13 अक्टूबर को मनेगी करवाचौथ, जानिए- इस वृत का पौराणिक और धार्मिक महत्व

अखंड सौभाग्य और परिवार में खुशहाली का प्रतीक करवाचौथ इस बार 13 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस व्रत का क्या महत्व है और धर्मग्रंथों और पुराणों में इस दांपत्य जीवन के कौन से धर्म और कर्त्तव्य बताए गए हैं, यह बता रहें हैं ज्योतिषाचार्य पं. संजय शिवशंकर दवे।

13 अक्टूबर को मनेगी करवाचौथ, जानिए- इस वृत का पौराणिक और धार्मिक महत्व
करवाचौथ-2022

करवाचौथ-2022 : इस वर्ष करवाचौथ 13 अक्तूबर को मनाई जाएगी। इस दिन श्री संकष्ट चतुर्थी भी है। करवाचौथ और श्री संकष्ट चतुर्थी तिथि 13 अक्टूबर को सूर्योदय के पूर्व मध्य रात्रि 2:00 बजे आरंभ हो रही है। यह 14 अक्टूबर को सूर्योदय पूर्व तक विद्यमान रहेगी। 13 को करवाचौथ पर चंद्रोदय रात्रि 8:28 बजे होगा। इस दिन महिलाएं व्रत रखकर चंद्रमा की पूजा करेंगी और पति की लंबी आयु की कामना करेंगी।

पति-पत्नी गृहस्थ आश्रम का पालन करते हैं। घर गृहस्थाश्रम कहलाता है। पति-पत्नी परस्पर एक-दूसरे की सुख-सुविधा का ध्यान रखें, यही कर्तव्य है। पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे की सेवा करें यह परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। करवाचौथ का मुख्य उद्देश्य यह है कि पति-पत्नी दोनों मिलकर अपनी दिव्यात्मकता (तेजस्वी व्यक्तित्व) का समर्पण करें, यही दोनों का कर्तव्य है। करवाचौथ का वृत दंपती को अपने धर्म और कर्त्तव्यों का स्मरण कराता है। इसे यूं समझें कि- विवाह के समय परिवार व देवों के समक्ष अग्नि के चार फेरों के अर्थ को पुनः स्मरण करना चाहिए। इन चार फेरों में धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष का महत्सव होता है। शुरू के 3 फेरों में स्त्री आगे रहती है जबकि चौथे में पुरुष आगे रहता है। इन फेरों के दौरान जो वचन दिए जाते हैं, वे इस प्रकार हैं।

पहला फेरा (धर्म):- इसमें वधू वचन देती है कि- धार्मिक परंपराओं व नियमों का पालन करूंगी, जिसमें घर में शांति बनी रहे।

दूसरा फेरा (अर्थ):- इसमें वधु कहती है कि- घर की आमदनी के अनुसार अपने कार्य का संपादन करूंगी।

तीसरा फेरा (काम):- इसमें वधू का वचन होता है कि- परिवार को छोटों के प्रति स्नेह, बड़ों का आदर व सम्मान करते हुए अपनी वाणी व सेवा द्वारा एक सूत्र में बांधे रखूंगी।

चौथा फेरा (मोक्ष):- इसमें पति आगे रहता है। इसमें वह अपना कर्त्तव्य दोहराता है कि- घर में अर्थ की व्यवस्था के संबंध में सदा तुम्हारे साथ मंत्रणा करते हुए गृहस्थोंचित्त जीवन को चलाऊंगा तथा गृस्थजीवन के सारे मतभेदों का निवारण शांतिपूर्वक करते हुए सदैव सन्मार्ग पर चलूंगा।

करवाचौथ का व्रत क्यों

वामन पुराण के अनुसार इस व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय तथा चंद्रमा का विशेष पूजन किया जाता है। ज्योतिष में चंद्रमा को मन, चित्तवृत्ति, शरीर, स्वास्थ्य, संपत्ति, राजकीय अनुग्रह का कारक माना जाता है। महाभारत में द्रोपदी ने श्रीकृष्ण के कथन अनुसार करवाचौथ का व्रत कर पांडव की रक्षा, सुख, सौभाग्य, धन-धान्य की वृद्धि के लिए किया था। इस व्रत के प्रभाव से महाभारत के युद्ध में कौरवों की हार व पांडव की जीत हुई।

अखंड सौभाग्यवती रहने का मांगती हैं आशीर्वाद

इस दिन देव को मिट्टी के करवे में मोदक अर्पण किए जाते हैं। सौभाग्यवती स्त्री अथवा उसी वर्ष भी विवाहित लड़कियां इस व्रत को करती हैं। वे विशेष करवा पति के माता-पिता को प्रदान कर अपने द्वारा हुई त्रुटि के लिए क्षमा-प्रार्थना कर अखंड सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।

सिर्फ पति की दीर्घायु के लिए ही नहीं है यह वृत

यह व्रत पत्नी द्वारा सिर्फ पति की दीर्घायु के लिए ही नहीं किया जाता अपितु यह परिवार की सुख शांति समृद्धि तथा सास-बहू के आपसी परस्पर प्रेम को बढ़ाता है। व्रत गृहस्थ जीवन में आने वाली छोटी-मोटी विघ्न-बाधाओं को दूर करने वाला तथा पित्त प्रकोप को भी समाप्त करता है।

पुराणों में यह बताया महत्व

वर्षभर के पालिनीय व्रतों क़े लिए स्त्रियों को इस दिन अपने पति से आज्ञा प्राप्त कर लेनी चाहिए। पाराशरस्मृति, शिवपुराण, अत्रीसंहिता, स्कंदपुराण, विष्णुस्मृति में विशेष तौर पर बताया गया है कि पति की आज्ञा के बिना स्त्री द्वारा किया गया व्रत निष्फल हो जाता है। मनुस्मृति के अनुसार स्त्रियों के लिए विवाह संस्कार ही वैदिक संस्कार (यज्ञोपवीत), पति-सेवा ही गुरुकुलवास (वेदाध्ययन) और गृहकार्य ही अग्निहोत्र कहा है।

इसी प्रकार ब्रह्मपुराण, वृद्धगौतमस्मृति, कुर्म, पद्मपुराण, औशनस्मृति में स्त्रियों के लिए एकमात्र पति ही गुरु होता है। पति के सिवाय किसी को भी गुरु बनाना निषिद्ध बताया गया है। स्त्रियां पति की आज्ञा प्राप्त करके पति के साथ जोड़ी से गुरु दीक्षा प्राप्त कर सकती हैं।

पं. संजय शिवशंकर दवे, (ज्योतिषाचार्य)

रतलाम (मध्यप्रदेश)

संपर्क : 9301219485