क्या आप जानते हैं ? बुद्धिजीवी क्या है, कौन है, क्यों है? बुद्धिजीवी, प्रबुद्ध या विचारक वो शख्स है जो...

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बुद्धिजीवी, प्रबुद्ध या विचारक वो शख्स है जो अपनी बुद्धि के दम पर अपनी जीविका माने रोजी-रोटी (विद बटर) ताबड़तोड़ ढंग से हासिल करने में सक्षम हो।

क्या आप जानते हैं ? बुद्धिजीवी क्या है, कौन है, क्यों है? बुद्धिजीवी, प्रबुद्ध या विचारक वो शख्स है जो...
बुद्धिजीवी और प्रबुद्धजन का अर्थ।

बुद्धिजीवी और प्रबुद्ध वर्ग : सोशल मीडिया के जमाने में आज हर तरफ बुद्धिजीवी और प्रबुद्ध वर्ग की भरमार है। कहने को तो ये दोनों ही शब्द समान ही लगते हैं लेकिन उनके उपयोग के आधार पर इनमें थोड़ी भिन्नता भी नजर आती है। यह तो हिंदी की व्याकरण सम्मत बात है लेकिन मौजूदा दौर के बुद्धिजीवा और प्रबद्धजन की एक अलग प्रजाति है। यह अलग-अलग शहर में अलग-अलग वृत्ति और प्रवृत्ति के पाए जाते हैं। मौजूदा दौर के बुद्धिजीवी और प्रबुद्ध वर्ग की परिभाषा ढूंढने के दौरान हमारी नजरें नवभारत टाइम्स के एक ऑर्टिकल पर ठहर गईं। ऊपर से नीचे तक पढ़ा तो लगा कि जिसकी हमें तलाश थी, वह शायद यही है। अच्छी चीज अच्छे प्लेटफॉर्म पर मिली जिसे यहां ज्यों का त्यों उपयोग किया जा रहा है। आप भी पढ़िए और आनंद लीजिए...

डेफिनेशन : वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बुद्धिजीवी, प्रबुद्ध या विचारक वो शख्स है जो अपनी बुद्धि के दम पर अपनी जीविका माने रोजी-रोटी (विद बटर) ताबड़तोड़ ढंग से हासिल करने में सक्षम हो।

लक्षण

  • स्वान्त: सुखाय के लिए छपने वाले प्रकाशनों से लेकर सर्कुलेशन के सरताज अखबारों तक में रेगुलरली कलम तोड़ते नजर आते हैं।
  • पीएचडी हासिल कर ली हो या एनरोल होने की फिराक में हों।
  • कुछ स्वनामधन्य संस्थाओं से फेलोशिप हासिल कर रखी हो।
  • कम से कम 2-3 किताबें चेंप (लिख) चुके हों। वर्ना इंटरनैशनल लिटरेचर का अनुवाद जरूर किया हो।
  • संगोष्ठी और विचार मंच पर नियमित अटेंडेंस (सिर्फ अखबार में छपने वाले लेबल के कार्यक्रम ही)।
  • न्यूज चैनलों में खलिहरों की तरह मौजूदगी दर्ज कराएं, विषय के बारे में न जानते हुए भी बकबकाने का कॉन्फिडेंस जरूरी।
  • एकाध साहित्यिक चोरी के आरोप लगे हों, तो सोने पर सुहागा।

ऐसे बनें बुद्धिजीवी

धारा से उलटा बहें : प्रबुद्ध बनने के लिए सबसे जरूरी है, आम जनमानस की राय से बिलकुल उलट विचार रखें। हाल में हुई टुंडा की गिरफ्तारी को विचार मंच पर लोकतंत्र की हत्या करार देकर एक अच्छी शुरुआत कर सकते हैं। रेफरेंस बुक के तौर पर कुछ इंग्लिश लिट् शिरोमणियों के आर्टिकल कंसल्ट कर सकते हैं। हर घटना या मुद्दे को छद्म सेकुलर अथवा भगवा एंगल से देखने की प्रतिभा विकसित करें।

ब्लॉग लिखें, गालियां सुनें : शुरुआत में हो सकता है कि आपको वैचारिक उलटी करने के लिए प्लेटफॉर्म न मिले। अपना ब्लॉग बनाएं और बेझिझक लिखें। कॉमेंट सेटिंग को इस तरह रखें कि कोई भी साइबर राहगीर भूले बिसरे भी आपके पेज तक पहुंच गया हो, तो आपको गालियां बके बिना वहां से न जा पाए। जितनी गालियां, उतने ही आप सुपरहिट।

