बदला मौसम का रंग और ढंग ! ‘राजनीति की तरह ऋतुओं और नेताओं की तरह बदला मौसम का मिज़ाज...’ -अज़हर हाशमी

मौसम तेजी से मिज़ाज बदल रहा है, कभी झुलसा देने वाली गर्मी तो कभी ओले और आंधी-तूफान आ रहा है। ऐसे ही मिज़ाज बदलते मौसम पर कवि अज़हर हाशमी का यह ऑब्जर्वेशन आपके अवलोकनार्थ।

बदला मौसम का रंग और ढंग ! ‘राजनीति की तरह ऋतुओं और नेताओं की तरह बदला मौसम का मिज़ाज...’ -अज़हर हाशमी
मौसम के बदलते मिज़ाज पर कवि अज़हर हाशमी की गज़ल।

रंग बदलने में गिरगिट का और ढंग बदलने में इंसान का कोई तोड़ नहीं है। भारत में सामान्यतः 6 ऋतुएं होती हैं और इनका क्रम भी पहले नियत था लेकिन अब तो ये भी राजनीति की तरह बदलने लगी हैं। ऐसे में भला मौसम ही क्यों पीछे रह जाता, सो उसने भी नेताओं की तरह अपना मिज़ाज बदलना शुरू कर दिया है। इसकी वजह है आदमी का स्वार्थ जिसने प्रकृति की लय के स़ाज को ही बदल दिया है, यह जानते हुए कि प्रकृति की सेहत सुधरी रहने पर ही वह सेहमंद रहेगा। इसी विडंबना पर प्रसिद्ध कवि और चिंतक अज़हर हाशमी की यह गज़ल खुद भी पढ़ें और दूसरों को भी पढ़ाएं।

 

मौसम का बदला है मिज़ाज...

 

आदमी ने तोड़ डाला प्रकृति की लय का स़ाज,

स्वार्थवश कुदरत से कर पाया न रिश्तों का लिहाज़।

हर दिन झपट्टा प्रकृति पर मारता यों आदमी,

जैसे चिड़िया पर झपट्टा मारता है कोई बाज़।

राजनीति की तरह ऋतुएं बदलने लग गई हैं,

यानी नेता की तरह मौसम का बदला है मिज़ाज।

प्रकृति से छेड़ख़ानी का है मतलब आपदाएं,

इसलिए आती सुनामी और कहीं गिरती है गाज।

प्रकृति की ही सेहत पर है ‘सेहत’ निर्भर सभी की,

प्रकृति से दोस्ती में ही छिपा, खुशियों का राज़। 

अज़हर हाशमी

(रचनाकार प्रसिद्ध कवि, लेखक, प्रोफेसर, चिंतक, ज्योतिषी हैं)