प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर विशेष : क्यों अख़बार हुए सफल? जबकि ढेर लगी हैं चैनलों की...- डॉ. सुनीता श्रीवास्तव
प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर शुभ संकल्प समूह की प्रधान संपादक डॉ. सुनीता श्रीवास्तव का यह आलेख आपके अवलोकनार्थ।
डॉ. सुनीता श्रीवास्तव
आज बेटे का जन्मदिन हैं। सुबह-सुबह उसे अख़बार पढ़ते देख, याद आया की आज तो 3 मई है! यानी विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस। उसके हाथों में अखबार देख मन ही मन मैं सोचने लगी- "हम 21वीं शताब्दी में जी रहे हैं, हमारे पास मोबाइल, टीवी जैसे कई आधुनिक यंत्र हैं। फिर भी आज के आधुनिक युवा या फिर ओल्ड फैशन बुजुर्ग, यह सभी अखबार पढ़ना क्यों पसंद करते हैं? जबकि ढेर लगी हुई हैं न्यूज चैनलों की!"
यह तो सच है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने वर्तमान परिपेक्ष्य में काफी प्रभाव डाला हैं, किंतु आज के समय में भी अखबारों द्वारा अच्छा व्यापार चलाया जा रहा है। यदि इतिहास पर गौर करें तो अखबारों का सिलसिला सिर्फ 16वीं शताब्दी के अंत में यूरोप में शुरू हुआ था और वहीं 18वीं शताब्दी में भारत में "बंगाल गैजेट" के आते इस लघु महाद्वीप पर समाचार पत्रों के सिलसिले का शुभारंभ हुआ। इसी के बाद संपूर्ण विश्व से, 20वीं शताब्दी के आते ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का परिचय हुआ जो कि काफी सफल हुआ पर शायद समाचार पत्रों जितना नहीं।
पर मुद्दे पर आते हैं कि क्यों अखबार ज्यादा सफल हुए? खासकर हिंदी अखबार?
इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे अखबार हमें विभिन्न पहलुओं के संबंध में जानकारी प्रदान करते हैं। अखबारों की खासियत यह है कि इसे हम शांति से पढ़ सकते हैं, बिना बहस के। अखबारों की एक अच्छी बात है, कि इसमें डिबेट के तौर पर संवाद (डायलॉग) तो डाला जा सकता है, पर कभी चैनलों की तरह मिर्च मसाले जैसी भड़काऊ बहस नहीं, जोकि अखबारों की एक खासियत के साथ-साथ खामी भी कही जा सकती है। आज-कल कई वर्गों को बहस या तमाशा देखकर आनंद मिलता है, वही किसी को शांत माहौल भाता है।
दरअसल, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का उपयोग सभी वर्ग के लोग ठीक से नहीं कर पाते। उसी के विपरीत एक समाचार-पत्र को कोई भी आराम से बेहद ही कम दाम में खरीद कर पढ़ सकता है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को उपयोग करने हेतु हमें या तो किसी मोबाइल फोन या फिर कोई टीवी, लैपटॉप नहीं तो टैबलेट या आईपैड की अवश्यता होती हैं, जोकि बेहद खर्चीले होते हैं। अधिकतम बुजुर्ग वर्ग इन उपकरणों को इस्तेमाल करने में असक्षम पाए जाते हैं। इसके कारण अखबारों का प्रयोग बरकरार है।
हम किसी भी समाचार-पत्र को देख लें, हम उसमें साहित्य, कला, सिटी, क्राइम, राजनैतिक, पुरस्कार, खेल, शिक्षा, कहानी इंफ्रास्ट्रक्चर इत्यादि… जैसे अनेक विषयों के बारे में पढ़ सकते हैं। लेकिन चैनलों पर सिर्फ प्राइम टाइम शो, डिबेट्स, इंटरव्यू या फिर बुलेटिन ही चलती रहती है। इससे न्यूज चैनलों के कंटेंट की विविधता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। किंतु चैनल तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का सिर्फ एक अंग है, पर यदि संपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की बात करें तो फिर यह बात थोड़ी फीकी पड़ जाती है।
एक और बात टीवी, मोबाइल… जैसे आधुनिक गैजेट्स पर समाचार पढ़ते या देखते वक्त उपकरण में से निकलती हुई खतरनाक रेडियो वेव्स हमारे स्वास्थ्य (नेत्र स्वास्थ्य) पर बुरा प्रभाव डालती हैं, अखबारों में यह संभव नहीं हैं। इसके कारण अधिकतम अभिभावक अपने शिशु को समाचार से अवगत करने के लिए अखबार पढ़ने की सिफारिश करते हैं। इनकी एक और खासियत है कि यह सभी वर्गों और क्षेत्रों से संबंधित विषयों की जानकारी देते हैं, यानी ज्यादा पाठकों का आकर्षण।
यदि संक्षेप में बताएं तो अखबारों का जीवन्त रहना उनकी विविधता, साहित्यिक मूल्य और समर्थनीयता के कारण हो सकता है। इनका बेहद सस्ता होना और विस्तृत विषय सूची ने उन्हें आज भी लोकप्रिय बनाए रखा है। इसके अलावा, अखबारों का अवलोकन और अध्ययन व्यापार, शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में व्यक्तिगत और व्यावसायिक उपयोग के लिए महत्वपूर्ण है।
डॉ. सुनीता श्रीवास्तव
इंदौर, मध्य प्रदेश
sunita.shrivastava0309@gmail.com
9826887380
(लेखिका ‘शुभ संकल्प समूह’ की प्रधान संपादक, संस्थापक एवं निर्देशिका होकर साहित्यकार भी हैं।)
डिस्क्लेमर
ये विचार लेखिका के अपने हैं, जरूरी नहीं कि उनके द्वारा बताए गए प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के भेद से एसीएन टाइम्स सहमत हो।