स्त्री एक तारा है : डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला

प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला की स्त्री को रेखांकित एक कविता महिला दिवस के खास मौके पर। आप भी पढ़ें और दूसरों को भी पढ़ाएं।

स्त्री एक तारा है : डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला

स्त्री एक तारा है
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स्त्री केन्द्र में है हमारे,
उसके आस पास ही बुनती है दुनिया ,
उसके भीतर से उमड़ता हुआ आता है
जीवन का युद्ध,
युद्ध का प्रयाणगीत,
गीत के सब छंद।
पूरा इतिहास बहता हुआ आता है
आदमी का, आदमी के मन का।

स्त्री भी मिट्टी की ही बनी हुई है,
उसके भीतर आकाश कुछ बड़ा होता है,
उसके भीतर बैठी हुई सनातन अग्नि को
कुछ ऋषियों ने छू कर देखा,
कुछ प्रदक्षिणा कर लौट आये,
कुछ छूते ही जल मरे
और कुछ ने सोने की डिब्बी में भर कर
उसे सितारा बन जाने दिया,
बहुत सारे तो वे थे
जो मिट्टी से खेलते रहे
और एक दिन मिट्टी में बदल गये।

नदी से लौट कर आती हुई
स्त्री को देखिए कभी,
माथे पर पानी का घड़ा धरे हुए
या उसे छोटे शिशु की तरह
बगल से चिपकाये,
वह नदी की कलशयात्रा के
रथ की तरह लगती है,
या माता का चलता हुआ मंदिर
जिसके चरण पड़ने से
धरती जी उठती है।

स्त्री कभी-कभी पानी बन जाती है,
कभी-कभी संजीवनियों का बादल बन कर
बरस जाती है पहाड़ों पर,
कभी नाच उठती है उमंग में
पंख फैलाये हुए मयूर की तरह
और कभी सिंहिनी की तरह गरजती हुई
धरती को कँप कँपा देती है।

कभी देखना, समुद्र है क्या ?
नदियों का बड़ा मेला।
वे लौट जाएँ मर्यादा छोड़ कर पीछे
फिर समुद्र को देखने के लिये
चाँद कभी नहीं उतरेगा धरती पर।
स्त्री को देखो, जैसे समुद्र को देखते हो।
स्त्री को देखो, जैसे आकाश को देखते हो।
स्त्री को इस तरह मत देखो
कि वह हल जोत रही है
और आप आकाश में तारे गिन रहे हैं।

स्त्री एक तारा है,
जो उतरता है धरती के आकाश में।

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डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला
साहित्यकार