पारंपरिक मुद्दों से बनाएं दूरी : दूरदृष्टि अपनाएं। कश्मीरी पंडितों के विस्थापन या बुंदेलखंड के किसानों पर सोचने के लिए बहुत लोग हैं। कुछ अलग करें, लीबिया और इजिप्ट के बिगड़ते हालात पर बात करें। सीरिया में बशर अल असद की सरकार के गिरने, उठने पर राय जाहिर करें। सूडान, सोमालिया की गरीबी पर चर्चा करें, सोलोमन आइलैंड के भूकंप के बाद वहां बिगड़े हालात पर पैनी नजर रखें।

हटकर हो साहित्यिक टेस्ट : कोई आपकी साहित्यिक पसंद जानना चाहे तो भूलकर भी प्रेमचंद, परसाई, प्रसाद, पंत, बच्चन का नाम न लें। बाहर के विचारकों को भले न पढ़ें, लेकिन उनकी कुछ रचनाएं, कोट्स जरूर याद रखें। काफ्का के ट्रांसलेटेड पत्रों, मार्खेज की रचनाओं से शुरुआत कर सकते हैं। किसी साहित्यकार का नाम भले ही पहली बार सुना हो लेकिन कॉन्फिडेंस लूज न करें। अपने पड़ोसी के नाम में प्रोफेसर जोड़कर उसे कोट करें। यकीन मानिए, लोग पूछ लेंगे कि फलां कहां के विचारक हैं।

हुलिया और पहनावा : शेविंग, नहाने-धोने से परहेज रखें। सिर्फ दो जोड़ी कपड़ों का इस्तेमाल करें। थोड़ी गंदी हो तो और फबेगी। आधुनिक विचारक दिखना चाहते हों तो अवांछित ड्रेस कॉम्बिनेशन अपना सकते हैं। मसलन, लाल पैंट पर पीले जूते, साथ में हरी कैप, यदा कदा चप्पल में भी दफ्तर आ सकते हैं। चश्मा इस्तेमाल करते हों तो ध्यान रखें कि वो मोटे फ्रेम वाला जरूर हो।

किताबों के दोस्त दिखें : मोटी-मोटी किताबों के साथ दफ्तर में वॉक करने की आदत डालें। जेब अलाउ करे तो नई किताबें खरीद सकते हैं, नहीं करे तो लोगों से उधार मांग सकते हैं। नई किताबों के नाम रेगुलर बेसिस पर अपडेट करें। इसके लिए फ्लिपकार्ट पर बेस्ट सेलिंग सेगमेंट में जाकर किताब और उसके डिस्क्रिप्शन की जानकारी लें। बुक पढ़ें न पढ़ें, रिव्यू जरूर पढ़ें।

सिलेक्टिव अखबार और वेबसाइट बांचें : बाजार में टॉप पर काबिज अखबार और मैगजीन कतई पढ़ते न दिखें। हिंदी अखबार तो भूल कर नहीं। अति गंभीर, लीक से हटकर और सर्कुलेशन की दौड़ से बाहर के प्रकाशनों का रुख करें। हर बात में इंटरनैशनल वेबसाइट्स का हवाला दें। पाकिस्तान का मामला हो तो देसी न्यूज एजेंसियों के बजाए जियो न्यूज, एक्प्रेस ट्रिब्यून, डॉन को जरूर कोट करें।

सोशल नेटवर्क को बनाएं हथियार : नियमित तौर पर विवादित फेसबुक अपडेट और ट्वीट करने की आदत डालें। गूगल स्टेटस अपडेट में नॉर्मल बातें तो बिल्कुल न लिखें। वहां आप कुछ बड़े विदेशी साहित्यकारों की रचनाओं के बदतर से बदतर हिंदी अनुवादों को स्टेटस अपडेट बना सकते हैं। रचनाओं का क्रेडिट देना न भूलिएगा, वर्ना लोग जान ही न पाएंगे कि आप ऐसे महान लोगों को जानते हैं>

गैर पारंपरिक हॉबीज बताएं : अपना पसंदीदा खेल पारंपरिक क्रिकेट के बजाए सॉकर, बेसबॉल, रग्बी, रिदमिक जिम्नैस्टिक बताएं। भले ही भारत की आधी जनता फेसबुक और ट्विटर पर हो, लेकिन किसी के पूछने पर अपना पसंदीदा सोशल प्लेटफॉर्म कम प्रचलित गूगल प्लस को बताएं। गजल सुनते हों तो जगजीत के बजाए गुलाम अली या मेंहदी हसन की परंपरा का वाहक बनें। नॉनवेज भले कभी-कभार खाते हों, लेकिन बीफ फेस्टिवल की हिमायत करें।

(नवभारत टाइम्स से साभार)