लघु वनोपज संग्रहण व इनसे उत्पाद तैयार कर सृजित कर सकते हैं रोजगार, वन विभाग में वानिकी के छात्रों के लिए आरक्षित हों पद- डॉ. राजेश्वरराव
विक्रम विश्विद्यालय उज्जैन द्वारा वानिकी : शिक्षा, संभावनाएँ एवं चुनौतियाँ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें वानिकी विषय के छात्रों के रोजगार सहित अन्य मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया।

एसीएन टाइम्स @ उज्जैन । लघु वनोपज का संग्रहण एवं उनके द्वारा महत्वपूर्ण उत्पाद को तैयार कर रोजगार का सृजन किया जा सकता है। वानिकी विषय का अध्ययन करने वाले छात्रों को वन विभाग में नियुक्ति हेतु कुछ पद सरकार को आरक्षित करना चाहिए। इससे वन एवं जैवविविधिता के संरक्षण हेतु कुशल मानव संसाधन उपलब्ध होंगे।
यह कहना है ऊष्णकटिबन्धीय वन अनुसंधान संस्थान, जबलपुर के निदेशक डॉ. जी. राजेश्वरराव का। डॉ. राव वानिकी : शिक्षा, संभावनाएँ एवं चुनौतियाँ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि की आसंदी से बोल रहे थे। उन्होंने देश में उपस्थित विभिन्न वन अनुसंधान संस्थान का उल्लेख करते हुए भारत में पाए जाने वाले वनों के प्रकार एवं उनेक संरक्षण पर प्रकाश डाला।
संगोष्ठी का आयोजन विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के जीवविज्ञान संकाय द्वारा किया गया था। इसमें विभिन्न संस्थानों के लगभग 500 विद्यार्थियों, शिक्षकों एवं वैज्ञानिकों द्वारा सहभागिता की। कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रों को वानिकी शिक्षा और अनुसंधान के महत्व से अवगत कराते हुए, वन संसाधन की उपयोगिता, रोजगार की संभावनाओं तथा सामने आने वाली चुनौतियाँ के समाधान के लिए जागृत करना एवं भविष्य के लिए वन संसाधन एवं संरक्षण हेतु वैज्ञानिक विधियों की विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराना रहा। विशिष्ट अतिथि कुलसचिव डॉ. प्रशांत पुराणिक एवं फ्रीप्रेस इन्दौर के जनरल मैनेजर अनिल विश्वकर्मा थे। मीडिया पार्टनर फ्रीप्रेस के वरिष्ठ पत्रकार मनोहर लिम्बोदिया एवं निरुक्त भार्गव फ्रीप्रेस उज्जैन उपस्थित थे।
कृषि क्षेत्र में 60 प्रतिशत रोजगार उपलब्ध, इसका जीडीपी का 14 फीसदी योगदान
राष्ट्रीय संगोष्ठी के विशिष्ट वक्ता मेडिकैप्स विश्वविद्यालय इन्दौर के डीन प्रो. एस. डी. उपाध्याय थे। उन्होंने वानिकी शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डाला। प्रो. उपाध्याय ने कहा कृषि भारत की रीढ़ के समान है। कृषि प्रधान होने के कारण कोविड-19 संकटकाल समय में भारतीय अर्थव्यवस्था अन्य देशों की तुलना में कम प्रभावित हुई थी। भारत में कृषि क्षेत्र में 60 प्रतिशत रोजगार उपलब्ध है। यह क्षेत्र देश के जीडीपी में 14 प्रतिशत का योगदान देता है। भारत में अनाज, फल एवं सब्जी के उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है। यदि पिछले कृषि इतिहास को देखे तो हरित क्रान्ति, सफेद क्रांति, गोल्डन क्रान्ति, पीली क्रांति सिल्वर एवं नीली क्रान्ति अधिक से अधिक भोज्य पदार्थों के उत्पादन हेतु समय-समय पर होती रही है। उनके द्वारा विभिन्न प्रकार के भेाज्य पदार्थों के उत्पादन में वृद्धि भी दिखाई पड़ रही है।
डॉ. उपाध्याय ने स्पष्ट किया कि देश में अगली क्रान्ति मालवा क्षेत्र से जैवीय खेती के लिए हो सकती है। आपने विद्यार्थियों को बताया कि कृषि क्षेत्र में रोजगार की अपार संम्भावनाएँ है। विद्यार्थियों को कृषि क्षेत्र, कृषि आधारित औद्योगिकी इकाइयों, अनुसंधान प्रयोगशालाओं आदि में रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त स्वयं की औद्योगिक इकाई स्थापित कर दूसरों को रोजगार उपलब्ध कराने में सहायक हो सकते हैं।
