पुरातन परम्पराओं को सहेजने का कार्य कर रही है मालवी बोली, इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत सहेजना जरूरी- डॉ. विकास दवे

राजा भोज जनकल्याण सेवा समिति ने म्हारो मालवा समारोह आयोजित किया। इसमें मप्र साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे को चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य अलंकरण से सम्मानित किया गया।

पुरातन परम्पराओं को सहेजने का कार्य कर रही है मालवी बोली, इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत सहेजना जरूरी- डॉ. विकास दवे
डॉ. विकास दवे को चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य अलंकरण से सम्मानित करते डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला, नरेंद्र सिंह पंवार एवं अन्य।

-मप्र साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे "चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य अलंकरण" से सम्मानित

-राजा भोज जनकल्याण सेवा समिति द्वारा "म्हारो मालवा" समारोह आयोजित, मालवा की लोक परम्पराओं पर केन्द्रित अनूठा प्रयास

एसीएन टाइम्स @ रतलाम । मालवा की लोककला, लोकसाहित्य और मालवा की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को हमें सहेज कर रखना होगा। पुरातन परम्पराओं को सहेजने का कार्य कर रही है हमारी मालवी बोली। इसलिए हमें मातृभाषा मालवी को महत्त्व देना होगा, हमें परस्पर वार्ता और बोलचाल में भी मालवी भाषा का उपयोग करना चाहिए।

उक्त विचार मप्र साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने व्यक्त किए। डॉ. दवे राजा भोज जनकल्याण सेवा समिति द्वारा आयोजित "म्हारो मालवा" नाम से आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। विशेष अतिथि भाजपा जिलाध्यक्ष, डॉ. लीना कुलथिया (राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष टीकमगढ़), कलाविद् डॉ. ऋतम उपाध्याय एवं आशीष नाटानी (इतिहास संकलन समिति मालवा प्रांत, उज्जैन) रहे। अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला ने की।

समारोह के आरंभ में अतिथियों द्वारा भारत माता एवं मॉ वीणावादिनी के चित्र पर माल्यार्पण किया गया। संस्था अध्यक्ष नरेन्द्रससिंह पॅंवार ने अतिथि परिचय एवं आयोजन की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि मालवा की समृद्ध लोक परम्पराओं और लोकसाहित्य पर आधारित "म्हारो मालवा" नाम से समारोह का आयोजन किया गया। आने वाले समय मालवा के इतिहास और पुरातत्व को लेकर भी एक आयोजन किया जाएगा। 

मालवा की संस्कृति को जीवित रखने के लिए रतलाम से अनूठी शुरुआत- डॉ. चांदनीवाला

अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला ने समारोह की सार्थकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संस्था ने यह आयोजन करके मालवा की संस्कृति को जीवित रखने के लिए रतलाम से एक अनूठी शुरुआत की है, इसके लिए नि:संदेह संस्था धन्यवाद की पात्र है। डॉ. चांदनीवाला ने मालवी बोली की समृद्धता की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि उच्चारण की दृष्टि इसका स्वरूप और लहजा विविधताओं से युक्त है, कुछ किलोमीटर के फासले पर बदल जाता है। जो मालवी रतलाम में बोली जाती है वह मंदसौर, नीमच, धार, उज्जैन और इंदौर में कुछ-कुछ बदल जाती है। यही हमारी मालवी बोली की खूबसूरती है। हमें अपनों की बीच अपनी भाषा में ही बातचीत करना चाहिए ताकि हमारे संस्कार जीवित रह सके। विशेष अतिथि भाजपा जिलाध्यक्ष ने भी संबोधित किया। उन्होंने कहा कि मालवी में मिठास है और अपनत्व की बोली है। मालवा की बोली और यहां की संस्कृति हमें जोड़कर रखती है।

डॉ. दवे और सेवानिवृत्त सैनिक पंवार का किया अभिनंदन

 साहित्य और सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और समृद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान के लिए डॉ. विकास दवे का संस्था द्वारा "चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य अलंकरण" से सम्मानित किया गया। अलंकरण के तहत स्मृति चिन्ह एवं सम्मान-पत्र प्रदान किया गया। सम्मान-पत्र का वाचन वरिष्ठ व्याख्याता डॉ. मुनीन्द्र दुबे ने किया। भारतीय सेना में रहकर 10 वर्ष तक मां भारती की अमूल्य सेवा करने वाले सेवानिवृत्त सैनिक राघवेन्द्रसिंह पंवार का स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मान किया गया।

महर्षि श्री अरविंद पर आधारित पुस्तक का विमोचन

इस अवसर पर कलाविद् एवं चिंतक डॉ. खुशबू जांगलवा द्वारा लिखी गई पुस्तक "क्रांति और आध्यात्मिक क्रांति के प्रणेता महायोगी श्री अरविन्द" का अतिथियों के करकमलों से विमोचन हुआ। डॉ. खुश्बू जांगलवा ने अपने वक्तव्य में पुस्तक की भूमिका प्रस्तुत की। समारोह में विशेष अतिथि के रुप में डॉ. ऋतम उपाध्याय ने श्री अरविन्द के दिव्य व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनकी शिक्षा और ज्ञान को वर्तमान परिस्थितियों में विश्व कल्याण के लिए अति आवश्यक बताया। डॉ. उपाध्याय ने मालवी बोली की समृद्धता की ओर संकेत करते हुए बताया कि हमारी मालवी में गतागम (गत और आगम) जैसे संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग भी बखूबी होता है। डॉ. लीना कुलथिया ने डॉ. खूशबू जांगलवा की पुस्तक की विवेचना प्रस्तुत करते हुए महत्वपूर्ण और पठनीय कृति बताया। 

मालवी में अनुवाद की गई भागवत गीता वितरित

इस अवसर पर स्व. ठाकुर मोहनसिंह सरवन द्वारा लगभग १०० वर्ष पूर्व भगवत् गीता का मालवी में अनुवाद की गई पुस्तक उनके प्रपोत्र भवानीप्रताप सिंह राठौर ने अतिथियों को भेंट की। संस्था के संग्रामसिंह राठौर, उमा पंवार, दिलीपसिंह बेरछा, भूपेन्द्रसिंह नरेड़ी, दीपेन्द्रसिंह राठौर, दिलीपसिंह राजावत आदि ने अतिथियों का सम्मान शाल, श्रीफल एवं स्मृति चिह्न भेंट कर किया। मालवी में संचालन धीरेन्द्रसिंह सरवन ने किया। आभार समारोह संयोजक सतीश जोशी (नगरा) ने व्यक्त किया।

ये उपस्थित रहे 

समारोह में श्रमजीवी पत्रकार संघ के वरिष्ठ प्रांतीय नेता शरद जोशी, डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन शोध संस्थान की निदेशिक डॉ. शोभना तिवारी, वरिष्ठ साहित्यकार आशीष दशोत्तर, पाठक मंच की प्रमुख रश्मि पंडित, प्रकाश हेमावत, वैदेही कोठारी, आनंद जांगलवा, पार्षद शक्ति बना, साहित्यकार हरिशंकर भटनागर, सुभाष यादव, महावीर वर्मा, डॉ. मोहन परमार, देवेन्द्र वाघेला, फिल्म और मूर्तिकला से जुड़े ओमप्रकाश त्रिवेदी, गीतकार यशपालसिंह तंवर, नूतन मजावदिया, रक्षा के. कुमार सहित बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।