राजस्थान पत्रिका को झटका ! पत्रकार विजय शर्मा को मजीठिया वेतन माँगने पर बर्खास्त करना पड़ा महंगा, हाईकोर्ट ने दिया सेवा बहाली और पूर्ण लाभ देने का आदेश

भोपाल के पत्रकार को मजीठिया वेतनमान का लाभ नहीं देने और सेवा से बर्खास्त करने के मामले में राजस्थान पत्रिका प्रबंधन को मप्र हाईकोर्ट जबलपुर से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने पत्रकार को सभी लाभ देने और सेवा निरंतर रखने के निर्देश दिए हैं।

राजस्थान पत्रिका को झटका ! पत्रकार विजय शर्मा को मजीठिया वेतन माँगने पर बर्खास्त करना पड़ा महंगा, हाईकोर्ट ने दिया सेवा बहाली और पूर्ण लाभ देने का आदेश
पत्रिका को हाईकोर्ट का झटका।

एसीएन टाइम्स @ भोपाल । राजस्थान पत्रिका प्राइवेट लिमिटेड द्वारा मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशें लागू करने की मांग करने वाले पत्रकार विजय कुमार शर्मा को नौकरी से निकालना प्रबंधन को भारी पड़ गया है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर खंडपीठ ने इस बर्खास्तगी को गैरकानूनी करार देते हुए पत्रकार की सेवा बहाल करने, बकाया वेतन चुकाने और सभी सेवा लाभों सहित पुनर्नियुक्ति का आदेश सुनाया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि पत्रिका प्रबंधन ने जिस सोशल मीडिया पोस्ट को आधार बनाकर अनुशासनात्मक कार्रवाई की, उसके समर्थन में कोई सबूत प्रस्तुत नहीं किया गया।

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पत्रकार विजय शर्मा को पत्रिका प्रबंधन द्वारा लेबर कोर्ट से पूर्व स्वीकृति लिए बिना बर्खास्त किया गया था। यह औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 33(2)(इ) का स्पष्ट उल्लंघन है। कोर्ट ने इस बिंदु पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि जब तक लेबर कोर्ट से मंजूरी न मिले, तब तक बर्खास्तगी आदेश अधूरा और कानूनी रूप से अमान्य माना जाएगा। यही नहीं, कोर्ट ने यह भी माना कि प्रबंधन ने यह कार्रवाई मजीठिया वेतनमान की मांग उठाने के बाद प्रतिशोधवश की, जिससे कर्मचारी के मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन हुआ।

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मजीठिया का लाभ मांगने पर करते रहे तबादले, सेवा भी समाप्त कर दी

दरअसल, विजय कुमार शर्मा वर्ष 2002 से पत्रिका में कार्यरत थे और 2011 में उन्हें सब-एडिटर पद पर पदोन्नत किया गया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2014 में मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशें लागू करने का निर्देश दिए जाने के बाद उन्होंने और उनके साथियों ने इसके पालन की मांग की। इसी के बाद उनका स्थानांतरण पहले बेंगलुरु, फिर भोपाल और फिर जगदलपुर कर दिया गया। इसका शर्मा ने विरोध करते हुए लेबर कोर्ट में मामला दायर कर दिया। प्रबंधन ने इसी अवधि में सोशल मीडिया पर कथित पोस्ट के बहाने चार्जशीट जारी की और जून 2016 में सेवा समाप्ति का आदेश जारी कर दिया। जांच में न तो वह पोस्ट प्रस्तुत की गई, न ही कोई तकनीकी प्रमाण, और न ही कर्मचारी को अपना पक्ष रखने का पर्याप्त अवसर मिला। इसके बावजूद उन्हें दोषी ठहराकर निकाल दिया गया।

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हाईकोर्ट ने यह दिया तर्क

हाईकोर्ट ने पाया कि लेबर कोर्ट ने सेवा समाप्ति की अनुमति नहीं दी थी। इसके बावजूद कर्मचारी को हटा दिया गया। कोर्ट ने अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट के “जयपुर ज़िला सहकारी भूमि विकास बैंक बनाम रामगोपाल शर्मा” मामले का हवाला दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि जब स्वीकृति नहीं दी गई हो, तो बर्खास्तगी स्वयमेव शून्य मानी जाती है और कर्मचारी को सेवा में माना जाता है। कोर्ट ने विजय कुमार शर्मा की सेवा तत्काल प्रभाव से बहाल करने, उन्हें बकाया वेतन, सेवा निरंतरता और सहित अन्य सभी लाभ देने के आदेश पत्रिका प्रबंधन को दिए हैं। हाईकोर्ट ने प्रबंधन की याचिका को ही पूरी तरह खारिज कर दिया है। बताते चलें कि उक्त मामले में अंतिम सुनवाई करीब नौ माहीने पहले ही पूरी हो चुकी थी और तभी से आदेश सुरक्षित रखा गया था जो अब जारी हुआ है।

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पत्रकारों और संगठनों ने माना बड़ी जीत

जबलपुर हाईकोर्ट के इस निर्णय को देशभर के पत्रकार संगठनों ने श्रमिक अधिकारों की बड़ी जीत बताया है। पत्रकार संगठनों ने मांग की है कि अब सरकारें यह सुनिश्चित करें कि मीडिया संस्थानों में मजीठिया वेतनमान की सिफारिशों को बिना देरी के लागू किया जाए और पत्रकारों को कानूनी सुरक्षा भी प्रदान की जाए।

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