यताओं से परे है। आजाद भारत की नगर सरकार का आजाद रहने में ज्यादा भरोसा है। तभी तो लंच बाद नगर सरकार के मुखिया ने 'नगर को महानगर बनाने वाल' जो बजट प्रस्तुत किया उसमें दर्शाए गए आय-व्यय और नभे-नुकसान के आंकड़े तय समय 11.00 बजे से 20 मिनट की देरी से शुरू हुए सम्मेलन से पहले ही जाहिर हो चुके थे। 11.00 बजे से पहले ही पार्षदों, उनके परिजन (महिला पार्षदों के ससुर, पति व बेटे आदि), अधिकारियों-कर्मचारियों को सम्मेलन के एजेंडे के रूप में पता चल चुके थे। एजेंडे के बिंदु क्रमांक 3.5 में दर्शाए वही आंकड़े कुछ घंटे बाद प्रस्तुत बजट में भी देखने को मिल गए।

दीवारों से लिपट कर रोती रही गणितज्ञों की आत्मा

सम्मेलन के दौरान हम तो आश्चर्य चकित थे ही, हमारे महान गणितज्ञों की आत्मा भी नगर निगम की दीवारों से लिपट कर जरूर रोई होगी। हम सब ने कोई भी अंक लिखने के दौरान उसे समझने के लिए इकाई, दहाई, सैकड़ा, हजार, 10 हजार, लाख, 10 लाख, करोड़, 10 करोड़ व इससे आगे भी बहुत है, को पढ़ा और सीखा है। नगर सरकार के सम्मेलन का एजेंडा देख कर कतई इसका अहसास नहीं हुआ कि यह सब जरूरी है। इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखेंगे। यहां एक फोटो दे रहे हैं जिसे देख कर आपको यह बताना है उसमें अंकों में लिखे रुपए का मतलब क्या वही है जो पास में शब्दों में लिखा है। वैसे नगर सरकार के एक जिम्मेदार (जिनका नाम पिछले दिनों ‘गांधी’ छाप कागज के टुकड़ों के लेन-देन को लेकर चर्चा में रहा था) के अनुसार तो दोनों में कोई फर्क नहीं है।

(नगर सम्मेलन शुरू होने से पहले पार्षदों और अन्य को मिले एजेंडे का आखिरी पन्ना जिसमें दर्ज आंकड़े कई घंटे बाद प्रस्तुत गोपनीय बजट में भी देखने को मिले)

सेल्फी संतोषियों का फोटो प्रेम

मोबाइल फोन ने लगभग हर व्यक्ति को सेल्फिश, बोले तो दिनभर सेल्फी लेने वाला बना दिया है। ऐसे व्यक्ति के ईर्द-दिर्ग कुछ हो भी रहा हो तो उसकी बला से। ऐसे हाथों में शादी का एलबम आ जाए या बजट पुस्तिका, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। कई पार्षदों के हाथों में जब बजट की प्रति पहुंची तो उन्होंने बजट के आंकड़ों के बजाय फोटो वाले पन्नों पर ही दृष्टि गड़ाई। कोई दूसरों की फोटो की गुणवत्ता से अपने फोटो की गुणवत्ता का मिलान कर रहा था तो कोई यह सोच कर दुखी था कि मेर कपड़ों से इसके कपड़े उजले कैसे। 

डिस्क्लेमर

आपने इसे पढ़ा इसके लिए आपका आभार। अगर उचित लगे और संभव हो तो अपनी राय भी दे दीजिएगा। जरूरी नहीं है कि आपको यह अच्छा लगा हो तो ही प्रतिक्रिया दें, अगर खराब लगा है तो तब भी बताएं, क्योंकि गलतियों से ही हम सीखते हैं। बस एक आग्रह- यदि किसी ने किसी प्रकार का चश्मा लगाकर पढ़ा है तो अपनी प्रतिक्रिया जाहिर न करें, क्योंकि उससे निष्पक्ष लोगों को राय बनाने में असुविधा होगी। दरअसल जिन्हें सब अच्छा लगता है उन्हें यह अच्छा लगने के लिए और जिन्हें बुरा लगता है उन्हें बुरा लगने के लिए ही लिखा गया है।