पुस्तक समीक्षा : 'रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद (जीवन और दर्शन)' पुस्तक की समीक्षा श्रद्धा के भाव को तराजू पर तौलने के समान
युवा लेखिका की पहली पुस्तक 'रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद (जीवन और दर्शन)' प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी मप्र द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में 'रामकृष्ण परमहंस' और 'स्वामी विवेकानंद' के जीवन से जुड़े किन पहलुओं को छुआ गया है और वे क्या सीख देते हैं, यह बता रहे हैं रंगकर्मी नवनीत मेहता।
नवनीत मेहता
लेखिका 'श्वेता नागर' की प्रथम प्रकाशित पुस्तक 'रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद (जीवन और दर्शन)' जिसका प्रकाशन साहित्य अकादमी, म.प्र.के सहयोग से हुआ है। इस पुस्तक की समीक्षा करना यानी श्रद्धा के भाव को तराजू पर तौलने के समान है जो कि संभव नहीं है। श्रद्धा भाव 'समीक्षा' का विषय नहीं हो सकता है वह केवल 'अनुभूति' है जहाँ मस्तिष्क को तर्कों और हृदय को द्वंद भाव से मुक्त करना ही इसका मूल भाव है और यह पुस्तक भी श्रद्धा भाव का पर्याय है। लेखिका श्वेता नागर ने इस पुस्तक के संदर्भ में लिखे अपने मनोगत यानी मन के भावों को इस तरह व्यक्त किया है -
'प्रस्तुत कृति के लेखन के मूल में रामकृष्ण देव और स्वामी विवेकानंद के प्रति श्रद्धा भाव ही प्रमुख रहा है इसलिए इसमें जो कुछ भी मैंने अभिव्यक्त किया है वह तर्क की तुला पर तौल कर नहीं अपितु श्रद्धा की शिला पर अंकन है।'
इस पुस्तक को श्रद्धा भाव से पढ़ा जाए तो पाठक को वैसा ही अनुभव होगा जैसे कि स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस से वह साक्षात संवाद कर रहा है। चूँकि मैं रंगकर्म से जुड़ा रहा हूँ इसलिए मुझे इस पुस्तक के रामकृष्ण परमहंस वाले अध्याय ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे उनके (रामकृष्ण परमहंस) जीवन और दर्शन का मंचन हो रहा है। उल्लेखनीय है कि रामकृष्ण परमहंस और माँ शारदा देवी से जुड़े एक प्रसंग में शिव का अभिनय करते हुए रामकृष्ण देव भाव विभोर होकर स्वयं समाधि की अवस्था में आ गये थे और मंच पर अभिनीत इस दृश्य को देखकर माँ शारदा देवी जो कि उस समय एक छोटी बालिका थी दिव्य अनुभूति हुई। इस प्रसंग की लेखिका श्वेता नागर ने अपनी पुस्तक में जीवंत प्रस्तुती दी है।
इस पुस्तक का परिशिष्ट 1 जो कि रामकृष्ण परमहंस के प्रेरक प्रसंगों से जुड़ा है वास्तव में उल्लेखनीय और संग्रहणीय है। इसमें रामकृष्ण परमहंस और उनके शिष्यों के बीच जो संवाद है उसमें नैतिक शिक्षा की अनुगूंज तो है ही आध्यात्मिक मूल्यों की स्थापना का संदेश भी है।
पुस्तक के परिशिष्ट 2 में रामकृष्ण परमहंस की सूक्तियाँ है जो गागर में सागर की तरह है।
इस पुस्तक में स्वामी विवेकानंद और उनके चिंतन को सरल शब्दों के साथ ही छोटे-छोटे अध्यायों में विभाजित करके समझाने का प्रयास किया गया है जैसे इसका अध्याय 'श्रीमद भगवद् गीता का कर्म और स्वामी विवेकानंद' इसमें स्वामी विवेकानंद ने जो युवाओं को कर्म करने का संदेश दिया है उस संदेश की यह सारगर्भित प्रस्तुती है।
सारांश यह है कि यह पुस्तक रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के जीवन और दर्शन पर पढ़ने वाले पाठकों की प्यास बुझाती है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि आकार में छोटी इस पुस्तक में विराटता का समुद्र समाया हुआ है।
इस विषय पर युवा लेखिका श्वेता नागर ने लिखकर युवा पीढ़ी के लिए आदर्श प्रस्तुत किया है। अतः लेखिका के इस श्रम-साध्य प्रयास को देखते हुए मुझे यह पंक्तियाँ याद आती है -
"नारी तुम केवल श्रद्धा हो
विश्वास रजत नग पग तल में
पीयूष स्त्रोत्र सी बहा करो
जीवन के सुंदर समतल में"
कवि जयशंकर प्रसाद की पंक्तियाँ श्वेता नागर की लेखनी को शीर्ष पर पहुंचने में सहायक होगी।
(नवनीत मेहता)
रंगकर्मी एवं सेवानिवृत बैंक अधिकारी,
रतलाम (मप्र)