अनुकंपा नियुक्ति नहीं देने पर हाईकोर्ट ने शासन पर किया 20 हजार का जुर्माना, दोषी अधिकारी को दण्डित करने का दिया आदेश

अनुकंपा नियूक्ति नहीं देने पर उच्च न्यायालय ने जनजातीय कार्य विभाग रतलाम की तत्कालीन सहायक आयुक्त को दंडित करने के निर्देश दिए हैं। न्यायालय ने 20 हजार रुपए जुर्माना लगाते हुए तीन माह में नियुक्ति और एक माह में मृतक के सभी भत्तों के भुगतान का आदेश भी दिया है।

अनुकंपा नियुक्ति नहीं देने पर हाईकोर्ट ने शासन पर किया 20 हजार का जुर्माना, दोषी अधिकारी को दण्डित करने का दिया आदेश
अनुकंपा नियुक्ति नहीं देने के मामले में हाईकोर्ट इंदौर का महत्वपूर्ण फैसला।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । जनजाति कार्य विभाग की सहायक आयुक्त को अनुकंपा नियुक्ति के मामले में मनमानी करना भारी पड़ गया है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय इंदौर के न्यायमूर्ति विवेक रूसिया ने सख्त आदेश पारित करते हुए शासन पर 20 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। न्यायालय ने तीन माह में याचिकाकर्ता दीप्ति सोलंकी को अनुकंपा नियुक्ति देने और इसके लिए दोषी अधिकारी को दंडित करने के सख्त आदेश दिए हैं। प्रार्थी की माता सरोज सोलंकी के मरणोपरांत सेवा संबंधी लाभों का भुगतान एक माह में कर न्यायालय को पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत करने का आदेश भी दिया है।

अभिभाषक प्रवीण भट्ट ने बताया कि दीप्ति सोलंकी और यशवनी सोलंकी की माता सरोज सोलंकी की मृत्यु के बाद एक याचिका दायर की थी। उच्च न्यायालय ने याचिका क्रमांक 5316/2016 में दिनांक 21-02-2018 को मध्यप्रदेश शासन के परिपत्र दिनांक 29-09-2014 के तहत शैक्षणिक योग्यता अनुसार रिक्त पद पर अनुकंपा नियुक्ति हेतु विचार कर मरणोपरांत दिए जाने वाले सेवा संबंधी लाभ देने के आदेश दिए थे। बावजूद तत्कालीन सहायक आयुक्त ने दिनांक 19-09-2019 को 50 प्रतिशत अंक के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति का आवेदन निरस्त कर मरणोपरांत सेवा संबंधी भुगतान भी नहीं किया। इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय में पुनः याचिका प्रस्तुत की।

पति ने कर दी थी शिक्षाकर्मी की हत्या, पुत्रियों को अनुकंपा का इंतजार

याचिका में बताया गया कि दीप्ति व यशवनी सोलंकी की माता सरोज शिक्षाकर्मी के पद पर वर्ष 1998 से नियुक्त थीं। 2001 में उनका अध्यापक संवर्ग में संविलियन कर उन्हें नियमित किया गया था। दिनांक 21-02-2013 को सरोज की उसके पति विक्रमसिंह सोलंकी ने हत्या कर दी थी। बाद में विक्रम सिंह की मृत्यु जेल में रहते हुए हो गई थी। दीप्ति ने अनुकंपा नियुक्ति हेतु आवेदन प्रस्तुत किया, जिसे जनजाति कार्य विभाग की तत्कालीन सहायक आयुक्त ने 12 कक्षा में 50 प्रतिशत से कम अंक होने के आधार पर दिनांक 05-08-2017 को निरस्त कर दिया। इससे व्यथित दीप्ति व उनकी बहन ने उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की। उच्च न्यायालय ने दिनांक 21-02-2018 को इस याचिका को स्वीकार कर शासन को आदेश दिए थे कि दीप्ति सोलंकी को मध्यप्रदेश शासन के परिपत्र दिनांक 29-09-2014 के चरण संख्या 5.1 में दिए गए प्रावधान अनुसार शैक्षणिक योग्यता अनुसार अनुकंपा नियुक्ति दी जाए। सरोज सोलंकी की मृत्यु उपरांत उसके सभी लाभ दोनों पुत्रियों को भुगतान किए जाए।

हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी निरस्त कर दिया आवेदन

तत्कालीन सहायक आयुक्त ने न्यायालय के आदेश के विपरीत पुनः आदेश क्रमांक 3042 दिनांक 29-03-2019 जारी कर 50 प्रतिशत से कम अंक होने के आधार पर दीप्ति सोलंकी का अनुकंपा नियुक्ति आवेदन निरस्त कर दिया। उन्होंने मरणोपरांत लाभ के संबध में दिनांक 19- 03-2019 को आदेश क्रमांक 3014 जारी कर कहा कि मृतक की पुत्रियों द्वारा सहयोग नहीं किया जा रहा है। इन आदेशों के विरुद्ध पुनः उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की गई। इस याचिका को स्वीकार कर न्यायालय ने प्रमुख सचिव मध्यप्रदेश शासन को पूरे मामले में जो भी दोषी अधिकारी है, उनके विरुद्ध विभागीय जांच प्रारंभ कर अनुशात्मक कार्यवाही करने के आदेश भी दिए हैं। प्रकरण में याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी एडवोकेट प्रवीण कुमार भट्ट ने की।

कई और आवेदक भी काट रहे दफ्तर के चक्कर

जनजातीय कार्य विभाग रतलाम में व्याप्त मनमानी का यह अकेला मामला नहीं है। ऐसे कई मामले यहां बीते कुछ सालों में देखेने में आए हैं। यहां तक कि लॉकडाउन के दौरान और उसके पहले जिन शिक्षकों और कर्मचारियों को निधन हुआ उनके आश्रित भी अनुकंपा नियुक्ति पाने के लिए दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। विभाग में पद रिक्त नहीं होने का हवाला देकर उच्चाधिकारियों को अग्रेषित किए गए मामले भी अब तक निराकृत नहीं हो सके हैं। ऐसे ही कुछ मामले अब विभाग के राजधानी स्थित मुख्यालय में अफसरों की अनुकंपा के इंतजार में फइलों में दफन हैं।