धर्म-संस्कृति : श्रीमद् भागवत गीता हर वर्ग का व्यक्ति पढ़ सकता है, यही हमारे सनातन धर्म और संस्कृति की विशेषता है- पं. नरेंद्र शर्मा

पापटवाल परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत कथा में पं. नरेंद्र शर्मा ने श्रीमद् भागवत कथा के महत्व पर प्रकाश डाला। अश्वस्थामा से जुड़ा प्रसंग भी सुनाया।

धर्म-संस्कृति : श्रीमद् भागवत गीता हर वर्ग का व्यक्ति पढ़ सकता है, यही हमारे सनातन धर्म और संस्कृति की विशेषता है- पं. नरेंद्र शर्मा
श्रीमद् भागवत कथा का वाचन करते पं. नरेंद्र शर्मा जी।

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । हमें हमारे वेदों की जानकारी होना चाहिए। हमें हमारे बच्चों को धर्म की जानकारी देना चाहिए। श्रीमद् भागवतगीता हमारा धर्म ग्रंथ है। श्रीमद् भागवत गीता ऐसा ग्रंथ है जिसे हर वर्ग का व्यक्ति पढ़ सकता है। श्रीमद् भागवत गीता में हिंदू शब्द का जिक्र ही नहीं है। यह हमारे सनातन धर्म और संस्कृति की विशेषता है।

यह बात सैलाना रोड स्थित अखंड ज्ञान आश्रम में आश्रम ट्रस्ट एवं भक्त मंडल द्वारा स्वामी ज्ञानानंद जी की 33वीं पुण्य स्मृति महोत्सव में आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ अमृत महोत्सव में पंडित नरेंद्र शर्मा दंतोड़िया वाले ने कही। उन्होंने कहा कि भारत की भूमि वंदन की भूमि है, चंदन की भूमि है। भारत में रहने वाला हर जीव सनातनी है। भारत वह भूमि है जहां राम और कृष्ण ने अवतार लिए हैं। उन्होंने कहा कि संकल्प में शक्ति होती है जीवन में गुरु की बड़ी महिमा है। जब गुरु की कृपा होती है तो सभी कार्य सफल हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत में 18000 श्लोक हैं, 17 पुराण हैं। हमारे 4 वेद हैं।

अश्वस्थामा के आने से पहले श्रीकृष्ण ने पांडवों से छुड़वा दी पहाड़ी

पं. शर्मा ने शुकदेव जी की कथा सुनाते हुए कहा कि उन्होंने काम व क्रोध पर विजय पाई थी। वह श्रीमद् भागवत कथा का प्रचार प्रसार किया। महर्षि वेद व्यास जी ने श्रीमद् भागवत कथा शुकदेव जी को सुनाई। शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को सुनाई थी। उन्होंने बताया कि महाभारत युद्ध के बाद जब दुर्योधन मरणासन्न अवस्था में पड़ा था तब उनका मित्र अश्वत्थामा आया। अश्वस्थामा ने दुर्योधन की दुर्दशा देखकर कहा जिसने आपकी यह दशा की है मैं उनको छोडूंगा नहीं। वह पांडवों को मारने के लिए पहाड़ी पर गया। उससे पहले भगवान कृष्ण ने पांडवों से कहा कि वे लोग यह पहाड़ी छोड़ दें। पांडवों ने वह पहाड़ी छोड़ दी। उनकी जगह उनके पांच पुत्र जो उनके जैसे दिखते थे उनको सुला दिया।

'ब्राह्मण का अपमान उसकी मृत्यु समान'

अश्वत्थामा ने पहाड़ी पर आकर पांडवों के पांचों पुत्रों का वध कर दिया तथा उनके शव लेकर मरणासन्न पड़े दुर्योधन के पास पहुंचा। जैसे ही दुर्योधन ने पांडवों के पुत्रों को के शव देखे तो वह कहने लगा कि अश्वत्थामा तुमने यह क्या किया। तुमने पांडवों को वंश विहीन कर दिया तथा प्राण त्याग दिए। अश्वत्थामा के इस कृत्य पर अर्जुन ने अश्वत्थामा को मालने का प्रण लिया। भगवान कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि ब्राह्मण का अपमान करना उसकी मृत्यु के समान हैं। इसके बाद अर्जुन ने अश्वत्थामा की मणि निकाली तथा उसे अपमानित किया। शास्त्र कहते हैं कि ब्राह्मण को मत मारो। ब्राह्मण को नहीं मारना चाहिए, उसका अपमान ही उसके मृत्यु के समान माना गया है।

108 जोड़ों ने शिव रुद्राभिषेक किया

पं. शर्मा ने कहा कि बड़ों को प्रणाम करना चाहिए। बड़ों को प्रणाम करने से विद्या, यश और बल बढ़ता है। कथा से पूर्व प्रात:काल 108 जोड़ों ने शिव रुद्राभिषेक किया। राकेश पोरवाल ने बताया कि कथा के मुख्य जजमान श्यामलाल शांतिदेवी भोले पापटवाल परिवार है। पापटवाल परिवार द्वारा बैकुंठवासी रामपाल एवं फूलाबाई पापटवाल की स्मृति में कथा करवाई जा रही है। कथा के अंत में आरती कर प्रसादी वितरित की गई। इस दौरान स्वामी देव स्वरूपानंद जी महाराज, चित्रकूट पीठाधीश्वर अनंत विभूषित डॉ. स्वामी दिव्यानंद महाराज, हीरालाल पापटवाल सहित भक्तगण मौजूद थे।