व्यंग्य : सहमे पौधे का सेटलमेंट- आशीष दशोत्तर
पेड़ की आत्मा और रोपे जाने का इंतजार करते पौधे का अनूठा संवाद व्यंग्यकार आशीष दशोत्तर की कलम से।
आशीष दशोत्तर
बारिश की आहट के साथ सड़क के किनारे बेरहमी से रखा गया पौधा इस बात से प्रसन्न था कि उसे नया जीवन मिलने जा रहा है। वह नई ज़मीन से जुड़ेगा। उसका तो जीवन ही बदल जाएगा। धीरे-धीरे वह कितना बड़ा हो जाएगा। उसके फूलों को देख लोग प्रसन्न होंगे, तितलियाँ इठलाएँगी। बच्चे फल खा कर खुश होंगे। पौधा प्रसन्नता के सागर में यूँ ही टहलता रहता यदि उसका ध्यान कोई विचलित न करता।
पौधे को सपनों के सागर से हकीक़त की ज़मीन पर लाने वाला और कोई नहीं बल्कि एक पेड़ ही था। दरअसल, यह पेड़ भी नहीं था। यह कभी पेड़ हुआ करता था। अभी जो पौधे से मुखातिब था वह पेड़, पेड़ न होकर पेड़ की आत्मा थी।
पेड़ यानी पेड़ की आत्मा ने पौधे से कहा, ‘‘किस खयाल में हो बच्चू ? बड़े प्रसन्न दिखाई दे रहे हो ?’’
‘‘तुम्हें इससे क्या ? देखते नहीं, मुझे नया जीवन मिलने जा रहा है। भले ही अभी मुझे यहां बेरहमी से पटका गया है, लेकिन मुझे जल्द ही नई ज़िन्दगी मिलने वाली है।’’ पौधे ने इठलाते हुए कहा।
पेड़ की आत्मा बोली, ‘‘अच्छा तुम्हें ज़मीन में रोप भी दिया गया तो इसकी क्या गारंटी है कि तुम जीवित रहोगे ही ? यदि जीवित रहने के लिए तुमने कोई जुगाड़ कर भी लिया तो तुम बच जाओगे, यह तुम कैसे कह सकते हो ?’’
पौधा विस्मयभरी नज़रों से उसे देखते हुए बोला, ‘‘तुम बहुत ही निराशावादी हो। अरे, जो मुझे रोपेगा, वही मुझे जीवित रखेगा और मेरी रक्षा भी वही तो करेगा। आखिर मैं भी उसे बहुत कुछ दूँगा। हवा, पानी, ऑक्सीजन...।’’
आत्मा बोली, ‘‘अच्छी सोच है तुम्हारी। मग़र यह सोच हकीकत में कभी बदलेगी भी ?’’ क्या तुम्हें यकीन है कि तुम्हारा जीवन लम्बा होगा ?’’
पौधा आत्मविश्वास को मजबूत कर बोला, ‘‘बिल्कुल। मैं दीर्घजीवी तो बनूंगा ही, मुझे रोपने वाले मुझ पर नाज़ करेंगे’’
पेड़ की आत्मा जोर से हँस पड़ी, ‘‘खूब लम्बी सोच रखी है तुमने ? यहाँ तो इंसान को खुद कल का पता नहीं रहता है और तुमने इंसान के दम पर अपनी फ्यूचर प्लानिंग कर ली ?’’
पौधा बोला, ‘‘यह प्लानिंग नहीं, आत्मविश्वास है। कोई इतना विश्वासघाती नहीं होता कि इतना कुछ देने वाले को यूं ही काट दे।’’
आत्मा को पौधे के आत्मविश्वास पर गर्व भी हुआ और दया भी आई। वह बोली कुछ नहीं मग़र पौधे को गौर से देखती रही। उसे अपने दिन याद आने लगे। कभी उसमें भी ऐसी ही उमंग थी। कितने सपने संजोये थे, मग़र सब के सब धराशायी हो गए। पौधा बोला, ‘‘क्या सोच रहे हो ?’’
