ये दंश अपनों ने दिया है ! आपातकाल याद है, मीसाबंदी याद हैं, ट्रिपल इंजिन की सरकार भी है लेकिन मीसाबंदी परिवारों को ताम्र पत्र देने की याद नहीं, इंतहा हो गई इंतजार की...
रतलाम के कई लोकतंत्र सेनानी और उनके परिवार आज भी सम्मान निधि और ताम्रपत्र के इंतजार में हैं। हर अवसर पर पार्टी और सरकार इनके नाम का तो उपयोग करती है लेकिन ताम्र देने की याद नहीं आती।
लोकतंत्र सेनानी संघ ने 2018 में कलेक्टर को दिए पत्र में जिन सेनानियों की दी थी जानकारी उनके परिवारों को आज भी है इंतजार
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । 50 साल पहले आज ही के दिन (25 जून, 1975) को देश में आपातकाल लगा था। इसका दंश आज भी लोग झेल रहे हैं। आपातकाल के खिलाफ आवाज उठाने वाले और संघर्ष करने वाले लोगों और उनके परिवार वोट भुनाने का जरिया तो बना लिए गए हैं लेकिन उनके मान-सम्मान के मामले में कोताही आज भी बरती जा रही है। आपातकाल के दौर में लोकतंत्र की रक्षा के लिए यातनाएं झेलने वाले रतलाम के कई लोकतंत्र सेनानी और उनके परिवार आज भी ताम्रपत्र और सम्मान निधि की बाट जोह रहे हैं। यह आलम तब है जबकि शहर से लेकर देश तक ट्रिपल इंजिन वाली भाजपा की सरकार है। आपातकाल की याद में आज भी इन सेनानियों के घर जाकर तिलक लगाकर रस्म अदायगी की जाएगी।
मध्यप्रदेश शासन के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा 21 जुलाई 2023 को प्रदेश के सभी कलेक्टरों को पत्र जारी किया गया था। अवर सचिव सुमन रायकवार के द्वारा जारी इस पत्र में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की गत 26 जून 2023 की घोषणा क्रमांक सी-2456 का स्मरण भी कराया गया था। इसमें बताया गया था कि राज्य शासन द्वारा पूर्व में जब लोकतंत्र सेनानियों को ताम्रपत्र प्रदान किए गए थे तब जिन सेनानियों को ताम्रपत्र नहीं मिल सके थे उन्हें 15 अगस्त 2023 को प्रदान किए जाएंगे। इसके लिए सभी जिलों से शेष रहे जीवित और दिवंगत लोकतंत्र सेनानियों की जानकारी भी चाही गई थी।
प्रशासनिक गलियारों में दफन हुई जानकारी या मामला कुछ और है...
प्रशासनिक सूत्र बताते हैं कि यह जानकारी तैयार भी हुई थी लेकिन जहां तक यह पहुंचना चाहिए थी, वहां तक पहुंची या नहीं, इसका जवाब कोई जिम्मेदार अब तक नहीं दे सका। यह जानकारी प्रशानिक गलियारों में ही भटकते हुए ही कहीं फाइलों में दफन हो गई या फिर राजनीतिक दुर्भावना का शिकार हुई, यह यक्ष प्रश्न बीते दो चुनावों में भाजपा द्वारा वोट के लिए लोकतंत्र सेनानियों के नाम को भुनाने के बाद अब भी खड़ा है।
साढ़े 5 साल पहले दिया पत्र भी फाइलों में हो गया दफन
लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले शेष रहे सेनानियों और उनके परिवारों को ताम्रपत्र देने के लिए सरकारी तंत्र को करीब साढ़े पांच साल पहले 5 सितंबर, 2018 को स्मरण दिलाया गया था। इसके लिए तत्कालीन कलेक्टर को लोकतंत्र सेनानी संघ द्वारा एक पत्र सौंपा गया था। संघ के तत्कालीन जिला अध्यक्ष द्वारा दिए पत्र में स्पष्ट था कि सम्मान निधि और ताम्रपत्र देने से पूर्व ही कुछ लोकतंत्र सेनानियों का निधन हो गया था, जिससे उनके परिवर सम्मान निधि व ताम्रपत्र से वंचित हैं। यह पत्र भी फाइलों में ही दफन होकर रह गया।
पत्र में ये नाम शामिल थे
- प्रहलाददास जी काकानी (अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्यभारत प्रांत के प्रांत व्यवस्थापक रहे। आपातकाल के बाद संघ की पत्रिका ‘युगबोध’ के लिए अपना घर और चार्टर्ड अकाउंटेंट का व्यवसाय तक छोड़ दिया और लगभग गृहस्थ प्रचारक सा जीवन व्यतीत किया)
- अंबालाल जी जोशी (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जिला संघ चालक रहे)
- पं. हरगोपाल जी शर्मा (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रतलाम कार्यालय के आजीवन कार्यालय प्रमुख रहे)
- रतनलाल चत्तर (रतलाम नगर संघचालक स्वर्गीय अशोक चत्तर के स्वर्गीय पिता)
- झमकलाल जी गांधी (आपातकाल की बीमारी के कारण आंखें तक खो दी)
- कुंदनमल कोठारी
- बसंत चौपड़ा
- प्रेमनारायण दवे (इनका पूरा परिवार बर्बाद हो गया, दोनों बेटों का निधन हो गया)
- होकमसिंह गौड़
- पंचमलाल जैन
- शांतिलाल मेहता
- सुरेंद्र कुमार गोरेचा
विचारधारा और निष्ठा बनी चुप्पी की वजह
चुनाव हों या अन्य अवसर, लोकतंत्र सेनानी और उनके परिवार जी जान से जुटे नजर आते हैं। इन सेनानियों को अपने ही लोगों और उन्हें अपना बताने वाली पार्टी, सरकार से मिली उपेक्षा आपातकाल के दंश से कम ही लगती है। वे इस उपेक्षा से व्यथित जरूर हैं लेकिन विचारधारा और निष्ठा से बंधे होने के कारण वे आज भी खुलकर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं, इसी को ‘संस्कार’ कहते है। यही वजह है कि ट्रिपल इंजिन की सरकार और उसके नुमाइंदों को सिर्फ आपातकाल याद है, मीसाबंदी भी याद हैं, लेकिन उनके परिवारों को ताम्र पत्र देने की याद नहीं है, नतीजतन इंतहा हो गई इंतजार की।
यक्ष प्रश्न ? क्या शेष रहे सेनानियों को कभी उचित सम्मान मिलेगा
बता दें कि कुल 71 मीसाबंदी रतलाम जिले के थे जिनमें से आधे भी जीवित नहीं रहे। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देश के बाद अब तक शहर में ही दो मीसाबंदियों का निधन हो चुका है। आज भाजपा आपातकाल दिवस को काले दिन के रूप में मना रही है। शहर में इसी विषय को लेकर संगोष्ठी भी होने वाली है और लोकतंत्र सेनानियों के घर जाकर उनके सम्मान की परंपरागत औपचारिकता भी निभाई जाएगी, लेकिन इनमें से कई को ताम्रपत्र नहीं मिले, इसकी याद अभी तक किसी को नहीं आई। जिम्मेदारों को भले ही इसकी याद नहीं आए या फिर वे जानबूझ कर याद न करना चाहें, लेकिन ‘एसीएन टाइम्स’ अपनी जिम्मेदारी निभाता रहेगा और लोकतंत्र सेनानियों की हो रही उपेक्षा का स्मरण कराता रहेगा।