पुस्तक समीक्षा : व्यापक दृष्टिकोण का प्रतिबिंब है 'बातें मेरे हिस्से की'- प्रो. रतन चौहान

युवा कवि, साहित्यकार और काथाकार आशीष दशोत्तर की पुस्तक 'बातें मेरे हिस्से की' पर प्रकाश डालती साहित्यकार एवं कवि प्रो. रतन चौहान की यह समक्षा एक बार जरूर पढ़ें।

पुस्तक समीक्षा : व्यापक दृष्टिकोण का प्रतिबिंब है 'बातें मेरे हिस्से की'- प्रो. रतन चौहान
पुस्तक समीक्षा।

प्रो. रतन चौहान

कवि, कथाकार आशीष दशोत्तर साहित्य की नित नई मंज़िलें तय कर रहे हैं। वे एक बहुआयामी रचनाकार हैं। उनका रचनाकर्म और दृष्टिकोण अत्यंत व्यापक है। साक्षात्कार की अपनी नई पुस्तक 'बातें मेरे हिस्से की' में उनके इसी व्यापक दृष्टिकोण का प्रतिबिंब मिलता है।

आशीष कवि, कथाकार तो हैं ही, वे एक सजग पत्रकार भी हैं। अपनी पुस्तक में उन्होंने उनके द्वारा लिए गए समकालीन हिंदी कविता के दिग्गज रचनाकारों, समीक्षकों, फिल्मकारों और समय की नब्ज़ पहचानती शख़्सियतों से संवाद किया है। सुप्रसिद्ध कवि विष्णु खरे, चंद्रकांत देवताले, भगवत रावत, देवव्रत जोशी का इस पुस्तक में न केवल एक अंतरंग चित्र मिलता है अपितु बलराम गुमास्ता और विजय वाते जैसे समृद्ध रचनाकारों के रचनाकर्म में समय की पदचाप किस तरह सुनाई देती है, यह भी झलक मिलती है।

पुस्तक राष्ट्रीय ख्याति के चित्रकार कलागुरु विष्णु चिंचालकर के संवाद से प्रारंभ होकर चित्रकला में नए आयाम उद्घाटित करने वाले चित्रकार महावीर वर्मा के सटीक चित्रण के साथ नई उम्मीदें जगाते हुए ख़त्म होती है। ऐतिहासिक वृतांतों को साहित्य के फलक़ पर ख़ूबसूरती से उद्घाटित करने वाले उपन्यासकार डॉ. शरद पगारे और समीक्षा, काव्य और भाषा के सभी पक्षों पर साधिकार बात करने और लिखने वाले यशस्वी साहित्यकार एवं भाषाविद डॉ. जयकुमार 'जलज' के साहित्य अनुराग पर भी यह पुस्तक रोशनी डालती है। अपनी कलम की ताक़त से समाज के दोषों को अनावृत्त करने वाले, भारतीय सभ्यता और संस्कृति के यथार्थ पक्षधर रहे जनसत्ता के तत्कालीन संपादक प्रभाष जोशी का भी यह पुस्तक प्रभावी चित्र खींचती है।

आशीष दशोत्तर न केवल साहित्य एवं संस्कृतिकर्मियों तथा चित्रकारों का एक परिष्कृत एवं निर्भीक पत्रकार के रूप में साक्षात्कार लेते हैं अपितु राष्ट्रीय ख्याति के फिल्मकार रामानंद सागर से भी अंतरंग बातचीत करते हैं। दिग्गज समीक्षक डॉ. मुरली मनोहर प्रसाद सिंह से भी आत्मीय बातचीत करते हैं। वे दृश्य माध्यम के नवीन एवं प्रतिबद्ध पक्षों को उद्घाटित करते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता मांगीलाल यादव का साक्षात्कार भी इस पुस्तक में साहित्य के महत्वपूर्ण युग की बानगी प्रस्तुत करता है। साहित्य, कला, संस्कृति अधूरी है, यदि वह मनुष्यता एवं सामाजिक निष्ठा के मूल्यों से रहित है।

'बातें मेरे हिस्से की' इस दृष्टि से मनुष्यता की पक्षधर तथा बहुत कम स्थान में बहुत कुछ कहती पुस्तक प्रतीत होती है। इस पुस्तक में समाहित साक्षात्कार सिर्फ़ साक्षात्कार नहीं वरन आत्मीय संवाद और संस्मरण भी हैं, जो साहित्य की समृद्ध विरासत को सहेजने की आकांक्षा रखते वर्तमान के लिए महत्वपूर्ण है। इस पुस्तक की आमद इस समय ज़रूरी भी थी। सचमुच आशीष दशोत्तर बधाई के पात्र हैं।

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पुस्तक

'बातें मेरे हिस्से की'

लेखक

आशीष दशोत्तर

मूल्य

150/-

प्रकाशक

बोधि प्रकाशन, जयपुर

(समीक्षक प्रो. रतन चौहान स्वयं बड़े साहित्यकार और अनुवादक होने के साथ ही अच्छे कवि हैं)