जीवन की तरह साहित्य की धारा कभी नहीं थमती, ग़ज़ल कथ्य व शिल्प में नया आस्वाद व अऩुभव लेकर आई- प्रो. चौहान 

जनवादी लेखक संघ संगोष्ठी का आयोजन किया। फारसी गज़ल की विशेषताओं पर डाला प्रकाश।

 जनवादी लेखक संघ द्वारा विचार गोष्ठी आयोजित 

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । जीवन की तरह साहित्य की धारा कभी थमती नहीं है। उसमें नए-नए मोड़, नवीन लयात्मकता, नवीन रूपाकार, युगीन संदर्भों से आते हैं और उसे नई अर्थवत्ता और आयाम प्रदान करते हैं। ग़ज़ल अपने कथ्य और शिल्प में नया आस्वाद और अनुभव लेकर आई । वह शास्त्रीय छंद शास्त्र से मुक्त हुई और मनुष्य और मिट्टी के क़रीब आई।

उक्त विचार हिंदी के वरिष्ठ कवि, अनुवादक एवं विचारक प्रो. रतन चौहान ने जनवादी लेखक संघ रतलाम द्वारा आयोजित विचार गोष्ठी में व्यक्त किए। "फारसी काव्यधारा की रूपरेखा" विषय पर केंद्रित विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रो. चौहान ने कहा कि कथ्य का विस्तार भारतीय शैली की ग़ज़ल को आभिजात्य ग़ज़ल लेखन से विलग करता है। ग़ज़ल अपने परिवेश से मुक्त होकर दर्शन, अध्यात्म, मदिरा प्रशंसा के साथ ही समाज के उन प्रश्नों को उठाती है जिनसे पूर्ववर्ती ग़ज़लकार बेख़बर थे। नवीन अवधारणाओं का खूबसूरत समावेश उसे एक नया आयाम देता है। अंदाज-ए-बयां ग़ज़ल के मौजुआत से ज्यादा अहम् हो जाता है और शायर कहन के 'कांट्रडिक्शन इन थॉट' जैसे तजुर्बात को उस मुकाम तक ले जाता है जहां किसी ख़ास ग़ज़ल में ग़ज़ल के पहले मिसरे में उठाई गई बात दूसरे मिसरे में तत्काल काट दी जाती है। कंस्ट्रक्शन का यह अंदाज ग़ज़ल में ख़ूबसूरती पैदा कर देता है। तम्सील जैसे तजुर्बे ग़ज़ल में चमक और अर्थवत्ता की कौंध भर देते हैं।

फारसी ग़ज़ल में ग़ज़लकारों ने ने नए संदर्भ और आयाम पैदा किए

उन्होंने कहा कि भारतीय शैली से नावाकिफ़ पाठक को लग सकता है कि शेर के दोनों मिसरों में कोई रिश्ता नहीं है जबकि हक़ीक़त में इन में महज रिश्ता ही नहीं दोनों मिसरे एक-दूसरे की आत्मा में गहरे डूबे हैं।लिखने की इस तकनीक में शायर ग़ज़ल के पहले मिसरे में जो कहता है दूसरे मिसरे में उसी को दोहराता है । कुछ इस अंदाज से कि वह नया अर्थ पैदा करे। उन्होंने कहा कि फारसी ग़ज़ल में ग़ज़लकारों ने कई सारे नए संदर्भ और नए आयाम पैदा किए हैं।

कविता में प्रयोग धर्मिता बढ़ी

प्रो. चौहान ने फारसी काव्य धारा का विस्तृत विश्लेषण करते हुए कहा कि समय रहते बदले हुए हालात में कविता जीवन और समाज के गहरे स्त्रोतों से कट गई और यदि कुछ कहना भी चाहती थी तो उसकी बोली सरल और सीधी-सादी नहीं होती। कविता में प्रयोग धर्मिता बढ़ गई। दो तरह के शायर सामने आए। एक वे जो व्यवस्था के चाकर बन गए। कविता को जीवन के बड़े कष्टों से काट कर फिर से शमा परवाना, बुल और गुल की दुनिया में खो गए। लिखने वालों का दूसरा ख़ेमा बहुत छोटा था। बेशक वह ज़िंदगी और सियासत के मसाईल से गहरे वाबस्ता था पर उसके लिए कोई बड़ा फ़लक नहीं बचा था।

फारसी काव्यधारा ने ग़ज़ल लेखन के साथ भाषाई स्वरूप को भी समृद्ध किया

गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कवि प्रणयेश जैन ने कहा कि विराट सांस्कृतिक फलक में स्वयं को चित्रांकित करती फ़ारसी काव्यधारा ने ग़ज़ल लेखन को ही नहीं बल्कि भाषाई स्वरूप को भी समृद्ध किया। उन्होंने कहा कि भाषा किसी विशेष परिवेश या प्रकृति में कैद नहीं होती बल्कि वह निरंतर फैलती जाती है और जिस भाषा से संबंध होती है उसे समृद्ध करती जाती है। इस अवसर पर यूसुफ जावेदी ने कहा कि कला साहित्य और संस्कृति के अध्येताओं के लिए विभिन्न काव्य धाराओं से जुड़ना आज के समय की आवश्यकता है। विभिन्न भाषाओं के साहित्य से वैचारिकता समृद्ध होती है और रचनाकार भी समृद्ध होते हैं।

इनकी रही सहभागिता

जनवादी लेखक संघ के सचिव रणजीत सिंह राठौर, प्रदेश कार्यसमिति उर्दू विंग के संयोजक सिद्दीक़ रतलामी, आशीष दशोत्तर, मांगीलाल नगावत, फ़ैज़ रतलामी, पद्माकर पागे,लक्ष्मण पाठक, रामचंद्र फुहार, प्रकाश हेमावत, मुकेश सोनी, रामचंद्र अंबर, रामचंद्र सोढ़ा, सुनील व्यास, सुभाष यादव, दिनेश उपाध्याय, आशा उपाध्याय, सहित उपस्थितजनों ने विचार गोष्ठी में अपनी सहभागिता की। इस अवसर पर काव्य गोष्ठी भी आयोजित की गई। इसमें रचनाकारों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। नगर के सुधि श्रोता एवं रचनाकार उपस्थित थे।