कालजयी रचनाकारों ने रचनात्मक लोकतंत्र को मज़बूत किया, जनवादी लेखक संघ ने गीतकार शैलेंद्र और व्यंग्यकार परसाई को याद किया
जनवादी लेखक संघ द्वारा काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें गीतकार शैलेंद्र और व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का स्मरण किया गया।
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । जनतांत्रिक मूल्यों के पक्षधर एवं फिल्मी गीतकार शैलेंद्र ने अपने गीतों में लोकतांत्रिक पक्ष को स्थापित किया। उनके गीत आज भी उनके जीवन के दर्द और आम आदमी की पीड़ाओं को व्यक्त करते हैं। आज यदि शैलेन्द्र होते तो पूरे सौ बरस के होते। उन्हें सिर्फ़ तिरालीस साल जीने का मौका मिला लेकिन उनके गीत सदियों तक ज़िंदा रहेंगे।
उक्त विचार शैलेंद्र जन्म शताब्दी वर्ष के तहत जनवादी लेखक संघ रतलाम द्वारा आयोजित काव्य गोष्ठी में महान गीतकार शैलेन्द्र को याद करते हुए व्यक्त किए गए। सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का भी इस अवसर पर स्मरण किया गया। वरिष्ठ गीतकार हरिशंकर भटनागर की अध्यक्षता और डॉ. गीता दुबे के मुख्य आतिथ्य में आयोजित काव्य गोष्ठी की शुरुआत शैलेंद्र के गीतों पर चर्चा के साथ हुई। काव्य गोष्ठी में कीर्ति शर्मा ने शैलेंद्र का सुप्रसिद्ध गीत 'तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी की जीत में यकीन कर' की सस्वर प्रस्तुति दी।
इन्होंने दी प्रभावी प्रस्तुति
रचनाकारों ने समकालीन संदर्भ में अपनी कविताएं प्रस्तुत की। बेबी इफ़रा और गुलफिशां की प्रस्तुति को उपस्थितजन ने सराहा। वरिष्ठ कवि प्रो. रतन चौहान, श्याम माहेश्वरी, हरिशंकर भटनागर, डॉ. गीता दुबे, युसूफ जावेदी, डॉ. एन. के. शाह, सिद्दीक़ रतलामी, मुस्तफा आरिफ़, मुकेश सोनी 'सार्थक', रामचंद्र अंबर, सुभाष यादव, दिनेश उपाध्याय, कांतिलाल मेहता, पद्माकर पागे, श्याम सुंदर भाटी, मणिलाल पोरवाल, ओमप्रकाश अग्रवाल, प्रकाश हेमावत, कीर्ति शर्मा, जवेरीलाल गोयल, अरुण जोशी, मांगीलाल नगावत ने अपनी रचनाओं के माध्यम से वर्तमान हालातों का ज़िक्र किया। संचालन आशीष दशोत्तर ने किया। आभार सचिव सिद्दीक़ रतलामी ने व्यक्त किया। इस अवसर पर साहित्य प्रेमी मौजूद थे।