आत्मा ने कहा, ‘‘सोच रहा हूँ, तुम्हारी बातें फलें। तुम्हें लम्बा जीवन मिले।’’
पौधा कहने लगा, ‘‘तुम्हें कोई शक है ?’’
आत्मा बोली, ‘‘शक नहीं, यकीन है। तुम आज इंसान की नज़र के नूर हो मग़र कल उसकी नज़र से बहुत दूर हो जाओगे।’’
पौधा कहने लगा, ‘‘मुझे इंसानों पर गर्व है। वही मुझे रोप रहा है, वही मुझे संभालेगा।’’
आत्मा से अब रहा नहीं गया वह बोली, ‘‘किस दुनिया में जी रहे हो बच्चू ? यहाँ सिर्फ पौधों को रोपते हुए फोटो खिंचवाने का रिवाज है। बाकी आगे का सेटलमेंट पौधे को ही करना होता है। और फिर तुम्हारी स्थिति तो और भी विकट है, ठीक मेरे जैसी।’’
पौधे ने पूछा, ‘‘विकट कैसे ?’’
आत्मा बोली, ‘‘तुम्हें इंसानों से भरे इलाके में जो रोपा जा रहा हैं।’’
पौधा बोला, ‘‘यह तो खुशी की बात है। इस बहाने मुझे पानी मिलता रहेगा। ये लोग मेरी रक्षा करेंगे।’’ आत्मा ने इस बार जोरदार ठहाका लगाया। वह बोली, ‘‘तुम सचमुच बहुत ही भोले हो। मुझे देख रहे हो। मैं भी कभी तुम्हारी तरह ही था। मुझे भी इसी तरह इंसानों के इलाके में रोपा गया था। मैंने बहुत कुछ सहा। बहुत कुछ दिया।’’
‘‘फिर क्या हुआ ?’’ पौधे ने पूछा।
‘‘अभी कुछ समय पहले मुझे बड़ी बेरहमी से काट दिया गया।’’ आत्मा बोली।
‘‘क्यों ?’’ पौधे ने पूछा
‘‘मैं विकास में रोड़ा जो बन गया था।’’ आत्मा ने अपने आप को संभालते हुए कहा।
‘‘रोड़ा कभी पेड़ भी हो सकता है, भला ? वह तो सभी को शुद्ध हवा, पानी, वातावरण देता है। वह किसी को कैसे परेशान करेगा ?’’ पौधा बोला।
आत्मा बोली, ‘‘तुमने ठीक कहा , मग़र इंसान इन बातों को समझता कहाँ है ?’’
पौधे ने पूछा, ‘‘क्या हम उनको ऐसा समझा नहीं सकते ?’’
आत्मा बोली, ‘‘यह तुमने ठीक कहा। मैंने भी उस वक़्त चीख-चीख कर सबको समझाया था। किसी ने एक न सुनी। सब कहने लगे शहर की व्यस्त सड़क के किनारे खड़े इस पेड़ को हटा दिया जाए तो यातायात व्यवस्थित हो जाएगा। तत्काल नई सड़क बनाने की योजना बन गई। मुझे एक दिन में काट दिया गया।’’
पेड़ की बातें सुन पौधा पहली बार रूआंसा हुआ। वह बोला, ‘‘इंसानों के बीच उगने में वाकई हम पौधों को ख़तरा है।’’
पेड़ की आत्मा पौधे को ‘‘बेस्ट ऑफ लक’’ कहते हुए जाने लगी तो पौधा सोच रहा था, उसे कोई रोपे ही नहीं तो ही बेहतर है।
(लेखक के पुरस्कृत व्यंग्य संग्रह 'मोरे अवगुन चित में धरो' से)
आशीष दशोत्तर
रतलाम
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