तीसरी मुख्य वक्ता उज्जैन संभाग की मुख्य वन संरक्षक उज्जैन संभाग कामलिका मोहन्ते (आईएफएस) ने वन विभाग में विद्यार्थियों हेतु उपलब्ध रोजगार के अवसरों की जानकारी दी। वन विभाग के द्वारा संचालित सामाजिक वानिकी, वाइल्ड लाइफ, बंवो मिशन एवं जैव विविधिता संरक्षण आदि विषय पर जानकारी प्रदान की। आपने जैव विविधिता एवं लघुवनोपज द्वारा रोजगार की संम्भावनाओं पर विस्तृत व्याख्यान दिया।
कृषि में मालवा की मुख्य भूमिका, छात्रों को नई तकनीक बता कर बढ़ा सकते हैं उत्पादन
अध्यक्षीय उद्बोधन विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पाण्डेय ने दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि हमारा देश कृषि प्रधान देश है। इसमें मालवा क्षेत्र की मुख्य भूमिका है। वैज्ञानिक विधियों द्वारा कृषि क्षेत्र में लगातार परिवर्तन हो रहे हैं। आज हमारे किसान भाइयों को कृषि क्षेत्र में प्रयोग किए जाने वाले विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की विधियों से अवगत कराया जाना जरूरी है। हमारे छात्र-छात्राएँ किसानों को नई-नई तकनीकों की जानकारी प्रदान कर उन्हें लगातार उन्नत खेती की ओर अग्रसर करते हुए अधिक उत्पादन प्राप्त कराया जा सकता है।
प्रो. पाण्डेय ने बताया कि हमारे जंगलों में कई प्रकार के औषधीय गुण वाले पौधे उपलब्ध हैं। उनका व्यावसायिक उपयोग करते हुए रोजगार का सृजन किया जा सकता है। आपने स्पष्ट किया कि वनों में मशरुम की कई प्रजातियों पाई जाती है। जिनके द्वारा औषधियों का निर्माण किया जाता है। मशरूम के द्वारा फर्नीचर, ईंट, लेदर, आदि का उत्पादन किया जा रहा है। आपने विद्यार्थियों को वन सम्पदा एवं जैवविविधिता के संरक्षण हेतु जनजागृति अभियान चलाने हेतु प्रेरित किया।
मेडिकैप और विक्रम विश्विद्यालयों के बीच हुआ एमओयू
इस अवसर पर मेडिकैप विश्वविद्यालय इन्दौर एवं विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के मध्य द्विपक्षीय समझौता ( एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए। वन एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है, जो हमें प्रकृति के द्वारा प्रदान किया जाने वाला उपहार है। वन से हमें भोजन, लकड़ी, सांस लेने के लिए आक्सीजन, औषधियाँ एवं अन्य उपयोगी चीजें प्राप्त होती हैं। वन पृथ्वी की पारिस्थितिकी सन्तुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है। वही विभिन्न जन्तुओं के लिए आवास स्थल है। पृथ्वी में वन कुल भूमि का 31 प्रतिशत भाग को कवर करते है। भारत में कुल भूमि का 24.67 प्रतिशत वन क्षेत्र है। अतः स्पष्ट हैं कि वन बिना हम अपने जीवन और क्रिया कलापों की कल्पना भी नही कर सकते हैं। वनों के द्वारा रोजगार के अवसर निर्मित होते है। तथा देश की आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति पर वनों का योगदान प्रमुख है। ऐसे तमाम पहलुओं पर चर्चा के लिए यह संगोष्ठी उपलब्धिपूर्ण सिद्ध हुई।
स्वागत भाषण समन्वयक प्रो. डी. एम. कुमावत द्वारा तथा अतिथि परिचय सह समन्वयक प्रो. अलका व्यास एवं डॉ. सलिल सिंह ने दिया। सह समन्वयक विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं कला संकायाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा, सचिव डॉ. राजेश टेलर (विभागाध्यक्ष- कृषि विज्ञान अध्ययनशाला) एवं डॉ. सलिल सिंह (विभागाध्यक्ष- प्राणिकी एवं जैवप्रौद्योगिकी अध्यययनशाला) थे। राष्ट्रीय संगोष्ठी के सह आयोजक सचिव डॉ. अरविन्द शुक्ल एवं डॉ. शिवी भसीन थीं। प्रो. एच. पी. सिंह, प्रो. प्रेमलता चुटेल, डॉ. सुधीर कुमार जैन, डॉ. प्रीति दास, डॉ. चित्रलेखा कडेल, डॉ. निहालसिंह, डॉ.जगदीश शर्मा, डॉ. पराग दलाल, डॉ. मुकेश वाणी, डॉ. सन्तोष ठाकुर, डॉ. गरिमा शर्मा, डॉ. मकवाना, डॉ. पूर्णिमा त्रिपाठी, जीव विज्ञान संकाय एवं कृषि विज्ञान संकाय के विद्यार्थी एवं कर्मचारी उपस्थित थे। संचालन करते हुए रूपरेखा प्रस्तुति प्रो. शर्मा ने दी। आभार डॉ. टेलर ने माना।