यह कैसी उपेक्षा है ? शहर से राजधानी तक अपनी सरकार, फिर कई लोकतंत्र सेनानियों को अब तक नहीं मिला ताम्रपत्र और उचित सम्मान
रतलाम के कई लोकतंत्र सेनानियों को आज भी सम्मान निधि और ताम्रपत्र नहीं मिल सके हैं। इनके परिवार आज भी इंतजार कर रहे हैं।
लोकतंत्र सेनानी संघ ने 2018 में कलेक्टर को दिए पत्र में जिन सेनानियों की दी थी जानकारी उनके परिवारों को आज भी है इंतजार
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । आपातकाल के दौर में लोकतंत्र की रक्षा के लिए यातनाएं झेलने वाले रतलाम के कई लोकतंत्र सेनानी और उनके परिवार आज भी उचित सम्मान की बाट जोह रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ऐसे सभी सेनानियों को ताम्रपत्र प्रदान करने की घोषणा के बाद भी अब तक इस दिशा में ठोस प्रयास नहीं होना समझ से परे है। यह स्थिति तब है जबकि शहर से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक भाजपा की सरकार है।
मध्यप्रदेश शासन के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा 21 जुलाई 2023 को प्रदेश के सभी कलेक्टरों को पत्र जारी किया गया है। अवर सचिव सुमन रायकवार के द्वारा जारी इस पत्र में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की गत 26 जून 2023 को की गई घोषणा क्रमांक सी-2456 का उल्लेख है। इसमें स्पष्ट तौर पर बताया गया है कि पूर्व में लोकतंत्र सेनानियों को राज्य शासन द्वारा ताम्रपत्र प्रदान किए गए। तब जिन भी सेनानियों को ताम्रपत्र नहीं मिल सके थे उन्हें इस 15 अगस्त को प्रदान किए जाएंगे। इसके लिए सभी जिलों से शेष रहे जीवित और दिवंगत लोकतंत्र सेनानियों की जानकारी चाही गई है।
5 साल पहले दिया था पत्र, अब तक नहीं मिले ताम्रपत्र
उक्त पत्र के संदर्भ में जब एसीएन टाइम्स द्वारा जानकारी निकाली गई तो चौंकाने वाला तथ्य सामने आया। वह यह कि, लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले कई सेनानियों और उनके परिवारों को अब तक ताम्रपत्र मिलना तो दूर, भाजपा सरकार और जिम्मेदार उचित सम्मान भी नहीं दे पाये । इनके परिवार आज भी इस सम्मान और ताम्रपत्र मिलने का इंतजार कर रहे हैं। ऐसे उपेक्षित लोकतंत्र सेनानियों के नाम 5 सितंबर, 2018 के तत्कालीन कलेक्टर को लोकतंत्र सेनानी संघ द्वारा दिए गए पत्र में दर्ज हैं। लोकतंत्र सेनानी संघ के तत्कालीन जिला अध्यक्ष द्वारा दिए गए पत्र में स्पष्ट किया गया था सम्मान निधि और ताम्रपत्र देने से पूर्व ही कुछ लोकतंत्र सेनानियों का निधन हो गया था, जिससे उनके परिवर सम्मान निधि तो दूर ताम्रपत्र से भी वंचित हैं। इस बात को 5 वर्ष होने को हैं लेकिन अभी तक उन्हें ताम्रपत्र व अन्य सम्मान प्राप्त नहीं हो सका है।
पत्र में ये नाम शामिल थे
- प्रहलाददास काकानी (अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्यभारत प्रांत के प्रांत व्यवस्थापक रहे। आपातकाल के बाद संघ की पत्रिका ‘युगबोध’ के लिए अपना घर और चार्टर्ड अकाउंटेंट का व्यवसाय तक छोड़ दिया और लगभग गृहस्थ प्रचारक सा जीवन व्यतीत किया)
- अंबालाल जोशी (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जिला संघ चालक रहे)
- पं. हरगोपाल शर्मा (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रतलाम कार्यालय के आजीवन कार्यालय प्रमुख रहे)
- रतनलाल चत्तर (रतलाम नगर संघचालक स्वर्गीय अशोक चत्तर के स्वर्गीय पिता)
- झमकलाल गांधी (आपातकाल की बीमारी के कारण आंखें तक खो दी)
- कुंदनमल कोठारी
- बसंत चौपड़ा
- प्रेमनारायण दवे (इनका पूरा परिवार बर्बाद हो गया, दोनों बेटों का निधन हो गया)
- होकमसिंह गौड़
- पंचमलाल जैन
- 11 शांतिलाल मेहता
- सुरेंद्र कुमार गोरेचा
बड़ा सवाल ? अपने परिवार की रक्षा नहीं कर पाए तो हिंदू समाज की कैसे कर पाएंगे
विचारधारा और निष्ठा से बंधे होने के कारण उपेक्षित लोकतंत्र सेनानियों के परिवार आज भी खुलकर बोल नहीं पाए हैं, लेकिन व्यथित जरूर हैं। इनकी पीड़ा इस बात से है कि रतलाम की नगर सरकार से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक भाजपा की सरकार है जिसके मूल में इन्हीं सेनानियों के त्याग और तपस्या निहित है। यह स्थिति तब है जबकि कुल 71 मीसाबंदियों में से लगभग 30 से ज्यादा अभी जीवित हैं। जब भाजपा सरकार इन अतुल्य कार्यकर्ताओं को मृत्युपरांत अपनी सरकार होते हुए सम्मान नहीं दे पाए तो फिर समस्त हिंदू समाज की रक्षा कैसे कर पाएगी। बाद में आए कांग्रेसियों के परिवार आज इनसे ज्यादा सम्मान प्राप्त कर रहे हैं। देखा जाए तो एक प्रकार से यह लोकतंत्र सेनानियों के हितों की रक्षा करने वाले संगठन की भी विफलता ही है।